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कम खेती, ज्यादा रासायनिक खाद: मध्यप्रदेश में 4.29 लाख टन बढ़ा उपयोग

भोपाल मध्य प्रदेश में खेती का रकबा हर साल घटने के बावजूद रासायनिक खाद की खपत लगातार बढ़ती जा रही है। जैविक खेती के मामले में देश में पहले स्थान पर होने के बाद भी किसानों की रासायनिक खाद पर बढ़ती निर्भरता चिंताजनक है। कृषि विज्ञानियों का कहना है कि जिस तरह से अधिक उत्पादन के लिए मृदा की गुणवत्ता से खिलवाड़ किया जा रहा है, वह खतरनाक है। रासायनिक खाद के बढ़ते उपयोग से हर फसल सीजन में खाद की किल्लत की सूचनाएं आम हो चली हैं। वर्ष 2022-23 में 149.53 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में खरीफ फसलें बोई गई थीं जो 2025-26 में 146 लाख हेक्टेयर रह गईं। इससे उलट इस अवधि में खाद का उपयोग 29 लाख टन से बढ़कर 33.29 लाख टन (सितंबर प्रथम सप्ताह) पहुंच चुका है। जैविक फसल उत्पादन में मध्य प्रदेश की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत देश में जैविक खेती के मामले में मध्य प्रदेश सबसे आगे है। कुल जैविक उत्पादन में 40 प्रतिशत हिस्सा मध्य प्रदेश से आता है। देश में 65 लाख हेक्टेयर में जैविक खेती होती है जिसमें 16 लाख हेक्टेयर मध्य प्रदेश का है फिर भी विरोधाभास यह है कि किसानों की रासायनिक खाद पर निर्भरता बढ़ रही है। वर्ष 2022-23 से 2025-26 के बीच खरीफ फसल का क्षेत्र साढ़े तीन लाख हेक्टेयर घट गया लेकिन खाद की खपत 4.29 लाख टन बढ़ गई। रासायनिक खाद-कीटनाशकों के नुकसान को देखते हुए वर्ष 2011 में तत्कालीन शिवराज सरकार ने जैविक खेती को प्रोत्साहित करने विशेष नीति बनाई थी। इसका लाभ यह हुआ कि मध्य प्रदेश जैविक उत्पादन के मामले में नंबर एक पर पहुंच गया। विशेषज्ञों की राय : दूरगामी परिणाम ठीक नहीं     उत्पादन बढ़ाने के लिए किसान अधिक खाद का उपयोग करता है। तात्कालिक रूप से भले ही इससे लाभ मिलता है लेकिन दूरगामी परिणाम ठीक नहीं होते। मृदा की उर्वरा शक्ति तो प्रभावित होती ही है, भूजल पर भी असर पड़ता है। जो उपज होती है, उसकी गुणवत्ता भी ठीक नहीं होती। – डॉ. जीएस कौशल, पूर्व कृषि संचालक, मध्य प्रदेश शरीर का हर अंग होता है प्रभावित     रासायनिक खाद के माध्यम से एक सीमा से अधिक रसायन मानव शरीर में पहुंचने पर हर सिस्टम पर असर होता है। सबसे अधिक दुष्प्रभाव पेट पर पड़ता है। पेट संबंधी कई बीमारियों के बाद इसका प्रभाव अन्य अंगों पर भी होने लगता है। पोषक तत्व घटने से शरीर में विटामिन व मिनरल्स की कमी होती है। किडनी पर भी असर होता है। कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। – डॉ. आर.आर. वर्डे, सह प्राध्यापक, मेडिसिन  

रेलवे का तोहफा: रेल नीर की कीमत घटी, यात्रियों को मिलेगा सस्ते में शुद्ध पानी

