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मुख्यमंत्री विष्णु देव के मार्गदर्शन में जशपुर-बस्तर में 4 नए महाविद्यालयों के लिए 132 पद मंजूर

रायपुर मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय की पहल पर छत्तीसगढ़ शासन के उच्च शिक्षा विभाग मंत्रालय ने वित्तीय वर्ष 2025-26 के बजट में प्रावधानित 4 नवीन शासकीय महाविद्यालयों की स्थापना को स्वीकृति प्रदान कर दी है। उच्च शिक्षा विभाग द्वारा जारी आदेश के अनुसार इन महाविद्यालयों की स्थापना फरसाबहार (जिला-जशपुर), करडेगा (जिला-जशपुर), नगरनार (जिला-बस्तर) तथा किलेपाल (जिला-बस्तर) में की जाएगी। मुख्यमंत्री की इस पहल से जशपुर एवं बस्तर जैसे जनजाति बहुल एवं भौगोलिक रूप से दूरस्थ क्षेत्रों के विद्यार्थियों को अब उनके इलाके में ही उच्च शिक्षा के अवसर उपलब्ध होंगे। उन्होंने कहा है कि प्रदेश के युवाओं को गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा उपलब्ध कराना उनकी सरकार की प्राथमिकता है। दूरस्थ अंचलों की बेटियों और बेटों को अब कॉलेज की पढ़ाई के लिए अब अपने घरों से दूर अन्यत्र नही जाना पड़ेगा। उच्च शिक्षा की पहुंच हर इलाके में हो, इसके लिए राज्य सरकार शिक्षा के ढांचे को सुदृढ़ बना रही है। मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि शिक्षा ही प्रदेश के सर्वांगीण विकास की आधारशिला है और सरकार युवाओं को अवसर, संसाधन तथा बेहतर शैक्षणिक वातावरण उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध है। गौरतलब है कि इन चारों महाविद्यालयों के लिए कुल 132 पदों (प्रति महाविद्यालय 33 पद) के सृजन की स्वीकृति के साथ ही कक्षाएं प्रारंभ करने की अनुमति भी राज्य शासन ने दे दी है। स्वीकृत पदों में प्राचार्य, सहायक प्राध्यापक, ग्रंथपाल, क्रीड़ाधिकारी, सहायक ग्रेड-1 एवं प्रयोगशाला कर्मी आदि शामिल हैं। मुख्यमंत्री श्री साय की इस पहल से आदिवासी एवं दूरस्थ क्षेत्रों में उच्च शिक्षा को बढ़ावा मिलेगा। स्थानीय युवाओं की शिक्षा, रोजगार एवं कौशल वृद्धि के अवसर बढ़ेंगे। प्रदेश में समान और संतुलित शैक्षणिक विकास को गति मिलेगी।

सड़क सुरक्षा परिषद की बैठक सम्पन्न, हादसों को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने का आदेश

