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बिहार चुनाव में विशेष व्यवस्था: बुर्का-घूंघट वाली वोटर्स की पहचान के लिए फिर लागू होगा पुराना नियम

पटना  बिहार विधानसभा चुनाव और सात राज्यों में आठ विधान सभा सीटों पर उपचुनाव में पर्दानशीन यानी घूंघट, बुर्का, नक़ाब, हिजाब में आने वाली वोटर्स को पहचान के लिए पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त तिरुनेल्लई नारायण अय्यर शेषन यानी टीएन शेषन के 1994 में जारी आदेश पर अमल करने का निर्देश दिया गया है. यानी शेषन का हुक्म 35 साल बाद भी रामबाण है. टीएन शेषन के आदेश के अनुसार, संविधान के अनुच्छेद 326 में प्रावधान है कि लोकसभा और प्रत्येक राज्य की विधान सभा के चुनाव सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर होंगे. अनुच्छेद 326 में प्रावधान है कि लोकसभा और राज्यों की विधान सभाओं के लिए निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर होंगे. लोकसभा और प्रत्येक राज्य की विधान सभा के लिए निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर होंगे. यानि की प्रत्येक व्यक्ति जो भारत का नागरिक है और जिसकी आयु ऐसी तारीख को अठारह साल से कम नहीं है, जो समुचित विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन इस निमित्त नियत की जाए और जो इस संविधान या समुचित विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि के अधीन अनिवास, चित्त की विकृति, अपराध या भ्रष्ट या अवैध आचरण के आधार पर अन्यथा निरर्हित नहीं है, ऐसे किसी निर्वाचन में मतदाता के रूप में पंजीकृत होने का हकदार होगा. संविधान के अनुच्छेद 325 में आगे प्रावधान किया गया है कि धर्म, मूलवंश, जाति या लिंग के आधार पर कोई भी व्यक्ति किसी विशेष निर्वाचक नामावली में सम्मिलित होने के लिए अपात्र नहीं होगा या सम्मिलित होने का दावा नहीं कर सकेगा. संसद के किसी सदन या किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन या सदन के लिए निर्वाचन हेतु प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र के लिए एक सामान्य निर्वाचक नामावली होगी और कोई भी व्यक्ति केवल धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग या इनमें से किसी के आधार पर किसी ऐसी नामावली में सम्मिलित होने के लिए अपात्र नहीं होगा या किसी ऐसे निर्वाचन क्षेत्र के लिए किसी विशेष निर्वाचक नामावली में सम्मिलित होने का दावा नहीं कर सकेगा. इस प्रकार, देश में महिला वोटर्स को लोकसभा और राज्य विधान सभाओं के चुनावों के मामले में वही निर्वाचन अधिकार प्राप्त हैं जो पुरुष मतदाताओं को दिए गए हैं. लेकिन यह देखा गया है कि कुछ राज्यों या राज्यों के कुछ क्षेत्रों में उक्त चुनावों में महिला वोटर्स की भागीदारी पुरुष वोटर्स की तुलना में तुलनात्मक रूप से कम रही है. चुनावों में महिला वोटर्स की भागीदारी के इतने कम प्रतिशत के कई कारण हो सकते हैं, इनमें से कई कारण सामाजिक और धार्मिक वर्जनाओं के कारण हो सकते हैं, विशेष रूप से किसी विशेष समुदाय की पर्दानशीन महिलाओं या कुछ अन्य समुदायों की महिलाओं के बीच जो परिवार और गांव के बुजुर्गों की उपस्थिति में पर्दा प्रथा का पालन करती हैं, या कुछ आदिवासी क्षेत्रों में भावनात्मक कारणों के कारण हो सकते हैं, विशेष रूप से उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में. आयोग चुनावों में महिला वोटर्स की इतनी कम भागीदारी को लेकर बेहद चिंतित है. आयोग चाहता है कि ऐसे सभी कदम उठाए जाएं जिनसे ज़्यादा से ज़्यादा महिला मतदाता बिना किसी हिचकिचाहट के चुनावी प्रक्रिया में पूरी तरह से भाग ले सकें और चुनाव ज़्यादा सार्थक और लोकतांत्रिक बन सकें. विशेष रूप से, आयोग यह सुनिश्चित करना चाहता है कि किसी भी महिला मतदाता को अपने मताधिकार से वंचित न किया जाए या उसके प्रयोग में बाधा न आए. मतदान केन्द्र में किसी भी प्रकार की सुविधा की कमी के कारण, विशेष रूप से महिला वोटर्स की गोपनीयता, गरिमा और शालीनता का पूर्ण ध्यान रखते हुए पहचान या अमिट स्याही लगाने के मामले में, किसी भी प्रकार की सुविधा की कमी के कारण, मतदान केन्द्र में किसी भी प्रकार की सुविधा की कमी के कारण, विशेष रूप से महिला वोटर्स की गोपनीयता, गरिमा और शालीनता का पूर्ण ध्यान रखते हुए, मतदान केन्द्र में किसी भी प्रकार की सुविधा की कमी के कारण, मतदान केन्द्र में किसी भी प्रकार की सुविधा की कमी के कारण, विशेष रूप से महिला मतदाताओं की पहचान या अमिट स्याही लगाने के मामले में, किसी भी प्रकार की सुविधा की कमी के कारण, मतदान केन्द्र में किसी भी प्रकार की सुविधा की कमी के कारण, विशेष रूप से महिला मतदाताओं की गोपनीयता, गरिमा और शालीनता का पूर्ण ध्यान रखते हुए निर्वाचन संचालन नियम, 1961 के नियम 34 में विशेष रूप से प्रावधान है कि जहां मतदान केन्द्र पुरुष और महिला दोनों वोटर्स के लिए हैं, वहां पीठासीन अधिकारी निर्देश दे सकेगा कि उन्हें मतदान केन्द्र में बारी-बारी से अलग-अलग समूहों में प्रवेश दिया जाएगा. रिटर्निंग अधिकारी या पीठासीन अधिकारी किसी मतदान केन्द्र पर महिला निर्वाचकों की सहायता करने के लिए तथा सामान्यतः महिला निर्वाचकों के संबंध में मतदान कराने में पीठासीन अधिकारी की सहायता करने के लिए तथा विशेष रूप से, यदि आवश्यक हो तो किसी महिला निर्वाचक की तलाशी लेने में सहायता करने के लिए किसी महिला को परिचारिका के रूप में नियुक्त कर सकेगा. यह सुनिश्चित करने के लिए कि महिला मतदाता चुनाव में पूरी तरह से भाग लें और महिला वोटर्स का मतदान प्रतिशत बेहतर हो, आयोग ने समय-समय पर कई निर्देश जारी किए हैं. आयोग ने 'रिटर्निंग ऑफिसर्स के लिए हैंडबुक' के अध्याय 2 में पहले ही निर्देश जारी कर दिए हैं कि जिन स्थानों पर एक ही भवन या परिसर में दो मतदान केंद्र स्थापित हैं, वहाँ एक को पुरुषों के लिए और दूसरे को महिलाओं के लिए आवंटित करने में कोई आपत्ति नहीं है. आयोग ने आगे स्पष्ट किया है कि सामान्य मतदान केंद्रों में भी पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग कतारें बनाई जानी चाहिए. आयोग ने यह भी निर्देश दिया है कि जब किसी विशेष मतदान क्षेत्र के पुरुष और महिला मतदाताओं के लिए अलग-अलग मतदान केंद्र बनाए जाते हैं, तो उन्हें यथासंभव एक ही भवन में स्थित होना चाहिए. इस संबंध में रिटर्निंग अधिकारियों के लिए पुस्तिका के अध्याय 9 की ओर भी ध्यान आकृष्ट किया जाता है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि जहां महिला वोटर्स की संख्या अधिक है, विशेषकर पर्दानशीन महिलाएं, वहां वोटर्स की पहचान करने का कार्य करने के लिए महिला मतदान अधिकारियों की नियुक्ति की जानी चाहिए. ताकि सामाजिक या धार्मिक … Read more