नई दिल्ली  ट्रेन में सफर करने वाले यात्रियों के लिए भारतीय रेलवे ने बड़ी राहत दी है. प्लेटफॉर्म और ट्रेनों में मिलने वाली रेल नीर की बोतल अब पहले से सस्ती हो गई है. पहले जहां यात्रियों को 1 लीटर की बोतल के लिए 15 रुपये चुकाने पड़ते थे, अब वही बोतल सिर्फ 14 रुपये में मिलेगी. इसी तरह आधा लीटर की बोतल अब 9 रुपये में उपलब्ध होगी, जबकि पहले इसकी कीमत 10 रुपये थी. नई दरें 22 सितंबर से लागू होंगी. रेलवे का बड़ा फैसला, जेब पर कम बोझ रेलवे का कहना है कि यात्रियों की जेब पर बोझ कम करने के लिए यह कदम उठाया गया है. रेलवे के मुताबिक हर साल करोड़ों लोग रेल नीर खरीदते हैं और इस छोटे से बदलाव से लाखों यात्रियों को राहत मिलेगी. खासकर लंबी दूरी की यात्रा करने वालों के लिए यह फैसला अहम साबित होगा. रेलवे ने यह भी सुनिश्चित किया है कि नई दरों के साथ बोतलों की गुणवत्ता और शुद्धता पर कोई असर नहीं पड़ेगा. यात्रियों की मांग पर लिया गया निर्णय काफी समय से यात्रियों की ओर से रेल नीर की कीमत कम करने की मांग उठ रही थी. यात्रियों का कहना था कि बाहर से पानी खरीदने पर कई बार उन्हें नकली बोतलें या ज्यादा कीमत चुकानी पड़ती है, ऐसे में रेलवे ही उन्हें भरोसेमंद पानी उपलब्ध कराए. रेलवे ने इस मांग को ध्यान में रखते हुए कीमतों में यह कटौती की है. 22 सितंबर से हर यात्री को मिलेगा फायदा अब जब यात्री प्लेटफॉर्म या ट्रेन में रेल नीर खरीदेंगे तो उन्हें नई दरों का लाभ मिलेगा. 22 सितंबर से लागू होने वाले इस फैसले से हर दिन लाखों बोतलों की बिक्री पर सीधा असर पड़ेगा. उम्मीद है कि इस बदलाव के बाद और भी ज्यादा यात्री रेल नीर को प्राथमिकता देंगे. इससे रेलवे को भी यात्रियों का भरोसा मजबूत करने में मदद मिलेगी.

इंदौर पुलिस की नई पहल: विजय नगर और लसुड़िया थानों में दो-दो प्रभारी तैनात

इंदौर  शहर में लगातार हो रहीं आपराधिक घटनाओं को देखते हुए इंदौर पुलिस कमिश्नर ने एक थाने में 2 थाना प्रभारियों की पोस्टिंग की है. इसको लेकर एक आदेश में जारी किया गया है ताकि शहर में आपराधिक गतिविधियों पर रोकथाम लगाई जा सके. इंदौर में कमिश्नर सिस्टम लागू हुए 2 साल से अधिक हो चुके हैं. लेकिन अभी भी शहर में आपराधिक घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं. जिससे एक थाने में 2 थाना प्रभारियों की पोस्टिंग की गई है. 2 थानों में 2 टीआई की नियुक्ति इंदौर शहर में अपराध के ग्राफ को कम करने के लिए करीब 2 साल पहले पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पुलिस कमिश्नरी सिस्टम लागू किया गया था. लेकिन 2 साल बीतने के बाद भी इंदौर में अपराध के ग्राफ में लगातार इजाफा हो रहा है. इसी कड़ी में इंदौर पुलिस कमिश्नर संतोष सिंह ने आपराधिक घटनाओं पर लगाम कसने के लिए इंदौर के 2 स्थानों पर 2 थाना प्रभारी की नियुक्ति की है. काफी बड़ा है इन दोनों थाना क्षेत्र का एरिया इसको लेकर एक आदेश भी जारी किया गया है कि, शहर में अपराध पर रोक लगाने के लिए 2 थाना प्रभारी नियुक्त किए गए हैं. जिसमें इंदौर के लसूडिया और विजयनगर थाने पर 2 थाना