एमसीबी छत्तीसगढ़ परिवहन मंत्री केदार कश्यप की अध्यक्षता में मंत्रालय महानदी भवन के सभा कक्ष में छत्तीसगढ़ राज्य सड़क सुरक्षा परिषद की बैठक सम्पन्न हुई। इस महत्वपूर्ण बैठक में  उप मुख्यमंत्री अरूण साव, उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा, विधायक अनुज शर्मा, सचिव सह परिवहन आयुक्त एस. प्रकाश, सचिव लोक निर्माण विभाग डॉ. कमलप्रीत सिंह, पुलिस महानिदेशक अरुण देव गौतम, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक प्रदीप गुप्ता, प्रमुख अभियंता वी.के. भतपहरी सहित विभिन्न विभागों के वरिष्ठ अधिकारी एवं परिषद के सदस्य उपस्थित रहे। बैठक के प्रारंभ में सचिव परिवहन विभाग एस. प्रकाश ने उपस्थित अधिकारियों का स्वागत करते हुए पूर्व बैठक में लिए गए निर्णयों की जानकारी दी। इसके पश्चात्  संजय शर्मा, अध्यक्ष अंतर्विभागीय लीड एजेंसी (सड़क सुरक्षा) ने विभागवार समीक्षा प्रस्तुत की। उन्होंने बताया कि वर्ष 2025 के जनवरी से अगस्त तक प्रदेश में कुल 10,431 सड़क दुर्घटनाएं हुई हैं, जो पिछले वर्ष की तुलना में 5.23% अधिक है। घायलों की संख्या 9,132 रही जो 8.64% की वृद्धि को दर्शाती है, वहीं 4,770 लोगों की मृत्यु दर्ज की गई जो 2.51% अधिक है। वहीं मंत्री कश्यप ने इस चिंताजनक वृद्धि पर चिंता व्यक्त करते हुए सभी संभागायुक्तों, पुलिस महानिरीक्षकों और विभागीय अधिकारियों को निर्देश दिए कि वे जनसंख्या के आधार पर दुर्घटनाओं का तुलनात्मक विश्लेषण करें तथा रोकथाम हेतु ठोस कदम उठाएं। उन्होंने कहा कि देश के अन्य राज्यों द्वारा दुर्घटनाओं में कमी लाने के सफल उपायों को छत्तीसगढ़ में भी लागू किया जाए। साथ ही यह सुनिश्चित किया जाए कि स्कूली, कॉलेज एवं कोचिंग संस्थानों में छात्र केवल हेलमेट पहनकर ही प्रवेश करें। हाईवे और रिंग रोड पर बिना हेलमेट या सीट बेल्ट के वाहन चलाने वालों पर सख्त कार्रवाई करने के निर्देश भी दिए गए। बैठक में यह तथ्य सामने आया कि राज्य के 33 जिलों में जिला सड़क सुरक्षा समितियों की 264 निर्धारित बैठकों के मुकाबले केवल 108 बैठकें आयोजित हुईं, जिसे माननीय मंत्री ने गंभीरता से लेते हुए फटकार लगाई। उन्होंने स्पष्ट निर्देश दिया कि प्रत्येक जिले में सड़क सुरक्षा समिति की बैठक प्रत्येक माह अनिवार्य रूप से आयोजित की जाए और बैठक की जानकारी MORTH पोर्टल पर अपलोड कर समीक्षा सुनिश्चित की जाए। प्रदेश में सड़क सुरक्षा प्रवर्तन कार्यों के अंतर्गत पुलिस विभाग ने जनवरी से अगस्त 2025 के दौरान 6,03,283 प्रकरणों में 26.95 करोड़ रुपए का शमन शुल्क वसूला, वहीं परिवहन विभाग ने 5,55,666 चालानी प्रकरणों से 115.54 करोड़ रुपए की राशि प्राप्त की। पुलिस विभाग की यह कार्रवाई पिछले वर्ष की तुलना में 50 प्रतिशत अधिक रही। राज्य में वर्ष 2019 से अब तक चिन्हित 1000 ब्लैक स्पॉट में से 887 का सुधार कार्य पूर्ण किया जा चुका है, जबकि 113 स्थानों पर कार्य शेष है। मंत्री ने शेष ब्लैक स्पॉटों के सुधार को सर्वोच्च प्राथमिकता में रखकर जल्द पूर्ण करने के निर्देश दिए। इसी प्रकार 4273 चिन्हित जंक्शनों में से 3148 का सुधार कार्य पूरा हो चुका है, जबकि 1125 स्थानों पर कार्य प्रगति पर है। बैठक में यह भी अवगत कराया गया कि ट्रक ले-बाय के 55 में से 42 पूर्ण हो चुके हैं, बस ले-बाय के 558 में से 374 तैयार हैं तथा 11 में से 7 रेस्ट एरिया कार्य पूर्ण हैं। मंत्री ने निर्देश दिए कि शेष कार्यों को तत्काल गति दी जाए। स्वास्थ्य विभाग द्वारा सड़क दुर्घटनाओं में घायलों के त्वरित उपचार हेतु ट्रामा सेंटर्स और एम्बुलेंस सुविधाओं की जानकारी दी गई। रायपुर और सिमगा में ट्रामा स्टेब्लाइजेशन सेंटर प्रारंभ हो चुके हैं जबकि अन्य केंद्र निर्माणाधीन हैं। मंत्री ने निर्देश दिए कि शेष केंद्रों को शीघ्र प्रारंभ किया जाए और सड़क दुर्घटना पीड़ितों को कैशलेस इलाज योजना के तहत तत्काल लाभ मिले, यह सुनिश्चित किया जाए। शिक्षा विभाग ने बताया कि सड़क सुरक्षा विषयक सामग्री को पहली से दसवीं कक्षा तक के पाठ्यक्रम में संशोधित कर आगामी सत्र 2025-26 से लागू करने की तैयारी पूरी हो चुकी है। मंत्री ने स्कूलों में निबंध, वाद-विवाद, चित्रकला, क्विज, रैली और नुक्कड़ नाटक जैसे जनजागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने के निर्देश दिए। सड़क सुरक्षा माह के दौरान  NSS] NCC और भारत स्काउट-गाइड के स्वयंसेवकों को जन-जागरूकता अभियानों में शामिल करने का भी निर्णय लिया गया। बैठक में बताया गया कि ड्राइविंग ट्रेनिंग एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट के माध्यम से अब तक 32,326 लोगों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है और राज्य के आठ स्थानों पर ऑटोमेटिक फिटनेस सेंटर संचालित हैं, जहां अब तक 1,97,295 वाहनों का परीक्षण किया गया। मंत्री ने निर्देश दिए कि नए वाहन विक्रेता प्रशिक्षण के बाद ही वाहन विक्रय करें और यातायात नियम तोड़ने वालों के लाइसेंस निरस्तीकरण की कार्यवाही सुनिश्चित की जाए। साथ ही वाहनों में स्पीड लिमिट डिवाइस और डैशबोर्ड कैमरा की जांच नियमित रूप से की जाए। नगरीय प्रशासन विभाग के कार्यों पर संतोष व्यक्त किया गया और शेष कार्यों को शीघ्र पूर्ण करने के निर्देश दिए गए। मंत्री ने कहा कि  iRAD और  eDAR पोर्टल में एंट्री समय पर नहीं हो रही है, इसे सभी विभाग गंभीरता से लेकर समाधान करें। स्वास्थ्य विभाग से अपेक्षा की गई कि वह अपने पेशेंट एंट्री रजिस्टर को इस पोर्टल से जोड़े। बैठक के अंत में मंत्री केदार कश्यप ने कहा कि सड़क सुरक्षा परिषद का उद्देश्य विभागों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित कर दुर्घटनाओं में कमी लाना है। उन्होंने कहा कि सड़क सुरक्षा के चार स्तंभ अभियांत्रिकी, प्रवर्तन, शिक्षा/जनजागरूकता और आकस्मिक उपचार के बीच तालमेल को और सशक्त बनाया जाए। 

बेमेतरा में घर-घर पहुँच रहा नल से जल, हर घर नल, हर घर जल के सपने को साकार कर दिखाया