निर्वाचन आयोग का सख्त आदेश: वोटिंग डे पर कर्मचारियों को देना होगा वैतनिक अवकाश

नई दिल्ली भारत निर्वाचन आयोग ने बिहार विधानसभा चुनाव और सात राज्यों के आठ विधानसभा क्षेत्रों में होने वाले उपचुनावों के मतदान के दिनों में वैतनिक अवकाश की घोषणा की है। चुनाव आयोग की ओर से शनिवार को जारी विज्ञप्ति के अनुसार जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 135बी के तहत, मतदान के हकदार प्रत्येक कर्मचारी को मतदान के दिन वैतनिक अवकाश दिया जाना चाहिए। इस अवकाश के लिए किसी भी कर्मचारी का वेतन नहीं काटा जाना चाहिए और इस नियम का उल्लंघन करने वाले नियोक्ताओं को दंड का सामना करना पड़ सकता है। यह प्रावधान दैनिक वेतनभोगी और अस्थायी कर्मचारियों पर भी लागू होगा, जिससे यह सुनिश्चित हो सके है कि अनौपचारिक क्षेत्र के कर्मचारी बिना किसी वित्तीय नुकसान के मतदान कर सकें। चुनाव आयोग ने यह भी स्पष्ट किया है कि मतदान वाले निर्वाचन क्षेत्रों में पंजीकृत मतदाता लेकिन उन क्षेत्रों के बाहर औद्योगिक या वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों में कार्यरत मतदाता भी मतदान की सुविधा के लिए सवेतन अवकाश के समान रूप से हकदार हैं। प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए, आयोग ने सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों को नियोक्ताओं और अधिकारियों को इन प्रावधानों का कड़ाई से पालन करने का निर्देश देने का निर्देश दिया है। चुनाव आयोग ने प्रत्येक पात्र मतदाता के स्वतंत्र और सुविधाजनक तरीके से मतदान करने के अधिकार की रक्षा के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। यह निर्देश लोकतांत्रिक भागीदारी को मजबूत करने और भारत की चुनावी प्रक्रिया में मतदान को एक मौलिक अधिकार के रूप में बनाए रखने के चुनाव आयोग के निरंतर प्रयासों को रेखांकित करता है। गौरतलब है कि बिहार विधानसभा चुनाव दो चरणों में होने जा रहा है। पहले चरण के लिए मतदान छह नवंबर को और दूसरे चरण के लिए 11 नवंबर को मतदान होगा।

