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SC ने सुनाया बड़ा आदेश, दुर्घटना के शिकार बच्चों और दिव्यांगों को मिले कुशल श्रमिक के बराबर मुआवजे

इंदौर सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश के एक दुर्घटना क्लेम मामले में सुनवाई करते हुए एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा है कि दुर्घटना में बच्चे की मृत्यु या उसके स्थायी रूप से दिव्यांग होने पर क्षतिपूर्ति की गणना उसे कुशल श्रमिक मानते हुए की जाएगी। राज्य में दुर्घटना के समय कुशल श्रमिक का जो न्यूनतम वेतन होगा, उसे ही बच्चे की आय माना जाएगा। दावेदार व्यक्ति को न्यायाधिकरण के समक्ष न्यूनतम वेतन के संबंध में दस्तावेज पेश करने होंगे।  सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश के एक दुर्घटना क्लेम मामले में सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसका असर देशभर में होगा। सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि दुर्घटना में बच्चे की मृत्यु या स्थायी रूप से दिव्यांग होने पर क्षतिपूर्ति की गणना अब बच्चे को कुशल श्रमिक मानते हुए की जाएगी। राज्य में दुर्घटना के समय कुशल श्रमिक का जो न्यूनतम वेतन होगा, उसे ही बच्चे की आय माना जाएगा। दावेदार व्यक्ति को न्यायाधिकरण के समक्ष न्यूनतम वेतन के संबंध में दस्तावेज पेश करने होंगे, अगर वह ऐसा नहीं कर पाता है तो इन दस्तावेजों को पेश करने की जिम्मेदारी बीमा कंपनी की होगी। फैसले की प्रति सभी मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरणों को भेजी जाए, ताकि निर्देशों का सख्ती से पालन सुनिश्चित हो सके। बता दें, अब तक दुर्घटना में बच्चे की मृत्यु या स्थायी दिव्यांग होने की स्थिति में क्षतिपूर्ति की गणना नोशन इंकम (काल्पनिक आय, वर्तमान में 30 हजार रुपये प्रतिवर्ष) के हिसाब से की जाती है, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। अब राज्य में कुशल श्रमिक के न्यूनतम वेतन के हिसाब से क्षतिपूर्ति मिलेगी। वर्तमान में मप्र में कुशल श्रमिक का न्यूनतम वेतन 14,844 मासिक, यानी 495 रुपये प्रतिदिन निर्धारित है। साल 2012 में हुई थी दुर्घटना, ऐसे सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा मामला 14 अक्टूबर 2012 को इंदौर निवासी आठ वर्षीय हितेश पटेल पिता के साथ सड़क पर खड़ा था, तभी गुजर रहे वाहन ने टक्कर मार दी। दुर्घटना में हितेश को गंभीर चोट आई। यह कहते हुए कि उसे स्थायी दिव्यांगता आई है, मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (जिला न्यायालय) के समक्ष दस लाख रुपये का क्षतिपूर्ति दावा प्रस्तुत किया गया। जिला न्यायालय ने यह मानते हुए कि हितेश को 30 प्रतिशत दिव्यांगता आई है, उसे तीन लाख 90 हजार रुपये क्षतिपूर्ति देने के आदेश बीमा कंपनी को दिए। इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। हाई कोर्ट ने यह मानते हुए कि चूंकि हितेश की आयु सिर्फ आठ वर्ष है, क्षतिपूर्ति की राशि को बढ़ाकर आठ लाख 65 हजार रुपये कर दिया। इस फैसले से असंतुष्ट होकर सुप्रीम कोर्ट में अपील हुई। इसे स्वीकारते हुए कोर्ट ने क्षतिपूर्ति की राशि 35 लाख 90 हजार रुपये कर दी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश में क्या? बता दें कि अब तक दुर्घटना में बच्चे की मृत्यु या उसके स्थायी दिव्यांग होने की स्थिति में क्षतिपूर्ति की गणना नोशन इनकम (काल्पनिक आय, वर्तमान में 30 हजार रुपये प्रतिवर्ष) के हिसाब से की जाती है। अब राज्य में कुशल श्रमिक के न्यूनतम वेतन के हिसाब से क्षतिपूर्ति मिलेगी। वर्तमान में मध्य प्रदेश में कुशल श्रमिक का न्यूनतम वेतन 14844 मासिक यानी 495 रुपये प्रतिदिन निर्धारित है।     कुशल श्रमिक के न्यूनतम वेतन को ही मानें बच्चे की आय     कोर्ट ने फैसले की प्रति सभी मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरणों को भेजने का दिया निर्देश ऐसे सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला? 14 अक्टूबर 2012 को इंदौर निवासी आठ वर्षीय हितेश पटेल पिता के साथ सड़क पर खड़ा था, तभी एक वाहन ने उसे टक्कर मार दी। हितेश को गंभीर चोट आई। यह कहते हुए कि उसे स्थायी दिव्यांगता आई है, मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के समक्ष 10 लाख रुपये का क्षतिपूर्ति दावा प्रस्तुत किया गया। न्यायालय ने यह मानते हुए कि हितेश को 30 प्रतिशत दिव्यांगता आई है, उसे तीन लाख 90 हजार रुपये क्षतिपूर्ति देने का आदेश बीमा कंपनी को दिया। इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। हाई कोर्ट ने यह मानते हुए कि चूंकि हितेश की आयु सिर्फ आठ वर्ष है, क्षतिपूर्ति की राशि को बढ़ाकर आठ लाख 65 हजार रुपये कर दिया। ऐतिहासिक फैसला, देशभर में लागू होगा     सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐतिहासिक है। पहली बार बच्चों की मृत्यु या स्थायी दिव्यांग होने पर उन्हें कुशल श्रमिक मानते हुए कुशल श्रमिक के न्यूनतम वेतन के हिसाब से क्षतिपूर्ति के लिए हकदार माना है। फैसले का असर पूरे देश में चल रहे क्लेम प्रकरणों पर पड़ेगा। -राजेश खंडेलवाल, दुर्घटना क्लेम प्रकरण के वकील  