प्रभारी को तैनात किया गया है. इंदौर के विजय नगर और लसुड़िया थाने का एरिया काफी बड़ा है. इन क्षेत्रों में काफी रहवासी क्षेत्र आते हैं. इसी के चलते दोनों थानों पर सबसे पहले 2 थाना प्रभारी को इंदौर पुलिस कमिश्नर के द्वारा तैनात किया गया है. इन थानों के टीआई बदले गए इंदौर के विजय नगर और लसुड़िया थाना के अलावा द्वारकापुरी, आजाद नगर, हीरानगर, छत्रीपुरा, और सराफा समेत कई थानों के टीआई बदले गए हैं. विजयनगर में टीआई चंद्रकांत पटेल की पोस्टिंग है. वहीं, उनकी मदद के लिए मीना बौरासी को भी विजयनगर थाने में नियुक्त किया गया है. वहीं, लसूड़िया थाना में नीतू सिंह की नियुक्ति हुई है. तारेफ सोनी पहले से यहां टीआई हैं. लॉ एंड ऑर्डर पर रखेंगे निगरानी इन दोनों थाने का मूल काम क्षेत्र में लॉ एंड ऑर्डर पर निगरानी रखने और आपराधिक घटनाओं पर तत्काल प्रभाव से करवाई करना रहेगा. 2 थाना प्रभारी की तैनाती होने के बाद क्षेत्र में अपराध के ग्राफ में कमी आने की पूरी संभावना है. इसके साथ ही इंदौर प्रदेश का ऐसा जिला बन गया है, जहां एक थाने पर 2 थाना प्रभारियों को नियुक्त किया गया है.  

भोपाल मेट्रो सेवा शुरू: पहले 7 दिन फ्री यात्रा, फिर ₹20 से शुरू होगा किराया

भोपाल  अगला स्टेशन है…दरवाजे बाईं तरफ खुलेंगे। कृपया, दरवाजों से हटकर खड़े हों। इंदौर को मेट्रो की सौगात मिलने के बाद भोपाल के यात्रियों के मन में भी कुछ इस तरह के ख्यालात आ रहे होंगे। लोग पिछले एक साल से मेट्रो ट्रेन का इंतजार कर रहे हैं। अब ऐसे लोगों के लिए अक्टूबर का महीना खुशखबरी लेकर आ सकता है। दरअसल, मेट्रो के ट्रायल रन के बीच कमर्शियल रन शुरू होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले चरण की मेट्रो को हरी झंडी दिखा सकते हैं। यात्रियों को पहले 7 दिन तक फ्री में सफर करने का मौका मिलेगा। वहीं, कुछ दिनों तक किराए में डिस्काउंट में टिकट मिलने के बाद 20 रुपये की शुरूआती कीमत में लोग यात्रा कर पाएंगे। सीएमआरएस टीम पहुंची भोपाल मेट्रो ट्रेन शुरू करने से पहले कमिश्नर मेट्रो रेल सेफ्टी (CMRS) की एक टीम 24 सितंबर को भोपाल पहुंचेगी। मेट्रो के लिए सीएमआरएस का दौरा सबसे खास होता है। इसकी 'ओके' रिपोर्ट मिलने के बाद कमर्शियल रन शुरू होती है। यह टीम डिपो और गाड़ी को जांचेगी। साथ ही ट्रैक के नट-बोल्ट से लेकर सिग्नल तक देखेगी। यह टीम 25 और 26 सितंबर को निरीक्षण करेगी। यह शेड्यूल आने के बाद एमपी मेट्रो के अधिकारी तैयारियों में जुट गए हैं। इस जांच के बाद एक और केंद्रीय टीम भी आएगी। फाइनल रिपोर्ट के बाद मेट्रों को दौड़ाया जा सकता है। ऐसा रहेगा मेट्रो किराया भोपाल मेट्रो के अफसरों के अनुसार शुरुआती 7 दिन तक यात्री मेट्रो में फ्री सफर कर पाएंगे। इसके बाद 3 महीने तक टिकट पर 75%, 50% और 25% की छूट दी जाएगी। यह छूट खत्म होते ही 20 रुपए का टिकट लेकर लोग मेट्रो का सफर कर पाएंगे। भोपाल के सभी चरण प्रारंभ होने के बाद अधिकतम किराया 80 रुपए रखने का विचार है। 