बिहार से सबक: चुनाव आयोग पश्चिम बंगाल में SIR पर कर सकता है ढील

नई दिल्ली बिहार में मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) को लेकर उठे विवादों और कानूनी चुनौतियों के बाद, चुनाव आयोग (EC) अब इस प्रक्रिया में बड़े बदलाव करने जा रहा है। इसका उद्देश्य मतदाताओं की परेशानियों को कम करना और प्रक्रिया को मतदाता अनुकूल बनाना है। बिहार में SIR के दौरान दस्तावेजों की जटिल मांग, फॉर्म न भरने पर नामों की बड़ी संख्या में हटाई गई प्रविष्टियां (डिलीशन) और बहुत कम समय सीमा जैसी समस्याओं को लेकर मतदाताओं में असंतोष था। अब आयोग इन तीनों बिंदुओं पर लचीलापन लाने की योजना बना रहा है। दस्तावेजों की अनिवार्यता में ढील बिहार में पहली बार हर मतदाता से नए दस्तावेजों की मांग की गई थी, जिससे लोगों में भ्रम और तनाव फैला। अब आयोग इस नीति में बदलाव पर विचार कर रहा है ताकि कम से कम मतदाताओं को दस्तावेज जमा करने पड़ें। राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO) पुराने रजिस्टरों और पारिवारिक लिंक के आधार पर ऐसे मतदाताओं की पहचान कर रहे हैं जिनसे नए सिरे से प्रमाण पत्र नहीं मांगे जाएंगे। फॉर्म न भरने पर नाम हटाने की नीति में बदलाव बिहार में इस साल SIR के दौरान करीब 65 लाख नाम ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से हटा दिए गए थे इनमें मृतक, स्थानांतरित व्यक्ति और वे लोग शामिल थे जिन्होंने एन्यूमरेशन फॉर्म या दस्तावेज जमा नहीं किए। यह प्रक्रिया पहले के रिवीजन की तुलना में असामान्य थी। अब आयोग विचार कर रहा है कि ड्राफ्ट सूची से नाम न हटाए जाएं, बल्कि हर मतदाता को अंतिम सूची प्रकाशित होने से पहले फिर से शामिल होने का अवसर दिया जाए। समय सीमा बढ़ाने पर विचार बिहार में SIR प्रक्रिया तीन महीने तक चली। 25 जून से एक महीने तक एन्यूमरेशन, फिर 30 दिन में वेरिफिकेशन, और 30 सितंबर को अंतिम सूची जारी की गई। यह कार्यक्रम विधानसभा चुनावों की घोषणा से सिर्फ छह दिन पहले पूरा हुआ। इस तंग समय सीमा ने मतदाताओं और सरकारी कर्मचारियों दोनों पर बेहद दबाव डाला। अब आयोग मानता है कि इतनी कठोर समय सीमा, वह भी चुनाव से ठीक पहले, व्यावहारिक नहीं है। इसलिए भविष्य के SIR में अवधि बढ़ाने का फैसला लिया जा सकता है। बंगाल, तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी में होंगे SIR चुनाव आयोग के पास अगले SIR के लिए ज्यादा समय नहीं है। पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी में मई 2026 तक नई विधानसभा बननी है। आयोग आम तौर पर फरवरी के अंत तक चुनाव कार्यक्रम घोषित करता है, इसलिए दीपावली के तुरंत बाद इन राज्यों में SIR की घोषणा की संभावना है। हाल ही में बाढ़ या मौसम की विपरीत परिस्थितियों से प्रभावित राज्य तथा वे राज्य जहां स्थानीय निकाय चुनाव होने हैं, उनमें SIR को अगले चरण में आयोजित किया जाएगा।