प्रदेश के हर कोर्ट में बंपर भर्ती की तैयारी, जांच अधिकारियों को लैपटॉप मिलेगा

भोपाल  जनता व सरकार कोर्ट में न्याय की लड़ाई न हारे, इसके लिए प्रत्येक कोर्ट में लोक अभियोजक, लोक अभियोजन अधिकार व अन्य अधिकारी, कर्मचारियों की तैनाती की जाएगी। ये भर्तियां 610 पदों (Bumper Recruitment in MP) पर होंगी। नए आपराधिक कानूनों के तहत मामलों की जांच में तेजी लाने के लिए जीपीएस आधारित 25 हजार टैबलेट खरीदे जाएंगे, ये जांच अधिकारियों को देंगे। पहले चरण में 1732 टैबलेट की खरीदी होगी। बता दें कि प्रदेशके मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की अध्यक्षता में मंगलवार 26 अगस्त को हुई कैबिनेट बैठक में इन प्रस्तावों को मंजूरी दी गई। सीसीटीएनएस पर खर्च बढ़ा क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रेकिंग नेटवर्क एण्ड सिस्टम (सीसीटीएनएस) प्रोजेक्ट के तहत काम हो रहा है। पूर्व में इसकी लागत 5 वर्ष के लिए 102 करोड़ 88 लाख थी, जिसे बढ़ाकर 177 करोड़ 87 लाख 51 हजार करने की स्वीकृति दी है। इसी के तहत जीपीएस आधारित टैबलेट दिए जाएंगे। इसके साथ ही मॉडर्न पुलिसिंग को लेकर भी सरकार जल्द कई नए अत्याधुनिक उपकरणों की खरीदारी करेगी। अब जनता चुनेगी अध्यक्ष: मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री ने बताया कि वर्ष 2027 में होने वाले नगरीय निकायों के चुनावों में अध्यक्षों को चुनने के अधिकार सीधे जनता को देंगे। बीच का झंझट ही खत्म करेंगे, ताकि कोई विरोधाभास वाली स्थिति ही पैदा न हो। कैबिनेट बैठक में सीएम डॉ. यादव ने कहा कि गणेश चतुर्थी हो या नवदुर्गा उत्सव, सभी को भव्यता के साथ मनाएंगे। इसके लिए क्षेत्र में जनता को प्रेरित किया जाए। यह तय हो कि हमारे उत्सव में हमारे प्रदेश व देश के अपने लोगों द्वारा तैयार सामग्री का ही उपयोग हो। जनता को स्वदेशी वस्तु की उपयोगिता व वर्तमान महत्व को समझाया जाए। मूर्ति निर्माण में मिट्टी और लुगदी को प्राथमिकता दी जाए। सार्वजनिक धार्मिक आयोजनों सहित घरों में होने वाले पूजा-पाठ में स्वदेशी वस्त्र और साज-सज्जा की सामग्री का उपयोग हो। इससे छोटे व्यापारियों को प्रोत्साहन मिलेगा। अतिरिक्त लोक अभियोजक के 185 पद, अतिरिक्त जिला अभियोजन अधिकारी के 255, सहायक जिला अभियोजन अधिकारी के 100 और सहायक कर्मचारियों के 70 पदों को स्वीकृति दी है। तीन वर्ष में इन पदों पर भर्ती व वेतन आदि पर करीब 60 करोड़ रुपए खर्च होंगे। खरीदेंगे चार हजार मेगावॉट बिजली सरकार केंद्र की ग्रीनशू चार हजार मेगावॉट बिजली खरीदेगी। कैबिनेट ने इसकी मंजूरी दे दी है। यह तीन प्रस्तावित नवीन ताप विद्युत परियोजनाओं से क्रमश 800, 1600 व 800 मेगावॉट खरीदी जाएगी। बिजली की यह खरीदी प्रतिस्पर्धात्मक आधार पर होगी। इसके लिए एमपी पॉवर मैनेजमेंट कंपनी लिमिटेड को अधिकृत किया है। पीएचई 100 मेगावाट का सौर ऊर्जा व 60 मेगावाट का पवन ऊर्जा प्लांट लगाएगा पीएचई सौर व पवन ऊर्जा प्लांट लगाएगा। इससे नल-जल योजना संचालित की जाएंगी। सौर ऊर्जा प्लांट 100 व पवन ऊर्जा प्लांट 60 मेगावाट का होगा।