रायपुर बेमेतरा में घर-घर पहुँच रहा नल से जल कभी पानी के लिए कतारें और हैंडपंपों पर भीड़ बेमेतरा की पहचान हुआ करती थी, परंतु अब तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है। राज्य सरकार के सतत प्रयासों और योजनाबद्ध कार्यान्वयन से जिले ने “हर घर नल, हर घर जल” के सपने को साकार कर दिखाया है। वर्ष 2000 में बेमेतरा जिले में मात्र 3,857 हैंडपंप थे, जबकि 2025 तक इनकी संख्या बढ़कर 7,139 हो गई है। नलजल योजनाओं की संख्या भी 32 से बढ़कर 127 तक पहुँच चुकी है, जिनसे 32,278 परिवारों को घरेलू नल कनेक्शन मिले हैं। वहीं, विद्युत विहीन ग्रामों में 142 सोलर ड्यूल पंपों की स्थापना से सौर ऊर्जा आधारित जल आपूर्ति संभव हुई है। जल जीवन मिशन के अंतर्गत 719 योजनाएँ स्वीकृत की गईं, जिनमें से 378 योजनाएँ पूर्ण होकर 1,34,010 घरों में नल कनेक्शन प्रदान किए जा चुके हैं। साथ ही 251 ग्रामों को ‘हर घर जल रिपोर्टेड’ और 206 ग्रामों को ‘हर घर जल प्रमाणित’ घोषित किया गया है। इसके अतिरिक्त, समूह जल प्रदाय योजनाओं के माध्यम से 372 ग्रामों में सामूहिक जल आपूर्ति सुनिश्चित की जा रही है। अब तक जिले में कुल 1,54,836 ग्रामीण परिवारों को घरेलू नल कनेक्शन प्रदान किए जा चुके हैं। पिछले 25 वर्षों में बेमेतरा ने जल प्रबंधन, तकनीकी नवाचार और सतत विकास का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया है। आज जिले के प्रत्येक घर तक शुद्ध पेयजल पहुँच रहा है।

रायपुर : हम आत्मनिर्भर हैं और भविष्य को लेकर आश्वस्त भी

रायपुर : हम आत्मनिर्भर हैं और भविष्य को लेकर आश्वस्त भी' आदिवासी स्वरोजगार योजना ने बदली जिंदगी, व्यवसाय को मिली मजबूती रायपुर छोटी सी मदद कैसे किसी परिवार और उसके भविष्य को सशक्त व आत्मनिर्भर बना देती है, इसकी मिसाल है कांकेर की श्रीमती शारदा उसेंडी। राज्य शासन की पहल से एक छोटे से लोन ने न केवल उसकी आर्थिक स्थिति को मजबूत किया, बल्कि बच्चों की बेहतर पढ़ाई-लिखाई के दरवाजे भी खोले। बारहवीं तक पढ़ी अंतागढ़ विकासखण्ड के पोण्डगांव की श्रीमती शारदा उसेंडी पहले अपने छोटे से किराना दुकान और थोड़ी-बहुत खेती के सहारे जीवन-यापन कर रही थीं। आय सीमित होने के कारण आर्थिक स्थिति में कोई विशेष सुधार नहीं हो पा रहा था। इसी बीच कांकेर के जिला अंत्यावसायी विभाग के माध्यम से उसे जानकारी मिली कि अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए “आदिवासी स्वरोजगार योजना“ के तहत ऋण सुविधा उपलब्ध है। उसने तत्परता दिखाते हुए विभाग में आवेदन दिया। विभाग ने उसके आवेदन को भारतीय स्टेट बैंक, अंतागढ़ भेजा, जहां से उसके लिए एक लाख रूपए का ऋण स्वीकृत हुआ। ऋण के साथ ही विभाग की ओर से दस हजार रूपए का अनुदान भी मिला।  श्रीमती उसेंडी ने इस राशि से अपने किराना व्यवसाय को विस्तार दिया। वह बताती है कि  अभी उसे दुकान से हर महीने पांच से सात हजार रुपए तक की शुद्ध कमाई हो रही है। उसके पति और बच्चे भी इस व्यवसाय में पूरा सहयोग कर रहे हैं। अपने किराना दुकान की बदौलत उसने नियमित रूप से बैंक की किस्तें चुकाने के साथ-साथ दोनों बेटों की शिक्षा पूरी करवाई है। उसकी बेटी अभी कॉलेज में पढ़ रही है। श्रीमती शारदा उसेंडी बताती हैं – “दुकान के विस्तार के बाद हमारी आर्थिक स्थिति पहले से बेहतर हो गई है। अब हम आत्मनिर्भर हैं और भविष्य को लेकर आश्वस्त भी।” उसने छत्तीसगढ़ शासन के अंत्यावसायी विभाग, कांकेर के प्रति आभार जताते हुए आदिवासी युवक-युवतियों से अपील की है कि वे “आदिवासी स्वरोजगार योजना“ का लाभ लेकर आत्मनिर्भर बनने की राह में कदम बढ़ाएं।

नक्सलियों में आत्मसमर्पण की बाढ़: माओवाद खत्म करने की ‘मोदी-शाह’ प्लानिंग कितनी कारगर?