धनबल पर रोक: चुनाव में अनियमित खर्च, आयोग ने तीन दिन में जब्त किए 33.97 करोड़

 नई दिल्ली बिहार विधानसभा चुनाव और सात राज्यों की आठ विधानसभा में होने वाले उपचुनाव को लेकर चुनाव आयोग सख्त है। चुनाव के दौरान पैसों के दुरुपयोग और मतदाताओं को प्रभावित करने के प्रयासों पर रोक लगाने के लिए निर्वाचन आयोग ने बड़ा कदम उठाया है। आयोग ने सभी विधानसभा क्षेत्रों में व्यय पर्यवेक्षकों की तैनाती की है। जो उम्मीदवारों के चुनावी खर्च पर पैनी नजर रखेंगे। आगामी चुनावों में धनबल, मुफ्तखोरी के साथ-साथ नशीली दवाओं, नशीले पदार्थों और शराब के इस्तेमाल पर अंकुश लगाने के लिए आयोग ने दो चरणों में होने वाले बिहार विधानसभा चुनावों और 8 विधानसभा क्षेत्रों में होने वाले उपचुनावों के लिए सभी प्रवर्तन एजेंसियों को निर्देश जारी किए हैं। एक बयान में चुनाव आयोग ने कहा कि उम्मीदवारों द्वारा किए जाने वाले चुनावी खर्च की निगरानी के लिए व्यय पर्यवेक्षकों को पहले ही तैनात कर दिया गया है और वे चुनाव की अधिसूचना के दिन अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में पहुंच गए हैं। तीन दिन में 33.97 करोड़ जब्त चुनाव आयोग ने कहा, "अपने दौरे के दौरान वे व्यय निगरानी में लगी सभी टीमों से मिलेंगे। उड़न दस्ते, निगरानी दल, वीडियो निगरानी दल मतदाताओं को लुभाने के लिए धनबल या अन्य प्रलोभनों के किसी भी संदिग्ध मामले पर नजर रखने के लिए चौबीसों घंटे सतर्क रहेंगे।" इसी के साथ चुनाव आयोग ने बताया कि चुनाव की घोषणा के बाद से विभिन्न प्रवर्तन एजेंसियों ने कुल 33.97 करोड़ रुपए की नकदी, शराब, ड्रग्स और मुफ्त सामान जब्त किया है। NDA में सीट बंटवारा इससे पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने बिहार चुनावों के लिए अपनी सीट-बंटवारे की घोषणा की। भाजपा और जेडीयू 101-101 सीटों पर, लोजपा (रामविलास) 29 सीटों पर, राष्ट्रीय लोक मोर्चा छह सीटों पर और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) छह सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही है। बता दें कि बिहार चुनाव में एनडीए का मुकाबला राजद के तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले इंडिया ब्लॉक, कांग्रेस, दीपांकर भट्टाचार्य के नेतृत्व वाली सीपीआई (एमएल), सीपीआई, सीपीएम और मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) से होगा। वहीं इस बार बिहार में प्रशांत किशोर और उनकी पार्टी जन सुराज पार्टी के रूप में एक नए खिलाड़ी की एंट्री भी देखने को मिल रही है।

सोशल मीडिया निगरानी बढ़ी: चुनाव आयोग ने सियासी विज्ञापनों व प्रत्याशियों के खातों के लिए दिए निर्देश

 नई दिल्ली चुनाव आयोग ने बिहार विधानसभा के आम चुनाव और जम्मू-कश्मीर समेत छह राज्यों की आठ विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की तारीखों की घोषणा कर दी है। इसी बीच आयोग ने राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों के लिए नए दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं। चुनाव आयोग ने 9 अक्टूबर 2025 को आदेश दिए हैं कि सभी राष्ट्रीय और राज्य राजनीतिक दल, साथ ही चुनाव में भाग लेने वाले प्रत्याशी, किसी भी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया या सोशल मीडिया पर प्रचार करने से पहले मीडिया सर्टिफिकेशन और मॉनिटरिंग कमेटी (एमसीएमसी) से अपने राजनीतिक विज्ञापनों का पूर्व-सत्यापन कराएं। विज्ञापन और सोशल खातों का पूर्व-सत्यापन चुनाव आयोग के निर्देश के अनुसार, किसी भी राजनीतिक विज्ञापन को इंटरनेट या सोशल मीडिया पर जारी करने से पहले एमसीएमसी की मंजूरी लेना अनिवार्य होगा। बता दें कि, सभी राज्य और जिले में एमसीएमसी बनाई गई है जो विज्ञापनों की जांच करेगी और दिशानिर्देशों के अनुसार पूर्व-सत्यापन करेगी। भ्रामक समाचार पर निगरानी मीडिया सर्टिफिकेशन और मॉनिटरिंग कमेटी संदिग्ध मामलों जैसे 'पेड न्यूज' पर भी कड़ी नजर रखेगी और आवश्यक कार्रवाई करेगी। वहीं चुनाव लड़ने वाले सभी प्रत्याशियों को अपने सत्यापित सोशल मीडिया अकाउंट्स की जानकारी नामांकन दाखिल करते समय चुनाव आयोग को देना होगा। चुनावी खर्च का विवरण भी साझा करना अनिवार्य इसके साथ ही चुनावी खर्च का विवरण भी साझा किया जाना अनिवार्य कर दिया गया है। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 77(1) और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार, राजनीतिक दलों को सोशल मीडिया और इंटरनेट प्रचार पर हुए खर्च का विवरण चुनाव आयोग को विधानसभा चुनाव समाप्त होने के 75 दिनों के अंदर देना होगा। इसमें इंटरनेट कंपनियों को भुगतान, विज्ञापन सामग्री तैयार करने का खर्च और सोशल मीडिया अकाउंट के संचालन का खर्च शामिल होगा। कुल मिलाकर चुनाव आयोग का यह कदम डिजिटल प्रचार और सोशल मीडिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है। आयोग का उद्देश्य है कि राजनीतिक प्रचार ईमानदारी और नियमों के अनुरूप हो।