हाईकोर्ट में अफसरों ने मांगी माफी, संस्कृत विद्यालयों के छात्रों के लिए विशेष परीक्षा का आदेश

जबलपुर   मध्य प्रदेश में अवमानना याचिका की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट में उपस्थित हुए महर्षि पतंजलि संस्कृत संस्थान भोपाल के संचालक प्रभात राज तिवारी एवं असिस्टेंट डायरेक्टर रेशमा लाल ने पूर्व में पारित आदेश का पालन नहीं करने पर बिना शर्त माफी मांगी। उन्होंने हाईकोर्ट में अभिवचन दिया कि संस्कृत विद्यालयों के जो विद्यार्थी परीक्षा में शामिल होने से वंचित हुए हैं, उनके लिए विशेष परीक्षा का आयोजन करवाया जाएगा। छात्रों को परीक्षा के लिए आवेदन करने 7 दिन के लिए पोर्टल खोला जाएगा। जस्टिस विशाल मिश्रा की एकलपीठ ने दोनों अधिकारियों के अधिकारियों के बयान को रिकॉर्ड पर लेते हुए 45 दिन के भीतर प्रक्रिया पूरी करने के निर्देश दिये हैं। पुष्पांजली संस्कृत विद्यालय सिंगरौली और अन्य की तरफ से दायर की गई। अवमानना याचिका में कहा गया था कि महर्षि पतंजलि संस्कृत संस्थान भोपाल ने पूर्व में एक आदेश जारी कर यह शर्त रखी थी कि उनके संस्थान से संबद्ध जिन विद्यालयों के छात्रों ने माशिमं या सीबीएससी से नौवीं या ग्यारहवीं परीक्षा उत्तीर्ण की है, उन्हें दसवीं और बारहवीं में परीक्षा में शामिल नहीं किया जाएगा। जिसके खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी। हाईकोर्ट ने उक्त आदेश को मनमाना मानते हुए निरस्त कर दिया था। हाईकोर्ट द्वारा आदेश निरस्त किये जाने के बावजूद भी संस्थान ने याचिकाकर्ता विद्यालयों के करीब 22 सौ विद्यार्थियों को परीक्षा में शामिल नहीं किया। जिसके कारण उक्त अवमानना याचिका दायर की गई थी। अवमानना याचिका की सुनवाई करते हुए विगत 14 अगस्त को हाईकोर्ट ने उक्त अधिकारियों को नोटिस जारी कर पूछा था कि नियम स्थगित करने के बावजूद याचिकाकर्ता संस्कृत विद्यालयों के विद्यार्थियों को परीक्षा में शामिल क्यों नहीं किया गया। पिछली सुनवाई के दौरान युगलपीठ ने महर्षि पतंजली संस्कृत संस्थान भोपाल के दोनों अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से तलब किया था। याचिकाकर्ता विद्यालयों की तरफ से अधिवक्ता एनएस रूपराह और मुस्कान आनंद ने पक्ष रखा।  

फर्जी मुकदमों में 29 लोगों को फंसाने वाला वकील दोषी, कोर्ट ने दी उम्रकैद और जुर्माना