31 मई को इंदौर में चलाई गई मेट्रो के लिए भी यही मॉडल रहा था। फिलहाल यह बाधा बताया जाता है कि जिस लाइन पर पहले मेट्रो चलेगी उसके एम्स, अलकापुरी और डीआरएम ऑफिस स्टेशन पर गेट लगाने समेत अन्य काम अधूरे हैं। इन्हें अगले 15 दिन में पूरा करने का टारगेट तय किया गया है। पहला चरण ही पूरा हुआ आपको बता दें कि राजधानी भोपाल में पहले चरण के तहत ऑरेंज लाइन में एम्स साकेत नगर से सुभाष नगर डिपो तक करीब 6 किलोमीटर की दूरी की लाइन बनाई गई है। इसके बाद दूसरा फेस सुभाषनगर से करोंद तक के लिए कार्य चल रहा है। इसमें करीब 2 से 3 वर्ष लगने का अनुमान है। फिलहाल भोपाल के सुभाष नगर से रानी कमलापति रेलवे स्टेशन ट्रैक पर मेट्रो दौड़ाकर ट्रायल रन किया जा रहा है। ट्रायल रन में न्यूनतम 30 और अधिकतम 80 किमी प्रतिघंटा रफ्तार रखी जा रही है। आनलाइन नहीं मिलेगा टिकट भले ही दिल्ली सहित कई शहरों में टिकट प्रणाली आनलाइन हो गई है। लेकिन भोपाल में आपको मैन्युअल टिकट से यात्रा करना पड़ेगा। बता दें कि ऑटोमैटिक फेयर कलेक्शन सिस्टम लगाने वाली तुर्किए की कंपनी 'असिस गार्ड’ का टेंडर सरकार ने निरस्त कर दिया है। इसकी वजह है तुर्किए ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को ड्रोन देकर मदद की थी।

शारदीय नवरात्रि में खास योग, रवि-अमृत और सर्वार्थ सिद्धि योग के साथ मां दुर्गा का भव्य आगमन

इस साल शारदीय नवरात्रि बेहद खास रहने वाली है। आमतौर पर नवरात्रि 9 दिनों की होती है, लेकिन 2025 में यह पर्व पूरे 10 दिनों तक चलेगा। यह अद्भुत संयोग करीब 9 साल बाद बन रहा है। ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास बताते हैं कि इस बार नवरात्रि 22 सितंबर से शुरू होकर 2 अक्टूबर तक चलेगी। खास बात यह है कि इस बार तृतीया तिथि की वृद्धि हुई है, जिसकी वजह से नवरात्रि में एक अतिरिक्त दिन जुड़ गया है। किस देवी की होगी दो दिन पूजा? तृतीया तिथि दो दिन होने से इस बार मां चंद्रघंटा की पूजा लगातार 24 और 25 सितंबर को होगी। यानी भक्तों को मां के तृतीय स्वरूप की उपासना के लिए दो दिन का अवसर मिलेगा। नवरात्रि में वैसे तो नौ दिनों तक मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। लेकिन इस साल भक्तों को एक अतिरिक्त दिन का सौभाग्य मिलेगा। नवरात्र में नौ दिन शैलपुत्री ब्रह्मचारिणी चंद्रघंटा कूष्मांडा स्कंदमाता कात्यायनी कालरात्रि महागौरी सिद्धिदात्री नौ देवियों की पूजा हाेती हैं। 10 विधाओं में काली, तारा, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, छित्रमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, और कमला की आराधना करते हैं। मंदिर में होगा श्रीमद् देवी भागवत कथा का आयोजन शारदीय नवरात्रों के अवसर पर श्री दुर्गा कीर्तन महिला मंडल रानियां की ओर से श्री दुर्गा कीर्तन मंदिर में श्रीमद् देवी भागवत कथा का आयोजन किया जाएगा। मंदिर कमेटी उप प्रधान संजय आहूजा ने बताया कि 22 सितंबर को कथा का प्रारंभ होगा और 30 सितंबर तक चलेगी। कथा का समय शाम 5 बजे से 7 बजे तक रहेगा। रवि, अमृत व सर्वार्थ सिद्धि योग का संयोग संकल्प विशेष की साधना के लिए योग-संयोग का बड़ा महत्व होता है। इस बार नवरात्रि पर्व के दौरान रवि योग, अमृत सिद्धियोग, सर्वार्थ सिद्धि योग सभी रात्रि में आएंगे जो साधना उपासना की दृष्टि से विशेष माने जाते हैं। 