बिहार एसआईआर विवाद: चुनाव आयोग की चुप्पी पर कांग्रेस की तीखी प्रतिक्रिया

 नई दिल्ली कांग्रेस ने मंगलवार को चुनाव आयोग पर फिर से हमला बोलते हुए कहा कि मतदाता सूची से गैर नागरिकों को हटाने के लिए मतदाता सूची गहन पुनरीक्षण की जरूरत पर बल दिया गया, लेकिन चुनाव आयोग में इतनी हिम्मत नहीं है कि वह देशवासियों को बता सके कि बिहार में कितने गैर नागरिकों के नाम मतदाता सूची से हटाए गए। कांग्रेस महासचिव और पार्टी के संचार प्रभारी जयराम रमेश ने आरोप लगाया कि एसआईआर प्रक्रिया में समानता और पारदर्शिता की कमी है। जयराम रमेश ने चुनाव आयोग पर लगाए गंभीर आरोप कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि अगर चुनाव आयोग ने यह जानकारी दी होती कि बिहार में कितने गैर-नागरिकों के नाम मतदाता सूची से हटाए गए, तो उसकी पोल और भी ज्यादा खुल जाती। जयराम रमेश ने बताया कि बिहार विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई मंगलवार से फिर शुरू हो रही है। उन्होंने एक समाचार पत्र में प्रकाशित एक लेख की तस्वीर भी सोशल मीडिया पोस्ट में साझा की, जिसमें एसआईआर प्रक्रिया का विश्लेषण किया गया है। विश्लेषण में दावा किया गया है कि सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप ने बड़े पैमाने पर लोगों के मताधिकार से वंचित होने की आशंकाओं को कम किया है, लेकिन एसआईआर की पूरी प्रक्रिया में सटीकता, समानता, पारदर्शिता और निष्पक्षता को लेकर अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। बिहार चुनाव की तारीखों का एलान विपक्ष बिहार में एसआईआर प्रक्रिया का तीखा विरोध कर रहा है। विपक्ष ने चुनाव आयोग पर सत्तारूढ़ भाजपा के इशारे पर काम करने का आरोप लगाया। हालांकि चुनाव आयोग ने विपक्ष के दावे को सिरे से खारिज कर दिया। आयोग ने साफ किया कि किसी भी पात्र नागरिक को मतदाता सूची से बाहर नहीं रहने दिया जाएगा और किसी भी अपात्र व्यक्ति को मतदाता सूची में शामिल नहीं होने दिया जाएगा। चुनाव आयोग ने सोमवार को बिहार में विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान कर दिया। इस एलान के तहत 6 और 11 नवंबर को दो चरणों में बिहार विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होगा और 14 नवंबर को मतगणना होगी।