लख्रनऊ लख्रनऊ में 29 लोगों के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट, रेप समेत अन्य धाराओं में फर्जी मुकदमे दर्ज कराकर उन्हें जेल भेजने और परेशान करने के मामले में आरोपी अधिवक्ता परमानंद गुप्ता को कोर्ट ने दोषी करार दिया है। अधिवक्ता परमानंद गुप्ता को अनुसूचित जाति/जनजाति निवारण अधिनियम के विशेष न्यायाधीश विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने उम्रकैद की सजा सुनाई है। इसके साथ ही 5.10 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है। परमानंद गुप्ता झूठे मुकदमे दर्ज कराने के लिए अपनी पत्नी के ब्यूटी पार्लर में काम करने वाली एक महिला का सहारा लेता था। वह महिला परमानंद के प्रभाव में आकर वही करती थी जैसा वह कहता था। दो भाइयों के खिलाफ विभूतिखंड थाने में दर्ज हुए दुष्कर्म के मुकदमे की विवेचना में एसीपी विभूतिखंड रहे राधा रमण सिंह और विशेष लोक अभियोजक अरविंद मिश्रा द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों और मजबूत पैरवी के आधार पर अधिवक्ता को सजा हुई। विशेष लोक अभियोजक अरविंद मिश्रा ने बताया कि परमानंद गुप्ता का विभूतिखंड में रहने वाले अरविंद यादव और उनके भाई अवधेश यादव से विवाद चल रहा था। परमानंद ने पत्नी के ब्यूटी पार्लर में काम करने वाली पूजा रावत को पीड़िता दर्शा कर दोनों के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट और दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज कराया था। 18 जनवरी 2025 को मुकदमा दर्ज कर विवेचना करने का आदेश दिया गया। मामले की जांच तत्कालीन एसीपी राणा रमण सिंह को सौंपी गई। एसीपी की जांच में आरोप निराधार पाए गए। पता चला कि अधिवक्ता की पत्नी और दोनों आरोपियों के बीच प्रॉपर्टी का विवाद था। इस कारण फर्जी मुकदमा दर्ज कराया गया था। दुष्कर्म, मारपीट और धमकी व इलेक्ट्रानिक साक्ष्यों, फोन की काल डिटेल्स में कोई ऐसा साक्ष्य नहीं मिला जिससे दोनों आरोपी भाइयों पर आरोप सिद्ध हो सके। साक्ष्य कोर्ट में प्रस्तुत किए गए। इसी बीच पता चला कि 18 मुकदमे विभिन्न थानों में खुद परमानंद ने और 11 मुकदमे महिला के माध्यम से दर्ज कराए थे। वे सभी झूठे थे। अदालत ने तलब किया तो वादी ने ही खोल दी पोल इस प्रकरण का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि जब अदालत द्वारा अधिवक्ता परमानंद गुप्ता एवं पूजा रावत को विचारण के लिए तलब किया गया तो पूजा ने 4 अगस्त 2025 को एक प्रार्थना पत्र देकर कहा कि वह रोजगार के सिलसिले में गोरखपुर से लखनऊ आई थी। उसे अधिवक्ता परमानंद गुप्ता एवं उसकी पत्नी संगीता गुप्ता ने अपने जाल में फंसा लिया है। अदालत को पूजा रावत ने यह भी बताया कि संगीता गुप्ता का ब्यूटी पार्लर का काम है, जिसमें वह सहायिका के रूप में काम करती थी तथा संगीता गुप्ता का अरविंद यादव आदि के परिवार से खसरा संख्या 351 के रूप में संपत्ति का विवाद चल रहा है तथा सिविल कोर्ट में मुकदमे भी चल रहे हैं। अर्जी में यह भी कहा गया कि परमानंद गुप्ता ने उसका अनुसूचित जाति होने के तथ्य का फायदा उठाते हुए अरविंद यादव आदि के परिवार के विरुद्ध रेप, छेड़छाड़ आदि के अनेकों मुकदमे अदालतों में दर्ज कराए हैं। पूजा रावत ने अदालत को यह भी बताया कि उसके साथ कथित घटना के समय कोई भी छेड़छाड़ अथवा दुराचार की घटना नहीं हुई बल्कि परमानंद गुप्ता जैसा बयान मजिस्ट्रेट के सामने देने के लिए कहते थे, वैसा ही बयान उसे देना पड़ता था। उसे माफ कर दिया जाए और वह अदालत को सही-सही बात बता रही है। परमानंद जैसे अपराधी प्रैक्टिस करने योग्य नहीं : कोर्ट अदालत ने अपने निर्णय में स्पष्ट रूप से कहा है कि अधिवक्ता परमानंद गुप्ता जैसे अपराधी न्यायालय में प्रवेश और प्रैक्टिस करने योग्य नहीं हैं। न्यायपालिका की शुचिता बनी रहे, इस आशय से सूचना एवं निर्णय की प्रति बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश को पत्र के साथ भेजी जाए। इसके साथ ही कोर्ट ने पूजा रावत की अर्जी व उसके द्वारा दिए गए बयानों के आधार पर उससे सशर्त माफी दे दी। मौके पर पहुंची पुलिस को नहीं मिला कमरा एसीपी राधा रमण सिंह ने बताया कि दुष्कर्म का मुकदमा दो भाइयों के खिलाफ था, इस पर उन्हें आशंका हुई। पूजा के बयानों के बाद वह घटनास्थल पहुंचे, जहां उसने दुष्कर्म की बात कही थी। स्थलीय निरीक्षण में मौके पर कमरा ही नहीं मिला। वहां खाली प्लॉट था। पूजा और आरोपी भाइयों की काल डिटेल्स खंगाली गई तो दोनों की कभी फोन पर बात भी नहीं हुई थी। घटना के समय की लोकेशन एक नहीं मिली। मुकदमे के गवाहों में अधिवक्ता परमानंद की पत्नी का नाम था। घटनास्थल के आस-पास के गवाहों का वीडियो बयान लिया तो पता चला कि पूजा कभी उस मोहल्ले अथवा आस-पास के इलाके में रही ही नहीं।

AIIMS रायपुर और अन्य अस्पतालों की दयनीय स्थिति पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सरकार से सवाल