रायपुर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने देशवासियों को यह भरोसा दिलाया है कि 31 मार्च 2026 से पहले 'नक्सलवाद' पूरी तरह खत्म हो जाएगा। माओवाद के खात्मे पर अब प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री 'शाह' का हाई 'कॉन्फिडेंस' साफ झलक रहा है। अभी तो डेड लाइन करीब आने में पांच माह बचे हैं, लेकिन अभी से ही नक्सलियों में 'सरेंडर' करने की होड़ मच गई है। माओवादियों की केंद्रीय कमेटी और जोनल कमेटी के सदस्यों के अलावा सीनियर ऑपरेटिव, सुरक्षा बलों के समक्ष हथियार डाल रहे हैं। पिछले कई दिनों से सुरक्षा बलों एवं राज्यों के विशेष दस्तों को ऐसे खुफिया इनपुट मिल रहे हैं कि नक्सली, भारी तादाद में सरेंडर करने के इच्छुक हैं। उन्हें एनकाउंटर में न उलझाया जाए। इस सप्ताह सैकड़ों नक्सलियों ने सरेंडर किया है। माओवादियों पर कसी गई नकेल का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अब नक्सलियों की गिरफ्तारी का आंकड़ा, सरेंडर की गिनती से पीछे छूट चुका है। 2024 में छत्तीसगढ़ में 2100 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया था, 1785 गिरफ्तार हुए, जबकि 477 को न्यूट्रलाइज किया गया। बता दें कि इस सप्ताह जितने नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है, यह एक रिकार्ड बन गया है। छत्तीसगढ़ में शुक्रवार को 208 नक्सलियों ने सरेंडर कर दिया है। इनमें 98 पुरुष और 110 महिलाएं शामिल हैं। सभी 208 नक्सलियों ने 153 हथियार भी पुलिस के पास जमा करा दिए हैं। इससे पहले छत्तीसगढ़ में 170 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया था। बाद में 27 अन्य नक्सली भी हथियार छोड़कर मुख्यधारा में शामिल हो गए। दो दिन पहले महाराष्ट्र में भी 61 नक्सलियों ने हथियार डाले थे। आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों की सूची में 10 सीनियर ऑपरेटिव, जिनमें सतीश उर्फ टी वासुदेव राव (सीसीएम), रानीता (एसजेडसीएम, माड़ डीवीसी की सचिव), भास्कर (डीवीसीएम, पीएल 32), नीला उर्फ नंदे (डीवीसीएम, आईसी और नेलनार एसी की सचिव), दीपक पालो (डीवीसीएम, आईसी और इंद्रावती एसी का सचिव) शामिल हैं। टी वासुदेव राव पर 1 करोड़ रुपये का इनाम था। बाकी कई दूसरे माओवादियों पर भी इनाम घोषित किया गया था। इतने बड़े पैमाने पर हुए सरेंडर को लेकर अमित शाह ने कहा, यह अत्यंत हर्ष की बात है कि एक समय आतंक का गढ़ रहे छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ और नॉर्थ बस्तर को आज नक्सली हिंसा से पूरी तरह मुक्त घोषित कर दिया गया है। अब छिटपुट नक्सली केवल साउथ बस्तर में बचे हुए हैं, जिन्हें हमारे सुरक्षा बल शीघ्र ही समाप्त कर देंगे। यह 31 मार्च 2026 से पहले नक्सलवाद को जड़ से खत्म करने के हमारे दृढ़ संकल्प का प्रतिबिम्ब है। सरेंडर बाबत केंद्रीय सुरक्षा बल के एक अधिकारी, जो लंबे समय तक नक्सल प्रभावित इलाकों में तैनात रहे हैं, ने बताया, अब ज्यादा कुछ बचा नहीं है। हां, यह भी नहीं कह सकते है कि माओवादी पूरी तरह से समाप्त हो गए हैं। कुछ क्षेत्रों में उनकी मौजूदगी है, लेकिन देर सवेर वहां भी सरेंडर या मुठभेड़ में मारे गए, जैसी कोई सूचना मिल सकती है। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में 'सीआरपीएफ', डीआरजी, एसटीएफ, बीएसएफ और आईटीबीपी के जवान 31 मार्च 2026 के लक्ष्य की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं। नक्सलवाद से प्रभावित अधिकांश इलाकों में सीआरपीएफ और इसकी विशेष इकाई 'कोबरा' तैनात है, इसलिए अब तेज रफ्तार से 'फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस' स्थापित किए जा रहे हैं। ये कहना गलत नहीं होगा कि नक्सल को खत्म करने में सबसे बड़ा योगदान सीआरपीएफ और इसकी विशेष इकाई, 'कोबरा' का है। डीआरजी एवं दूसरे बलों की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता। सात आठ वर्ष पहले लोकल पुलिस, अकेले जंगल में नहीं जा पाती थी। साथ में सीआरपीएफ/कोबरा या कोई दूसरा बल रहता था। सीआरपीएफ, कोबरा, डीआरजी के जवानों ने इस लड़ाई में खूब बलिदान दिया है। जब से केंद्रीय गृह मंत्री ने नक्सलियों के खात्मे की डेड लाइन तय की है, मानवीय और गैर मानवीय दिक्कतों के बावजूद 'सीआरपीएफ' द्वारा महज 48 घंटे में नया एफओबी तैयार कर दिया जाता है।'फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस' स्थापित करने में पहले काफी समय लगता था। वजह, उस क्षेत्रों में सड़कें न होने के कारण वहां पर निर्माण सामग्री, जल्दी नहीं पहुंच पाती थी। नक्सलियों द्वारा घात लगाकर हमला, आईईडी लगाना व बैरल ग्रेनेड लॉन्चर (बीजीएल) से अटैक, ये सब आम बात थी। इस तरह के खतरों के बीच सीआरपीएफ ने खुद के बलबूते और कुछ जगहों पर डीआरजी (डिस्ट्रिक रिजर्व गार्ड) एवं लोकल पुलिस को साथ लेकर एफओबी स्थापित किए हैं। दो तीन वर्षों में एफओबी के बीच में अंतराल ज्यादा बिल्कुल कम कर दिया गया है। अब तो चार-पांच किलोमीटर या उससे कम की दूरी पर भी एफओबी स्थापित किए जा रहे हैं। नतीजा, नक्सलियों के पास अब दो ही विकल्प, 'सरेंडर' या 'गोली' ही बचते हैं। लगातार खुलते एफओबी के चलते नक्सलियों के ठिकाने तबाह होने लगे हैं। ऐसा कोई इलाका नहीं बचा है, जहां सुरक्षा बलों की पहुंच न हो। महज 48 घंटे में 'फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस' स्थापित कर सुरक्षा बल, आगे बढ़ रहे हैं। नक्सलियों के लिए जंगलों में ज्यादा लंबी दूरी तक भागना संभव नहीं रहा। उनकी सप्लाई चेन कट चुकी है। अब उन्हें वित्तीय मदद भी नहीं मिल पा रही। नक्सलियों की नई भर्ती तो पूरी तरह बंद हो गई है। घने जंगलों में स्थित नक्सलियों के ट्रेनिंग सेंटर भी तबाह किए जा रहे हैं। तीन सौ से ज्यादा एफओबी खुलने के बाद माओवादी,  सुरक्षा बलों के चक्रव्यूह में फंसकर रह गए हैं। यही वजह है कि अब एकाएक, आत्मसमर्पण बढ़ता जा रहा है। नक्सलियों के गढ़ में 2024 में 58 नए कैंप स्थापित हुए थे। इस वर्ष 100 नए एफओबी स्थापित करने पर काम शुरु हुआ था। ये कैंप नक्सल के किले को ढहाने में आखिरी किल साबित हो रहे हैं। जिस तेजी से 'फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस' स्थापित हो रहे हैं, उससे यह बात साफ है कि तय अवधि से पहले ही नक्सलवाद को खत्म कर दिया जाएगा। सुरक्षा बलों ने नक्सलियों का हर वो ठिकाना ढूंढ निकाला है, जो अभी तक एक पहेली बना हुआ था। उनके स्मारक गिराए जा रहे हैं। 'फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस' स्थापित होने के कारण नक्सली घिरते जा रहे हैं। पहाड़ी जंगल में सुरक्षा बल चारों तरफ से घेरा डालकर आगे बढ़ रहे हैं। एफओबी को स्थापित … Read more