बिहार विधानसभा चुनाव का शंखनाद आज, चुनाव आयोग करेगा कार्यक्रम की घोषणा

पटना  भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) आज शाम 4 बजे प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए तारीखों और शेड्यूल की आधिकारिक घोषणा करेगा. उम्मीद लगाई जा रही हैं कि बिहार में दो चरणों में मतदान हो सकता है. वहीं, रविवार को पटना में आयोजित प्रेस वार्ता में मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने स्पष्ट कर दिया था कि आगामी विधानसभा चुनाव 22 नवंबर से पहले संपन्न हो जाएगी, क्योंकि 22 नवंबर को वर्तमान कार्यकाल समाप्त हो रहा है. आयोग ने 4 और 5 अक्टूबर को बिहार का दौरा किया, जहां मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने राजनीतिक दलों, अधिकारियों, पुलिस और सिविल सोसाइटी से मुलाकात की. इस दौरान कानून-व्यवस्था, व्यय निगरानी और मतदान केंद्रों की व्यवस्था पर चर्चा हुई. राजनीतिक दलों ने चरणों की संख्या पर सुझाव दिए और आयोग ने छठ पूजा (18-28 अक्टूबर) और दिवाली को ध्यान में रखते हुए शेड्यूल तैयार किया है. मतदान संभवतः छठ के बाद अक्टूबर-नवंबर में होगा जो 2020 की तरह कम चरणों में हो सकता है. प्रत्येक बूथ पर केवल 1,200 मतदाताओं की अनुमति होगी. राजनीतिक दलों की आयोग से अपील वहीं, राजनीतिक दलों ने चुनाव आयोग के साथ बैठक में छठ पर्व के तुरंत बाद चुनाव कराने की अपील की है जो अक्टूबर के अंत में मनाया जाएगा, ताकि ज्यादा से ज्यादा मतदाताओं की भागीदारी सुनिश्चित की जा सके, क्योंकि बड़ी संख्या में बाहर काम करने वाले लोग त्योहारों के लिए अपने-अपने घर लौटते हैं. 22 साल बाद हुआ वोटर लिस्ट का शुद्धीकरण इससे पहले बिहार दौरे के बाद पटना में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने रविवार को कहा कि बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण से 22 साल बाद मतदाता सूची का शुद्धिकरण हुआ है. उन्होंने कहा कि आगामी विधानसभा चुनावों के लिए कई नई पहल की जा रही हैं, जिन्हें आने वाले समय में पूरे देश में दोहराया जाएगा. मुख्य चुनाव आयुक्त ने 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा के चुनावों में शुरू की जा रही कई पहलों के बारे में भी बताया, जिसमें अनुसूचित जातियों के लिए 38 निर्वाचन क्षेत्र और अनुसूचित जनजातियों के लिए दो अन्य आरक्षित हैं. इन पहलों में, जिन्हें समय आने पर पूरे देश में दोहराया जाएगा, एक नई मानक संचालन प्रक्रिया शामिल है, ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि पंजीकरण के 15 दिनों के अंदर मतदाताओं को ईपीआईसी कार्ड वितरित किए जाएं और मतदान केंद्रों पर मोबाइल जमा सुविधा भी शामिल है. एक मतदान केंद्र पर होंगे 1200 मतदाता सीईसी ने कहा, 'मतदान केंद्रों पर भीड़भाड़ को रोकने के लिए ये फैसला लिया गया है कि किसी भी मतदान केंद्र पर 1,200 से ज़्यादा मतदाता नहीं होंगे. मतदाताओं के लिए मतदान प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए मतदान केंद्रों पर मोबाइल डिपॉज़िट सुविधा शुरू की जा रही है.' हर बूथ की होगी वेबकास्टिंग उन्होंने कहा, 'अन्य नई सुविधाओं में सभी मतदान केंद्रों पर 100 प्रतिशत वेबकास्टिंग और ईवीएम डेटा में विसंगति की शिकायत के मामले में वीवीपीएटी पर्चियों का अनिवार्य सत्यापन शामिल है.' उन्होंने ये भी स्पष्ट किया कि चुनाव प्रक्रिया 22 नवंबर से पहले पूरी कर ली जाएगी, जब वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल समाप्त हो रहा है. आपको बता दें कि बिहार चुनाव में सत्ताधारी एनडीए (बीजेपी-जेडीयू) और महागठबंधन (आरजेडी-कांग्रेस) के बीच कड़ा मुकाबला होने की उम्मीद है. प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी भी इस बार मैदान में है. इस विधानसभा चुनाव में बेरोजगारी, प्रवासन और स्थानीय मुद्दे प्रमुख होंगे. आयोग ने जेल में बंद व्यक्तियों के नामांकन पर संसदीय कानूनों का हवाला देते हुए फैसला लेने की बात कही.  

बिहार चुनाव के लिए चुनाव आयोग ने किया मजबूत इंतजाम, 320 IAS समेत 470 केंद्रीय पर्यवेक्षक तैनात