बिलासपुर  बिलासपुर हाई कोर्ट ने राजधानी रायपुर के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) सहित प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में व्याप्त अव्यवस्था, लापरवाही और घटिया स्वास्थ्य सेवाओं पर गंभीर नाराजगी जताते हुए राज्य सरकार से जवाब मांगा है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की डिवीजन बेंच ने कहा कि प्रदेश की अधिकांश जनता निजी अस्पतालों में महंगा इलाज कराने में सक्षम नहीं। ये सभी सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं पर निर्भर है। ऐसे में वहां की बदहाली बेहद चिंताजनक और गंभीर है। अदालत ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि स्वास्थ्य सचिव के शपथ पत्र के साथ विस्तृत जवाब पेश किया जाए। अस्पताल में लंबी कतारें लगी रहती हैं। जांच के बाद सर्जरी के लिए 4 महीने रुकना पड़ता है। एक्स-रे जैसी साधारण जांच के लिए भी 3 घंटे का इंतजार करना पड़ता है। कोर्ट ने इन अव्यवस्थाओं के लिए राज्य सरकार से जवाब मांगा है। कोर्ट ने कहा कि राज्य की अधिकांश आबादी निजी अस्पतालों में महंगा इलाज कराने में सक्षम नहीं है और उनकी स्वास्थ्य सेवाओं का मुख्य आधार सरकारी अस्पताल हैं। ऐसे में वहां की लापरवाही और अव्यवस्था बेहद गंभीर है। एम्स में रजिस्ट्रेशन के बाद 48 घंटे इंतजार दरअसल, रायपुर के एम्स में मरीजों को डॉक्टर से मिलने के लिए रजिस्ट्रेशन के बाद करीब 48 घंटे तक इंतजार करने जैसी अव्यवस्थाओं को लेकर मीडिया रिपोर्ट्स को हाईकोर्ट ने जनहित याचिका मानकर सुनवाई शुरू की है। खबरों के मुताबिक अस्पताल में लंबी कतारें लगी रहती हैं, जिससे मरीजों का समय और ऊर्जा दोनों बर्बाद हो रहे हैं। जांच के बाद सर्जरी के लिए चार-चार महीने की देरी हो रही है, जबकि एक्स-रे जैसी साधारण जांच के लिए भी तीन घंटे का इंतजार करना पड़ता है। स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल हाईकोर्ट ने कहा कि गर्भावस्था जांच किट के गलत परिणाम, घटिया गुणवत्ता की सर्जिकल सामग्री और दवाओं की आपूर्ति जैसे मामले सामने आए हैं। यहां तक कि कुछ जीवन रक्षक दवाएं लैब परीक्षण में फेल होने के बावजूद बाजार में बिक रही थीं। हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि इस तरह की खबरें सही हैं तो यह राज्य के स्वास्थ्य विभाग और छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगाता है। डॉक्टरों की लापरवाही पर हाईकोर्ट सख्त बिलासपुर जिले के एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का भी कोर्ट ने जिक्र किया, जहां रिकॉर्ड में 15 डॉक्टर दर्ज थे। लेकिन, सुबह 11 बजे तक वहां कोई भी डॉक्टर मौजूद नहीं था। 250 से अधिक मरीज सुबह से कतार में खड़े रहे, जबकि एक्स-रे यूनिट जैसी महत्वपूर्ण मशीनें एक साल से अधिक समय से बंद पड़ी थीं। रीएजेंट की सप्लाई नहीं होने से हमर लैब भी बंद पड़ी थी। इन गंभीर खामियों और लापरवाहियों को लेकर हाईकोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग के सचिव को व्यक्तिगत शपथपत्र प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं। बता दें कि चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा की डिवीजन बैंच ने सुनवाई की। अब इस मामले की अगली सुनवाई 12 अगस्त को होगी। डिवीजन बेंच ने यह टिप्पणी मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट पर स्वत: संज्ञान लेते हुए की। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, एम्स रायपुर में मरीजों को डॉक्टर से मिलने के लिए रजिस्ट्रेशन के बाद करीब 48 घंटे तक इंतजार करना पड़ रहा है। अस्पताल में लंबी कतारें लगी रहती हैं, जिससे मरीजों का समय, ऊर्जा और स्वास्थ्य तीनों प्रभावित हो रहा है। कोर्ट ने कहा कि यदि ये तथ्य सही हैं तो यह न केवल राज्य के स्वास्थ्य विभाग, बल्कि छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है। इन अव्यवस्थाओं की ओर खींचा ध्यान- जांच के बाद सर्जरी के लिए चार-चार महीने तक की देरी हो रही है। साधारण एक्स-रे जांच के लिए भी मरीजों को तीन घंटे तक इंतजार करना पड़ रहा है। गर्भावस्था जांच किट के गलत परिणाम सामने आ रहे हैं। गुणवत्ताविहीन सर्जिकल सामग्री और दवाओं की सप्लाई हो रही है। कुछ जीवन रक्षक दवाएं लैब परीक्षण में फेल होने के बावजूद बाजार में बिक रही हैं। डॉक्टरों की अनुपस्थिति और बंद मशीनों पर सवाल- सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने बिलासपुर जिले के एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का भी उल्लेख किया, जहां 15 डॉक्टर पदस्थ हैं, लेकिन सुबह 11:15 बजे तक एक भी डॉक्टर मौजूद नहीं थे। इस दौरान 250 से अधिक मरीज सुबह से कतार में खड़े रहे। यहां अस्पताल की एक्स-रे यूनिट एक साल से अधिक समय से बंद थी। इसके अलावा रीएजेंट सप्लाई नहीं होने से हमर लैब भी लंबे समय से काम नहीं कर रहा था। अदालत ने इस पर नाराजगी जताते हुए कहा कि सरकारी अस्पतालों में इस तरह की लापरवाही अस्वीकार्य है और यह आम नागरिकों के मौलिक स्वास्थ्य अधिकारों का उल्लंघन है। कोर्ट की टिप्पणी, तुरंत उठाएं ठोस कदम- हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को स्पष्ट निर्देश दिया कि शपथ पत्र के साथ विस्तृत जवाब दें और बताए कि एम्स रायपुर सहित सरकारी अस्पतालों में अव्यवस्था को दूर करने और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए अब तक क्या कदम उठाए गए हैं। अदालत ने चेतावनी दी कि यदि समय रहते ठोस कार्रवाई नहीं की गई तो यह जनता के भरोसे को तोड़ देगा और स्वास्थ्य व्यवस्था पर गंभीर असर डालेगा।