महासमुंद जिला अब स्वस्थ, आयुष्मान भारत योजना से मिली बेहतर स्वास्थ्य सेवा

रायपुर : आयुष्मान भारत जन आरोग्य योजना से स्वस्थ हो रहा महासमुंद जिला 10 लाख से अधिक हितग्राही बने आयुष्मान कार्डधारी, 27 हजार वरिष्ठजन को मिला वय वंदन कार्ड का लाभ रायपुर रजत जयंती वर्ष 2025-26 के अवसर पर महासमुंद जिला जनकल्याणकारी योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन में प्रदेश के अग्रणी जिलों में शामिल हो रहा है। शासन की मंशानुरूप आयुष्मान भारत जन आरोग्य योजना का लक्ष्य समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को गुणवत्तापूर्ण, कैशलेस और सुलभ स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराना है। कलेक्टर श्री विनय लंगेह के मार्गदर्शन में स्वास्थ्य विभाग द्वारा जिले में 257 जन आरोग्य मंदिरों के माध्यम से जन-जागरूकता और सेवा विस्तार का कार्य निरंतर जारी है। इन केंद्रों पर नागरिकों को योजना की जानकारी, पात्रता जांच, दस्तावेज सत्यापन और आयुष्मान कार्ड निर्माण की सुविधा एक ही स्थान पर प्रदान की जा रही है। अब तक जिले में 10 लाख 16 हजार 800 हितग्राहियों के आयुष्मान कार्ड बन चुके हैं, जो निर्धारित लक्ष्य का लगभग 88.4 प्रतिशत है। इनमें ग्रामीण क्षेत्र के 9 लाख 9 हजार 955 और शहरी क्षेत्र के 1 लाख 6 हजार 845 लाभार्थी शामिल हैं। विकासखण्ड स्तर पर पिथौरा, बागबाहरा, बसना, सरायपाली और महासमुंद सभी क्षेत्रों में विशेष शिविरों एवं घर-घर संपर्क अभियान के माध्यम से कार्ड निर्माण का कार्य तीव्र गति से चल रहा है। वरिष्ठ नागरिकों के स्वास्थ्य संरक्षण हेतु जिले में 27 हजार 816 आयुष्मान वय वंदन कार्ड बनाए गए हैं, जिनमें से अधिकांश लाभार्थी ग्रामीण अंचलों से हैं। यह कार्ड 70 वर्ष से अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिकों को 5 लाख रुपये तक की निःशुल्क चिकित्सा सुविधा प्रदान करता है। उल्लेखनीय है कि आयुष्मान कार्डधारी परिवार सूचीबद्ध सरकारी और निजी अस्पतालों में बिना किसी अग्रिम भुगतान के कैशलेश इलाज प्राप्त कर सकते हैं। योजना से स्वास्थ्य सेवाओं में न केवल विश्वास बढ़ा है, बल्कि लोगों की चिकित्सा पहुँच भी अधिक सहज और समान हुई है।