नई दिल्ली चुनाव आयोग (ईसीआई) ने बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव और कुछ राज्यों में उपचुनावों के लिए केंद्रीय पर्यवेक्षक (सामान्य, पुलिस और व्यय) तैनात करने का फैसला लिया है। आयोग ने विभिन्न राज्यों में सेवाएं दे रहे कुल 470 अधिकारियों को केंद्रीय पर्यवेक्षक के रूप में नियुक्त करने का फैसला किया है। इनमें भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के 320 अधिकारी, भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के 60 अधिकारी और भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) के 90 अधिकारी शामिल हैं। इसके अलावा, आईआरएएस, आईसीएएस जैसी सेवाओं से अधिकारी इसमें शामिल हैं। आयोग के मुताबिक, ये सभी अधिकारी बिहार में होने वाले विधानसभा आम चुनाव और जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, झारखंड, तेलंगाना, पंजाब, मिजोरम और ओडिशा में होने वाले उपचुनावों के लिए नियुक्त किए जा रहे हैं। चुनाव आयोग ने एक प्रेस नोट में बताया, बिहार विधानसभा चुनाव और कुछ राज्यों में उपचुनाव के लिए केंद्रीय पर्यवेक्षकों (सामान्य, पुलिस और व्यय) की तैनाती होगी। आयोग संविधान के अनुच्छेद 324 और प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 20बी के तहत प्रदत्त शक्तियों के तहत निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव की निगरानी के लिए केंद्रीय पर्यवेक्षक नियुक्त करता है। पर्यवेक्षक नियुक्ति से लेकर चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक आयोग की देखरेख, नियंत्रण और अनुशासन में कार्य करते हैं। 'आयोग की आंख और कान होते हैं पर्यवेक्षक' 'पर्यवेक्षक यह सुनिश्चित करने की महत्वपूर्ण और गंभीर जिम्मेदारी निभाते हैं कि चुनाव निष्पक्ष, तटस्थ और विश्वसनीय हों, जो हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था की नींव है। वे आयोग की आंख और कान होते हैं और समय-समय पर रिपोर्ट देते रहते हैं। पर्यवेक्षक आयोग को स्वतंत्र, निष्पक्ष, पारदर्शी और समावेशी चुनाव कराने में मदद करते हैं और साथ ही मतदाताओं की जागरूकता और भागीदारी बढ़ाने में योगदान देते हैं।' पर्यवेक्षकों का मुख्य उद्देश्य उन क्षेत्रों की पहचान कर ठोस सुझाव देना है जिनमें सुधार की जरूरत है। अपनी वरिष्ठता और प्रशासनिक सेवाओं के अनुभव के आधार पर सामान्य और पुलिस पर्यवेक्षक चुनाव के निष्पक्ष संचालन में आयोग की सहायता करते हैं और क्षेत्र स्तर पर चुनाव प्रक्रिया के प्रभावी प्रबंधन की निगरानी करते हैं। व्यय पर्यवेक्षक उम्मीदवारों के चुनाव खर्च की निगरानी करते हैं। इन राज्यों में चुनाव के लिए तैनात होंगे पर्यवेक्षक जारी प्रेस नोट में आगे कहा गया, चुनाव आयोग ने बिहार विधानसभा चुनाव और जम्मू-कश्मीर (बडगाम एवं नगरोटा), राजस्थान (अन्ता), झारखंड (घाटसिला), तेलंगाना (जुबली हिल्स), पंजाब (तारण-तारन), मिजोरम (डम्पा) और ओडिशा (नुआपाड़ा) में होने वाले उपचुनावों के लिए विभिन्न राज्यों में तैनात 470 अधिकारियों (320 आईएएस, 60 आईपीएस और 90 आईआरएस/आईआरएएस/आईसीएएस आदि) को केंद्रीय पर्यवेक्षक के रूप में तैनात करने का निर्णय लिया है।