24 व 25 सितंबर की मध्य रात में अमृत सिद्धियोग व रवि योग बनेगा। 26 और 27 सितंबर को रवि योग और 28 सितंबर को सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा। ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि जब बढ़ते क्रम में हो तो वह शुभ मानी जाती है। इस दौरान आदि शक्ति की कृपा प्राप्त करने के लिए उपासना करनी चाहिए। मां दुर्गा का आगमन हाथी पर नवरात्रि के प्रारंभ में मां दुर्गा किस वाहन पर आती हैं, यह भी बहुत शुभ संकेत देता है। इस बार नवरात्रि की शुरुआत रविवार से हो रही है, और मान्यता है कि जब नवरात्रि रविवार या सोमवार से शुरू होती है तो मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आती हैं। हाथी को समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक माना जाता है। इसका मतलब है कि इस साल नवरात्रि देश और समाज में सुख-समृद्धि और उन्नति लेकर आएगी। नवरात्रि घटस्थापना मुहूर्त अमृत मुहूर्त : सुबह 6:19 से 7:49 बजे तक शुभ मुहूर्त : सुबह 9:14 से 10:49 बजे तक अभिजीत मुहूर्त : सुबह 11:55 से 12:43 बजे तक  कलश स्थापना का विशेष महत्व है। इसे घट स्थापना भी कहते हैं, और इसी से नवरात्रि व्रतों की शुरुआत होती है। सही समय पर की गई कलश स्थापना को मां दुर्गा की कृपा प्राप्त करने का मुख्य साधन माना जाता है। क्यों है यह नवरात्रि खास? इस बार 9 नहीं बल्कि पूरे 10 दिन तक मां दुर्गा की पूजा होगी। खासकर मां चंद्रघंटा की उपासना दो दिन तक करने का यह अद्वितीय संयोग भक्तों को दुगुना आशीर्वाद देगा। इसके साथ ही 2 अक्टूबर को विजयादशमी (दशहरा) मनाकर नवरात्रि का समापन होगा। शारदीय नवरात्रि तिथि     22 सितंबर, सोमवार : प्रतिपदा तिथि     23 सितंबर, मंगलवार : द्वितीय तिथि     24 सितंबर, बुधवार : तृतीया तिथि     25 सितंबर, गुरुवार : तृतीया तिथि     26 सितंबर, शुक्रवार : चतुर्थी तिथि     27 सितंबर, शनिवार : पंचमी तिथि     28 सितंबर, रविवार : षष्ठी तिथि     29 सितंबर, सोमवार : सप्तमी तिथि     30 सितंबर, मंगलवार : अष्टमी तिथि     01 अक्टूबर, बुधवार : नवमी तिथि     02 अक्टूबर, गुरुवार : दशहरा हरसिद्धि मंदिर में नवरात्रि में नहीं होगी शयन आरती देश के 52 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ हरसिद्धि मंदिर सहित अन्य देवी मंदिरों में नवरात्रि पर्व की तैयारी हो गई है। देवी आराधना का पर्व शारदीय नवरात्र 22 सितंबर से शुरू होगा। शक्ति पीठ हरसिद्धि मंदिर में परंपरा अनुसार नवरात्र के दौरान मंदिर में शयन आरती नहीं होती है। वहीं मंदिर के गर्भगृह में दर्शनार्थियों का प्रवेश बंद रहेगा। शहर में देवी के प्रसिद्ध मंदिर गढ़कालिका माता मंदिर, हरसिद्धि मातामंदिर व भूखी माता मंदिर में नवरात्रि में प्रतिदिन भक्तों के सहयोग से मंदिर के आंगन में लगी दीप मालिका प्रज्ज्वलित की जाएगी। 