बिर्रा गांव की रश्मि अब 20 हजार महीने की कमाई से बनी आत्मनिर्भर महिला उद्यमी

रायपुर : सेंट्रिंग प्लेट्स से मिला दी रश्मि के सपनों को सहारा बिर्रा गांव की रश्मि अब 20 हजार महीने की कमाई से बनी आत्मनिर्भर महिला उद्यमी प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण सहित अन्य निर्माण कार्यों में सेंटरिंग प्लेट लगाकर रश्मि के हौसले बुलंद रायपुर जांजगीर चांपा जिले के जनपद पंचायत बम्हनीडीह के बिर्रा गांव की महिला मती रश्मि कहरा ने यह साबित कर दिखाया है कि अगर हौसला बुलंद हो और अवसर मिले, तो गांव की मिट्टी से भी सफलता की कहानी लिखी जा सकती है। प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण सहित गांव के अन्य निर्माण कार्यों में सेंटरिंग प्लेट की आपूर्ति कर आज वह हर महीने 20 हजार रुपये की आमदनी अर्जित कर रही हैं। यह सफलता उन्हें बिहान योजना और स्व-सहायता समूह के माध्यम से मिली जिसने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी।        मती रश्मि कहरा ने बताया कि पहले परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी। बच्चों की पढ़ाई और घर खर्च दोनों ही मुश्किल में थे। तब उन्होंने हिम्मत जुटाकर रानी लक्ष्मीबाई स्व सहायता समूह से जुड़ने का निर्णय लिया। समूह के सहयोग और बिहान के मार्गदर्शन से उन्हें आत्मनिर्भरता की राह मिली। उन्होंने ग्राम संगठन की सहायता से समुदायिक निवेश कोष  से 25 हजार रुपये का ऋण लिया। इस राशि से उन्होंने 1000 वर्गफीट का सेटरिंग प्लेट तैयार कराया, जिसे प्रधानमंत्री आवास योजना सहित अन्य निर्माण कार्यों में किराये पर दिया जा रहा है। इसी से आज उनकी नियमित आय 20,000 रुपये मासिक हो गई है। वे कहती हैं पहले जीवन बहुत कठिन था, लेकिन बिहान समूह से जुड़ने के बाद आत्मविश्वास बढ़ा। अब मैं खुद कमा रही हूँ, बच्चों की पढ़ाई कराती हूँ और दूसरों को भी प्रेरित कर रही हूँ। इसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्री  नरेन्द्र मोदी एवं मुख्यमंत्री  विष्णुदेव साय का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए आभार व्यक्त किया।         गांव की साथी महिलाओं के अनुसार, रश्मि की सफलता से अब कई अन्य महिलाएं भी समूहों से जुड़कर प्रधानमंत्री आवास योजना और अन्य आजीविका गतिविधियों में सक्रिय हो रही हैं। बिहान के जिला अधिकारी का कहना है कि रश्मि की उपलब्धि इस बात का प्रमाण है कि अगर महिला को अवसर, प्रशिक्षण और सहयोग मिले तो वह न केवल अपने परिवार, बल्कि समाज की भी आर्थिक रीढ़ बन सकती है। आज बिर्रा गांव में रश्मि का नाम गर्व से लिया जाता है कभी जो परिवार आर्थिक तंगी में था, वही अब दूसरों की प्रेरणा बन चुका है। सच में, यह है  बिहान से निकली उड़ान की मिसाल है जिसने गांव की एक साधारण महिला को आत्मनिर्भरता की पहचान दिलाई।

स्वास्थ्य सेवाओं पर असर! छत्तीसगढ़ में सुपरस्पेशलिस्ट डॉक्टर्स की भारी कमी, 70% पद रिक्त