MP हाईकोर्ट की टिप्पणी: महिला बनी आदर्श पत्नी, लंबे अलगाव के बावजूद निभाया कर्तव्य

भोपाल  मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति विवेक रूसिया और न्यायमूर्ति बिनोद कुमार द्विवेदी की खंडपीठ एक पति की अपील सुन रही थी, जिसमें उसने निचली अदालत के तलाक से इनकार करने के आदेश को चुनौती दी थी. पति-पत्नी की शादी गांव पिपलाडा, इंदौर में हुई थी और 2002 में बेटे का जन्म हुआ था. पति का आरोप था कि पत्नी उसे पसंद नहीं करती, उस पर शराब पीने और अन्य महिलाओं से संबंध होने के आरोप लगाती, गर्भावस्था में खुश नहीं थी और बच्चे के जन्म के बाद मायके चली गई. पत्नी ने इन आरोपों को झूठा बताया और कहा कि पति का एक महिला सहकर्मी से प्रेम संबंध था, जबकि वह हमेशा वैवाहिक दायित्व निभाने के लिए तैयार रही. पति ने पत्नी पर लगाए गंभीर आरोप कोर्ट ने पाया कि पति के दूर रहने के बाद भी पत्नी ससुराल में सास-ससुर और देवर-ननद के साथ संयुक्त परिवार में रही. उसने कभी घर नहीं छोड़ा, न ही पति या उसके परिवार के खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज किया. उसने अपने विवाह के प्रतीक मंगलसूत्र और सिंदूर नहीं त्यागे और अपने कर्तव्यों को निभाती रही. पत्नी ने विपरीत परिस्थितियों में दिखाया धैर्य कोर्ट ने कहा कि यह पत्नी आदर्श भारतीय नारी के गुणों का प्रतीक है, जो विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य, मर्यादा और संस्कार बनाए रखती है. कोर्ट ने तलाक की याचिका खारिज करते हुए पति को अपने उपेक्षित और अनादरपूर्ण व्यवहार से लाभ लेने से रोका.

हाईकोर्ट में याचिका, एक से अधिक यौन अपराध मामले दर्ज कराने वाली महिलाओं का रिकॉर्ड बनाने की मांग

नई दिल्ली  दिल्ली हाई कोर्ट ने  राजधानी पुलिस और अन्य संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे यौन अपराधों की बार-बार शिकायत करने वालों का डेटाबेस बनाने की मांग करने वाली याचिका पर जल्द से जल्द निर्णय लें. मुख्य न्यायाधीश डी. के. उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की बेंच एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई कर रही थी.  कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता पहले ही इस मांग को लेकर दिल्ली पुलिस और अन्य अधिकारियों को आवेदन दे चुका है. बेंच ने याचिका के मामले की मेरिट पर कोई टिप्पणी किए बिना याचिका को निपटा दिया. याचिकाकर्ता की मांग पर कोर्ट ने क्या कहा? याचिकाकर्ता की यह मांग थी कि कोर्ट संबंधित अधिकारियों को निर्देश दे कि वे ऐसे लोगों का डेटाबेस बनाएं जो यौन शोषण के मामलों में एक से अधिक बार शिकायत दर्ज कराते हैं. इस पर कोर्ट ने कहा कि यह फैसला लेना प्रशासन और पुलिस का कार्यक्षेत्र है और 'उन्हें बेहतर पता है कि पुलिसिंग कैसे करनी है.' कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, 'बगैर याचिका में उठाए गए मुद्दों की मेरिट पर कुछ कहे, याचिका को यह निर्देश देते हुए निपटाया जाता है कि संबंधित अधिकारी याचिकाकर्ता की मांग पर जल्द और उचित निर्णय लें.' याचिका में क्या मांग की गई थी? यह पीआईएल शोनी कपूर नामक व्यक्ति की ओर से दाखिल की गई थी, जिनकी ओर से वकील शशि रंजन कुमार सिंह ने पक्ष रखा. याचिका में केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस को यह निर्देश देने की मांग की गई थी कि प्रत्येक पुलिस जिला मुख्यालय में ऐसे शिकायतकर्ताओं का रिकॉर्ड रखा जाए जिन्होंने बलात्कार या यौन अपराधों के आरोपों से जुड़ी एक से अधिक शिकायतें दर्ज कराई हैं. साथ ही, शिकायत दर्ज कराने वाले प्रत्येक व्यक्ति का पहचान पत्र (प्राथमिकता से आधार कार्ड) अनिवार्य रूप से लिया जाए. याचिका में यह भी आरोप लगाया गया कि बलात्कार कानूनों का दुरुपयोग कुछ शिकायतकर्ताओं की ओर से बड़े पैमाने पर किया जा रहा है.