10 दिन रहेगी गरबों की धूम शारदीय नवरात्रि पर्व इस बार 10 दिन होने से शहर में गरबा पंडालों में दस दिन गरबा आयोजन होगा। शहर में कई स्थानों पर गरबा पंडाल बनाए गए हैं। कुछ बड़े मैदान में बने पंडाल पर भी नवरात्रि पर्व के दौरान गरबा का आयोजन प्रतिदिन होगा। गरबा प्रशिक्षण का दौर पिछले 15 दिनों से कई स्थानों पर चल रहा है।

मध्य प्रदेश में वन्यजीव संरक्षण को बढ़ावा, नौरादेही से बांधवगढ़ तक बनेगा टाइगर कॉरिडोर

सागर  वन्यजीव संरक्षण के लिए तरह-तरह के संरक्षित वन स्थापित किए जाते हैं. जिनमें टाइगर रिजर्व, वाइल्डलाइफ सेंचुरी और नेशनल पार्क जैसे संरक्षित वन क्षेत्र की स्थापना की जाती है. लेकिन वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन में वाइल्ड लाइफ कॉरिडोर एक नये आयाम के तौर पर तेजी से उभरा है. वन्य जीव विशेषज्ञों का मानना है कि वन्य प्राणियों के संतति विकास के लिए जरूरी है कि उन्हें लंबे समय तक संरक्षित वन क्षेत्र में न रखा जाए. किसी भी प्राकृतिक क्षेत्र को लंबे समय तक बांधकर नहीं रखा जा सकता है. क्योंकि इससे कई तरह के नुकसान होते हैं. ऐसे में वाइल्ड लाइफ कॉरिडोर का नया कॉन्सेप्ट सामने आया है. इसके तहत संरक्षित वन क्षेत्र को आपस में इस तरह से जोड़ा जाता है कि वन्य प्राणी एक दूसरे संरक्षित वन में आसानी से आ जा सकते हैं. मध्य प्रदेश में पिछले 2 सालों के भीतर 2 नए टाइगर रिजर्व अस्तित्व में आने से वाइल्ड लाइफ कॉरिडोर बनने की संभावना बढ़ी है. दरअसल नौरादेही, रातापानी को टाइगर रिजर्व का दर्जा मिलने के बाद 4 टाइगर रिजर्व को जोड़कर वाइल्ड लाइफ कॉरिडोर की संभावना है. जिसमें रातापानी, नौरादेही, पन्ना और बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व शामिल हैं. संरक्षित वन क्षेत्र की समस्याएं वन्य जीव विशेषज्ञों का मानना है कि किसी भी वन क्षेत्र को ज्यादा समय तक बांध के रखने से उसमें रहने वाले वन्यजीवों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. साथ ही साथ वन्य जीव संरक्षण के उद्देश्य भी फलीभूत नहीं हो पाते हैं. क्योंकि लंबे समय तक एक ही तरह के माहौल और वातावरण में रहने के कारण वन्य जीवों की प्रजनन क्षमता पर असर पड़ता है. वन्य जीवों के बीच में जेनेटिक फ्लो रुकता है, जिससे वन्य जीव की संतति विकास पर असर पड़ता है. इसके साथ ही वन्य जीवों की संख्या बढ़ने के कारण पॉपुलेशन मैनेजमेंट में दिक्कत आने के साथ-साथ वन्यजीवों के बीच आपसी संघर्ष बढ़ता है.  