रायपुर प्रदेश के शासकीय सुपर स्पेशलिटी अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी अब चिंता का विषय बन चुकी है। रायपुर के दाऊ कल्याणसिंह पोस्ट ग्रेजुएट व रिसर्च केंद्र और बिलासपुर के कुमार साहब स्व. श्री दिलीप सिंह जूदेव शासकीय सुपर स्पेशलिटी अस्पतालों में स्वीकृत 135 पदों में से 95 पद खाली पड़े हैं यानी 70 प्रतिशत पदों पर नियुक्तियां नहीं हो पाई हैं। इसका सीधा असर मरीजों के इलाज पर पड़ रहा है। वहीं, राज्य के शासकीय दस मेडिकल कालेजों और एकमात्र रायपुर डेंटल कालेज में भी हालात बेहतर नहीं हैं। यहां स्वीकृत 2,160 पदों में से 1,155 पद रिक्त हैं, जो कुल पदों का 54 प्रतिशत है। डॉक्टरों की कमी के चलते सुपर स्पेशलिटी वार्ड नाममात्र के रह गए हैं। मरीजों को या तो सामान्य चिकित्सकों के भरोसे छोड़ा जा रहा है या उन्हें रेफर करना पड़ता है। विशेषज्ञों का मानना है कि स्थायी नियुक्ति नहीं होने से डॉक्टरों में असुरक्षा की भावना है, जो इस संकट का एक बड़ा कारण है। रायपुर के डीकेएस सुपर स्पेशलिटी अस्पताल से पिछले एक साल में छह से अधिक डाक्टर इस्तीफा दे चुके हैं। चिकित्सा शिक्षा से जुड़े जानकारों का कहना है कि एमबीबीएस सीटों में बढ़ोतरी के चलते जहां मेडिकल क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ी है, वहीं पीजी (स्नाकोत्तर) सीटें कम होने से विशेषज्ञ डॉक्टर तैयार नहीं हो पा रहे हैं। वर्तमान में दस शासकीय और चार निजी मेडिकल कॉलेज संचालित है, जिसमें एमबीबीएस की 2,180 सीटें हैं। वहीं, पीजी की 311 व निजी में 186 सीटें हैं। इसके अलावा, सरकारी बांड नियम भी डाक्टरों के लिए एक बड़ी परेशानी बनकर उभरा है। यदि समय रहते सरकार ने स्थायी नियुक्तियों और पीजी सीटों में बढ़ोतरी पर ध्यान नहीं दिया, तो स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति और अधिक गंभीर हो सकती है। राजपत्र में प्रकाशित नियम को दी गई चुनौती विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य सरकार की ओर से मध्यप्रदेश की तरह वर्ष 2019 में छत्तीसगढ़ स्वशासी चिकित्सा महाविद्यालीय शैक्षणिक आदर्श सेवा भर्ती नियम 2019 सह संशोधन वर्ष 2020 अधिसूचना राजपत्र में प्रकाशित की गई थी। इसमें पूर्व में संविदा में कार्यरत चिकित्सा शिक्षकों का स्वशासी समिति के माध्यम से नियमित करने का प्रविधान है। लेकिन, नियमति चिकत्सकों ने पदोन्नति, वरिष्ठता व प्रशासनिक नियुक्ति आदि प्रभावित होने की आशंका से हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है, जो वर्तमान में विचाराधीन है। सुपरस्पेशलिटी अस्पतालों में विशेषज्ञों की स्थितिसंस्थान का नाम – स्वीकृत पद – कार्यरत (नियमित व संविदा) – रिक्तकुमार साहब स्व. श्री दिलीप सिंह जूदेव, बिलासपुर – 78 – 8 (एक व सात) – 70दाऊ कल्याणसिंह स्नातोकोत्तर व रिसर्च केंद्र, रायपुर – 57 – 32 (दो व 30) – 25 मेडिकल कॉलेजों में डॉक्टरों की स्थिति – कांकेर: स्वीकृत पद 148, कार्यरत 30 (19 नियमित, 11 संविदा), रिक्त 118 – दुर्ग: स्वीकृत पद 164, कार्यरत 49 (20 नियमित, 29 संविदा), रिक्त 115 – रायपुर: स्वीकृत पद 416, कार्यरत 242 (156 नियमित, 86 संविदा), रिक्त 174 – रायगढ़: स्वीकृत पद 91, कार्यरत 42 (24 नियमित, 18 संविदा), रिक्त 49 – कोरबा: स्वीकृत पद 150, कार्यरत 58 (34 नियमित, 24 संविदा), रिक्त 92 – सरगुजा: स्वीकृत पद 86, कार्यरत 60 (48 नियमित, 12 संविदा), रिक्त 26 – महासमुंद: स्वीकृत पद 150, कार्यरत 61 (45 नियमित, 16 संविदा), रिक्त 89 – जगदलपुर: स्वीकृत पद 154, कार्यरत 82 (37 नियमित, 45 संविदा), रिक्त 72 – राजनांदगांव: स्वीकृत पद 155, कार्यरत 66 (39 नियमित, 27 संविदा), रिक्त 89 – बिलासपुर: स्वीकृत पद 255, कार्यरत 123 (76 नियमित, 47 संविदा), रिक्त 132 – डेंटल कॉलेज: स्वीकृत पद 102, कार्यरत 70 (31 नियमित, 39 संविदा), रिक्त 32 मध्यप्रदेश, राजस्थान व कई अन्य राज्यों में स्वशासी समिति के माध्यम से नियमित भर्ती का प्रविधान लागू है। यहां के डाक्टरों में नियमित नहीं होने से असुरक्षा की भावना रहती है, जिसकी वजह से अवसर मिलने पर चले जाते हैं। MBBS के अनुसार पीजी की सीटें भी नहीं है। बांड नियम की वजह से एमबीबीएस के बाद कई विद्यार्थी सुपर स्पेशलिटी कोर्स करने से वंचित रह जाते हैं। डॉ. रेशम सिंह, अध्यक्ष, जूनियर डॉक्टर एसोसिएशन, रायपुर डॉक्टरों की कमी को दूर करने के लिए निरंतर प्रयास किया जा रहा है। शासन को इसके लिए प्रस्ताव बनाकर भेजा गया है। भर्ती नियम को लेकर राज्य शासन स्तर पर निर्णय लिया जाता है। शिखा राजपूत तिवारी, आयुक्त, चिकित्सा शिक्षा, छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ को आयुष्मान योजना में मिला टॉप स्टेट का खिताब, 97% अस्पताल कर रहे काम