चुनाव आयोग का अहम ऐलान, पहले पोस्टल बैलेट फिर EVM की गिनती होगी बिहार में

पटना  बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले इलेक्शन कमीशन (चुनाव आयोग) ने बड़ा ऐलान किया है. गुरुवार को आयोग ने बताया कि अब वोटों की गिनती के समय EVM से पहले पोस्टल बैलेट के वोटों की गिनती होगी. यह फैसला पोस्टल बैलेट की संख्या में हुई भारी बढ़ोतरी के मद्देनजर लिया गया है. आयोग ने बताया इसका उद्देश्य वोटों की गिनती में देरी को कम करने के साथ-साथ पारदर्शिता और एकरूपता सुनिश्चित करना है.   पोस्टल बैलेट की गिनती के बाद ही खुलेंगे EVM नए निर्देश के अनुसार, चुनाव आयोग ने कहा कि ईवीएम/वीवीपैट की मतगणना का दूसरा अंतिम चरण तब तक शुरू नहीं होगा जब तक डाक मतपत्रों (पोस्टल बैलट) की गिनती पूरी नहीं हो जाती उस मतगणना केंद्र पर जहां डाक मतपत्रों की गिनती हो रही है. चुनाव आयोग ने यह भी निर्देश दिया कि जहां डाक मतपत्रों की संख्या अधिक हो, वहां रिटर्निंग ऑफिसर (आरओ) को यह सुनिश्चित करना होगा कि पर्याप्त संख्या में टेबल और गिनती कर्मचारी उपलब्ध हों ताकि कोई देरी न हो और मतगणना प्रक्रिया को और सुचारू बनाया जा सके.  चुनाव आयोग के बदलाव से क्या बदलेगा? चुनाव आयोग ने अपने आदेश में साफ तौर पर कहा है कि जब तक पोस्टल बैलेट की गिनती पूरी नहीं होती है. किसी भी हालत में ईवीएम नहीं खोली जा सकेगी. आम तौर पर अब तक ऐसा होता चला आ रहा है कि पोस्टल बैलेट की गिनती पूरी न होने के बाद भी 8:30 बजे ईवीएम खोल दी जाती थी. हालांकि अब ऐसा नहीं हो सकेगा. अब पोस्टल बैलेट की गिनती पूरी होने के बाद ही ईवीएम खोली जाएगी. चुनाव आयोग ने साफ किया कि अगर किसी जगह ज्यादा पोस्टल बैलेट हैं, तो इसके लिए ज्यादा टेबल लगाई जाएंगी. अगर कोई समस्या आती है तो इसकी जिम्मेदारी वहां मौजूद चुनाव अधिकारियों की है. अगर कहीं ज्यादा कर्मचारियों की जरुरत पड़ती है तो वो भी किया जाएगा. ताकि परिणाम आने में किसी भी तरह की कोई देरी न हो, लेकिन पहले पोस्टल बैलेट की गिनती ही पूरी की जाएगी. इसके नतीजों के बाद ईवीएम में मौजूद वोटों की गिनती शुरू होगी. पोस्टल बैलेट से कौन देता है वोट? पोस्टल बैलेट की शुरुआत चुनाव आयोग की तरफ से वोटिंग के प्रति लोगों की जागरूकता बढ़ाने के लिए की गई थी. इसका इस्तेमाल उन लोगों के द्वारा किया जाता है जो कि अपनी नौकरी के कारण अपने चुनाव क्षेत्र में मतदान नहीं कर पाते हैं. इसके साथ ही 80 साल से ऊपर के लोग पोस्टल बैलेट के जरिए ही वोट देते हैं. इनमें दिव्यांग व्यक्ति भी शामिल होते हैं. हालांकि इससे पहले रजिस्ट्रेशन कराना पड़ता है. आम लोगों की वोटिंंग से कई दिन पहले ही इनकी वोटिंंग पूरी हो जाती है.जब भी किसी चुनाव में वोटों की गणना शुरू होती है तो सबसे पहले पोस्टल बैलेट की गिनती शुरू होती है. इसके बाद ईवीएम में दर्ज वोटों की गिनती होती है. चुनाव प्रक्रिया में लगातार बदलाव कर रहा है आयोग प्रेस नोट में इस बात पर जोर दिया गया है कि यह पूरी प्रक्रिया को और अधिक सुव्यवस्थित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. यह पहल चुनाव आयोग की ओर से पिछले छह महीनों में किए गए व्यापक चुनावी सुधारों की श्रृंखला का एक हिस्सा है. आयोग के पिछले 29 उपायों में मतदाताओं की सुविधा बढ़ाने, चुनावी प्रणाली को मजबूत करने और तकनीक के उपयोग को बेहतर बनाने की पहल शामिल रही हैं. 

474 पार्टियों का पंजीकरण खत्म, चुनाव आयोग ने उठाया बड़ा कदम

नई दिल्ली  चुनाव आयोग ने गैर मान्यता प्राप्त पंजीकृत दलों पर बड़ा ऐक्शन लिया है। चुनाव आयोग ने ऐसी 474 राजनीतिक पार्टियों का रजिस्ट्रेशन समाप्त कर दिया है। इससे पहले अगस्त में भी चुनाव आयोग ने बड़ा ऐक्शन लिया था और 334 दलों का पंजीकरण समाप्त किया गया था। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के मुताबिक किसी भी पंजीकृत दल को चुनावी प्रक्रिया में हिस्सा लेना होता है। यदि वह लगातार 6 साल तक इलेक्शन से दूर रहता है तो उसका पंजीकरण समाप्त हो जाता है। इसी नियम के तहत इलेक्शन कमिशन ने यह कार्रवाई की है। इस तरह अगस्त से लेकर अब तक 808 पार्टियों का पंजीकरण समाप्त किया जा चुका है। किसी पंजीकृत राजनीतिक दल को टैक्स छूट समेत कई रियायतें मिलती हैं। लेकिन बीते 6 साल से चुनाव ना लड़ने के बाद भी ऐसी रियायतों का लाभ लेते रहने वाले दलों पर ऐक्शन हुआ है। राजनीतिक दलों के रजिस्ट्रेशन को लेकर जो गाइडलाइंस हैं, उसके मुताबिक यदि कोई दल 6 सालों तक चुनाव नहीं लड़ता है तो फिर उसका पंजीकरण समाप्त किया जा सकता है। 2019 के बाद से ही चुनाव आयोग ऐसे दलों के खिलाफ कार्रवाई कर रहा है, जो चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। इसी के तहत पहले राउंड में 9 अगस्त को ऐक्शन हुआ था और फिर 18 सितंबर को दूसरा ऐक्शन हुआ। इस तरह दो महीने के अंतराल में ही 808 राजनीतिक दलों का पंजीकरण खत्म हुआ है।