MP में निलंबन पर हाई कोर्ट की सख्ती, विधायक के दबाव को माना अनुचित प्रभाव

 जबलपुर   हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की एकलपीठ ने महिला विधायक के दबाव में किए गए सहकारी बैंक के सीईओ के निलंबन को अनुचित पाकर निरस्त कर दिया। इसी के साथ अविलंब बहाल करने के निर्देश दे दिए। कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि याचिकाकर्ता का निलंबन आदेश शक्तियों का दुरुपयोग करके महिला विधायक के दबाव में पारित किया गया है। ट्रांसफर का मामला दरअसल, गांधीग्राम शाखा से सीधी शाखा ट्रांसफर किए गए एक क्लर्क के तबादले को रद कराने के लिए यह कवायद की गई। विधायक ने इस मामले में पक्षपातपूर्ण तरीके से अपने अधिकार क्षेत्र का दुरुपयोग किया है। याचिकाकर्ता सीधी निवासी राजेश रायकवार की ओर से पक्ष रखा गया। दलील दी गई कि जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक की गांधीग्राम शाखा के एक क्लर्क का सीधी तबादला किया था। याचिकाकर्ता पर लगाया यह आरोप इससे नाराज होकर महिला विधायक (याचिका में रीति पाठक का नाम न होने की वजह से हाई कोर्ट ने यही शब्द इस्तेमाल किया) ने पांच जून, 2025 को फोन पर पहले याचिकाकर्ता को डांटा व धमकाया। इसके बाद याचिकाकर्ता पर आरोप लगाया गया कि उसने विधायक, प्रभारी मंत्री प्रदीप जायसवाल व सहकारिता मंत्री विश्वास सारंग के विरुद्ध अभद्र भाषा का इस्तेमाल करके अपशब्द कहे हैं। फिर विधायक के साथ दो और विधायकों ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर जिले के प्रभारी मंत्री के जरिए 10 जून, 2025 को याचिकाकर्ता को निलंबित करा दिया। 

हूटर और फैंसी नंबर प्लेट पर रोक, हटाने के लिए MP हाईकोर्ट ने दी 7 दिन की मोहलत

इंदौर  निजी वाहनों पर लगे हूटर और गलत तरीके से लगी नंबर प्लेट सात दिनों में हटवाएं। हाईकोर्ट(MP High Court) की इंदौर खंडपीठ ने इंदौर पुलिस को ये अंतरिम आदेश जारी किया है। जस्टिस विवेक रुसिया और जस्टिस बिनोद कुमार द्विवेदी की खंडपीठ ने जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार, डीजीपी, इंदौर पुलिस कमिश्नर, डिप्टी पुलिस कमिश्नर (ट्रैफिक) समेत आरटीओ को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब मांगा है। पत्रिका ने उठाया मुद्दा, अब रंग लाया पत्रिका ने प्रदेशभर में हूटर का रौब दिखाने वाले नेता, जनप्रतिनिधि और दबंगों का रसूख उजागर किया था। इस पर पुलिस हरकत में भी आई। कई जगहों पर कार्रवाई हुई। अब हाईकोर्ट ने सख्त आदेश दिए। सीएम हेल्पलाइन पर नहीं की कार्रवाई हूटर को लेकर छह माह पहले एक अन्य वकील उज्ज्वल फणसे ने भी मुख्यमंत्री हेल्पलाइन पर शिकायत की थी। गलत तरीके से गाड़ियाें पर लगे हूटर हटवाने की मांग की। छह माह में शिकायत टॉप लेवल पर पहुंची पर हर बार अफसर कार्रवाई करने की बात कह शिकायत खत्म करवाने के लिए कहते रहे। अदालत में कई गाड़ियों के फोटो भी पेश अभिभाषक मनीष यादव ने बताया, सरकार ने निजी गाड़ियों पर हूटर, बत्ती लगाने पर प्रतिबंध लगाया है, लेकिन कई निजी गाड़ियां पर ये लगे हैं। नंबर प्लेट भी नियमों के खिलाफ लगी है। इसके खिलाफ पूर्व पार्षद महेश गर्ग ने जनहित याचिका दायर की थी। इस पर गुरुवार को हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान कोर्ट में ऐसी कई गाड़ियों के फोटो भी पेश किए गए, जिन्हें पात्रता नहीं थी, पर हूटर लगे थे। साथ ही बताया कि ये गाड़ियां पूरे शहर में घूम रही हैं, पर पुलिस कार्रवाई नहीं करती। इस पर कोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी किया। कोर्ट ने ७ दिन में सभी गाड़ियों से हूटर हटवाने को कहा है। गलत नंबर प्लेट्स, गाड़ियाें पर लगने वाली फ्लैश लाइट्स के साथ ही नियम विरुद्ध लगी सभी एसेसरीज हटवाने के भी आदेश दिए। इसकी पालन प्रतिवेदन रिपोर्ट भी तलब की। हूटर बजाना गलत है, क्या हूटर लगाना भी गलत है.. कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा कि गाड़ियों से हूटर बजाना तो गलत है, क्या ये लगाना भी गलत है? इस पर अभिभाषक यादव ने बताया कि मोटर व्हीकल एक्ट में हूटर, फ्लैश लाइट्स, नंबर प्लेट्स आदि के लिए नियम तय हैं। उन्होंने नियमों का उल्लेख भी किया।