रायपुर  प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY) में शानदार प्रदर्शन के लिए छत्तीसगढ़ को 'सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाला राज्य' का राष्ट्रीय सम्मान मिला है। यह सम्मान भोपाल में राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (NHA) के CEO सुनील कुमार बर्नवाल ने राज्य नोडल एजेंसी (SNA) की मुख्य कार्यपालन अधिकारी डॉ. प्रियंका शुक्ला और प्रोजेक्ट डायरेक्टर (ऑपरेशन) धर्मेंद्र गहवाई को दिया। छत्तीसगढ़ में PM-JAY के तहत पंजीकृत 97% अस्पताल सक्रिय हैं, जो देश में सबसे अधिक है। लगातार काम कर रहा राज्य मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने हाल ही में कलेक्टर्स कॉन्फ्रेंस में आयुष्मान भारत योजना को एक महत्वपूर्ण एजेंडा के रूप में शामिल किया था और सभी कलेक्टर्स को जिलों में योजना की नियमित समीक्षा करने के निर्देश दिए थे। राज्य नोडल एजेंसी ने हाल के महीनों में कई अहम कदम उठाए हैं। इनमें संदिग्ध दावों की पहचान कर फील्ड ऑडिट करना, क्लेम प्रोसेसिंग के समय को कम करना, सभी हितधारकों को ट्रेनिंग देना, स्टेट एंटी फ्रॉड यूनिट (SAFU) टीम को मजबूत करना और अस्पतालों के साथ लगातार बातचीत करना शामिल है। जनवरी 2025 में NHA की समीक्षा बैठक में छत्तीसगढ़ में संदिग्ध दावों की संख्या ज्यादा पाई गई थी, जिस पर राज्य नोडल एजेंसी ने तुरंत कार्रवाई की। 45 अस्पतालों पर की थी कार्रवाई स्वास्थ्य विभाग की टीम ने जनवरी-फरवरी 2025 के बीच राज्य के 52 अस्पतालों का अचानक निरीक्षण किया। योजना के नियमों का पालन न करने पर 45 अस्पतालों पर कार्रवाई की गई, जो अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई है। इसके अलावा, 32 हजार से ज्यादा मामलों में फील्ड ऑडिट किए गए, जिससे फर्जी दावों को रोका जा सका और दावे निपटाने की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया गया। मुख्य एजेंडा में शामिल थी योजना स्वास्थ्य सचिव अमित कटारिया की अध्यक्षता में मुख्य चिकित्सा अधिकारियों की तिमाही समीक्षा बैठक में PM-JAY को मुख्य एजेंडा बनाया गया। स्टेट नोडल एजेंसी की मुख्य कार्यपालन अधिकारी के नेतृत्व में जिलों की मासिक समीक्षा बैठकें भी शुरू की गईं। जिलों को हर दिन की उपलब्धियों के आधार पर फीडबैक और दिशा-निर्देश दिए जाने लगे। अस्पतालों की समस्याओं को दूर करने के लिए इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के प्रतिनिधियों और निजी अस्पतालों के साथ नियमित बैठकें हो रही हैं। अस्पतालों की समस्या का भी समाधान हाल ही में NHA विशेषज्ञों की मौजूदगी में एक कंसल्टेशन भी हुआ, जिसमें अस्पतालों की समस्याओं का समाधान किया गया, सुझाव लिए गए और उन्हें योजना की नई प्रक्रियाओं की जानकारी दी गई। इन प्रयासों से संदिग्ध दावों की संख्या में भारी कमी आई है। जहां पहले हर हफ्ते 2,000 से ज्यादा संदिग्ध दावे आते थे, वहीं अब यह संख्या 500 से कम हो गई है। क्लेम अप्रूवल का समय भी घटकर 7-10 दिन रह गया है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण के आंकड़ों के अनुसार, छत्तीसगढ़ में PM-JAY के तहत पंजीकृत 97% अस्पताल सक्रिय हैं। यह पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश (62%) और देश के औसत (52%) से काफी ज्यादा है।  

नवजात के सीने पर लिखी शर्मनाक जानकारी, हाई कोर्ट ने स्वास्थ्य अधिकारियों को लगाई फटकार, परिजनों को मुआवजा

बिलासपुर   छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राजधानी रायपुर के डा. भीमराव आंबेडकर अस्पताल में नवजात शिशु के सीने पर 'इसकी मां एचआइवी पाजिटिव है' लिखी तख्ती लगाने की घटना को लेकर सख्त रुख अपनाया है। अदालत ने इसे अमानवीय और असंवेदनशील कृत्य बताते हुए राज्य सरकार को नवजात के माता-पिता को दो लाख का मुआवजा चार सप्ताह के भीतर देने का आदेश दिया है। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति विभु दत्त गुरु की खंडपीठ ने मंगलवार को दिया। अदालत ने इस मामले को स्वतः संज्ञान में लेकर सुनवाई की थी। क्या है मामला? एक खबर प्रकाशित हुई थी कि रायपुर के अंबेडकर अस्पताल में एक नवजात के सीने के पास तख्ती लगाई गई थी, जिस पर लिखा था 'इसकी मां एचआइवी पाजिटिव है।' यह दृश्य देखकर पिता व स्वजन रो पड़े थे। खबर सामने आने के बाद हाई कोर्ट ने तत्काल मामले का संज्ञान लिया और मुख्य सचिव को जांच कर व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था। मुख्य सचिव ने पेश की रिपोर्ट मुख्य सचिव ने कोर्ट में व्यक्तिगत हलफनामा पेश किया। इसमें बताया गया कि चिकित्सा शिक्षा निदेशक की अध्यक्षता में जांच समिति गठित की गई थी, जिसने घटना की जांच कर रिपोर्ट सौंपी है। राज्य सरकार ने यह भी बताया कि, एचआइवी/एड्स (प्रीवेंशन एंड कंट्रोल) Act, 2017 के प्रावधानों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित किया जा रहा है। सभी सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कालेजों को गोपनीयता बनाए रखने और भेदभाव रोकने के लिए निर्देश जारी किए गए हैं। स्वास्थ्यकर्मियों को संवेदनशील बनाने के लिए नियमित प्रशिक्षण व जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। कोर्ट ने कही सख्त बातें हाई कोर्ट ने कहा कि, किसी भी सरकारी अस्पताल द्वारा मरीज की पहचान और बीमारी सार्वजनिक करना निजता और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित है। अदालत ने कहा कि, इस तरह की हरकत न केवल असंवेदनशील है बल्कि असंवैधानिक भी। यह मरीज और उसके परिवार के जीवन को सामाजिक कलंक में धकेल सकती है। अगली सुनवाई 30 अक्टूबर को कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि, माता-पिता को दो लाख का मुआवजा चार सप्ताह में अदा किया जाए। भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों, इसके लिए कड़े दिशा-निर्देश और संवेदनशीलता प्रशिक्षण सुनिश्चित किया जाए। इस मामले की अगली सुनवाई 30 अक्टूबर 2025 को होगी, जिसमें अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।