पति की संपत्ति पर तलाक के बाद नहीं रहेगा हक़: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का साफ़ आदेश

बिलासपुर  छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि विवाह विच्छेद (तलाक) के बाद पत्नी का पति की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं रह जाता। अदालत ने कहा कि तलाक की डिक्री मिलने के बाद पत्नी का वैवाहिक दर्जा खत्म हो जाता है और वह पति की संपत्ति पर उत्तराधिकार या स्वामित्व का दावा नहीं कर सकती। हाई कोर्ट ने रायगढ़ सिविल कोर्ट के आदेश को सही ठहराते हुए पत्नी की अपील खारिज कर दी। जिंदल स्टील स्टाफ से प्रेम विवाह, 2010 से रहने लगे अलग रायगढ़ निवासी युवक, जो जिंदल स्टील में कार्यरत था। उसने 11 मई 2007 को जिंदल स्टील प्लांट के स्टाफ से प्रेम विवाह किया था। कुछ वर्षों बाद पत्नी के चरित्र पर सवाल उठाते हुए दोनों के बीच विवाद शुरू हो गया और वे वर्ष 2010 से अलग-अलग रहने लगे। पति ने वर्ष 2013 में रायगढ़ के पारिवारिक न्यायालय में तलाक के लिए आवेदन दायर किया। फैमिली कोर्ट ने मार्च 2014 को पति के पक्ष में तलाक की डिक्री जारी कर दी। आदेश के अनुसार, पति-पत्नी का वैवाहिक संबंध 31 मार्च 2014 से समाप्त हो गया। संपत्ति पर अधिकार के लिए दाखिल किया सिविल वाद, सिविल कोर्ट ने किया खारिज तलाक के बावजूद पत्नी ने पति की संपत्ति पर अधिकार जताते हुए रायगढ़ सिविल कोर्ट में सिविल वाद दायर किया। लेकिन सिविल कोर्ट ने यह कहते हुए वाद खारिज कर दिया कि तलाक के आदेश के बाद पत्नी का पति की संपत्ति पर कोई वैध अधिकार नहीं बनता है। पति ने मकान खरीदा, पत्नी ने कर लिया कब्जा पति ने रायगढ़ में एक मकान खरीदा था, जिसे किराए पर दिया गया था। तलाक के बाद पत्नी अपने 8-10 साथियों के साथ जबरन उस मकान में घुस गई और अवैध रूप से कब्जा कर वहीं रहने लगी। इस घटना के बाद पति ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई। पुलिस ने पत्नी सहित अन्य आरोपितों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 452 व 448/34 के तहत प्रकरण दर्ज किया है। पत्नी का उत्तराधिकार हो जाता है समाप्त: हाई कोर्ट सिविल कोर्ट के आदेश के खिलाफ महिला ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में अपील दायर की। हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि विवाह विच्छेद की तारीख (31 मार्च 2014) से दोनों के वैवाहिक संबंध समाप्त हो चुके हैं। इसलिए पत्नी के पास पति की संपत्ति पर कोई भी वैधानिक अधिकार नहीं बचता। अदालत ने कहा कि तलाक की डिक्री के बाद पत्नी का दर्जा समाप्त हो जाता है, इसलिए उत्तराधिकार का अधिकार भी स्वतः समाप्त हो जाता है। अदालत ने सिविल कोर्ट रायगढ़ के आदेश की पुष्टि करते हुए पत्नी की अपील को खारिज कर दिया है।