वाइल्ड लाइफ कॉरिडोर एक नया आयाम संरक्षित वन क्षेत्र की इन समस्याओं के चलते वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन में वाइल्ड लाइफ कॉरिडोर का तेजी से नाम सामने आया है. विशेषज्ञों का मानना है कि संरक्षित वन क्षेत्र को इस तरह है आपस में जोड़ा जाए कि उनमें रहने वाले वन्य जीव एक दूसरे संरक्षित वन क्षेत्र में आसानी से विचरण कर सके. एक वन क्षेत्र से दूसरे वन क्षेत्र में जाने से जहां वन्य क्षेत्र में वन्यजीवों की बढ़ रही संख्या को नियंत्रित किया जा सकेगा, वहीं वन जीवन की संतति विकास में मदद मिलने के साथ-साथ एक संरक्षित वन क्षेत्र में वन्यजीवों के बीच होने वाले आपकी संघर्ष को रोकने में मदद मिलती है. जानकारों की मानें तो वाइल्ड लाइफ लाइफ कॉरिडोर से इन समस्याओं पर काबू करने में मदद मिलती है. अंतः प्रजनन अवसाद दूर करता है कॉरिडोर  कोई भी जीव लगातार निकट संबंधियों से प्रजनन करके अपनी संतति का विकास करता है तो भावी पीढ़ी पर कई तरह के दुष्परिणाम को देखने मिलते हैं. उनके जीवन जीने की क्षमता पर असर पड़ता है. उनसे जो संतति पैदा होती है, वह कमजोर होती है. इसके अलावा प्रजनन क्षमता भी गिरती है. लेकिन अगर जीव एक वन क्षेत्र से दूसरे वन क्षेत्र में विचरण करते हैं, तो अपने ही तरह के दूसरे अनुवांशिक गुणों वाले जीवों से प्रजनन करके संतति विकास करते हैं. कॉरिडोर जीन प्रवाह में करता है मदद  अनुवांशिकी में जेनेटिक फ्लो यानि जीन प्रवाह का विशेष महत्व है. कोई भी जीव जब एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रवास करता है तो भले ही एक ही संतति के जीव हो लेकिन उनकी आनुवंशिकी में अंतर पाया जाता है. ऐसे में जब वन्य जीव दूसरे वन क्षेत्र में जाकर प्रजनन करते हैं, तो उनकी संतति विविधता लिए होती है और नई पीढ़ी अच्छी और तंदुरुस्त नस्ल की होती है. वन्यजीव संघर्ष पर काबू  संरक्षित वन क्षेत्र में लगातार वन्यजीवों की संख्या बढ़ने के कारण पॉपुलेशन मैनेजमेंट में दिक्कत आती है और वन्यजीवों के बीच में आपसी संघर्ष बढ़ता है. ऐसी स्थिति में वाइल्डलाइफ कॉरिडोर काफी मददगार साबित होता है. क्योंकि किसी संरक्षित वन क्षेत्र में वन्यजीवों की संख्या बढ़ती है तो उन्हें दूसरे संरक्षित क्षेत्र में वहां विस्थापित किया जा सकता है. जहां उनके लिए जीवन यापन की पर्याप्त व्यवस्था हो. 'कॉरिडोर बनाने की कोशिश में लगा है वन विभाग' नौरादेही टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. ए ए अंसारी कहते हैं कि "ये वन्य जीव संरक्षण का नया आयाम है. वाइल्डलाइफ कॉरिडोर से वन्यजीवों को कई तरह के फायदे हैं और उनके संरक्षण में काफी मदद मिलती है. क्योंकि किसी संरक्षित क्षेत्र को अनंत काल तक बांधकर नहीं रख सकते हैं. जब जानवर एक संरक्षित क्षेत्र से दूसरे संरक्षित क्षेत्र में आसानी से बिना बाधा के आ जा सकते हैं तो पॉपुलेशन मैनेजमेंट में आसानी होती है और जेनेटिक फ्लो में मदद मिलती है. इसके अलावा इनब्रीडिंग डिप्रेशन कम होता है. अच्छे और तंदुरुस्त नस्ल के जानवर हमें मिलते हैं. सबसे बड़ा फायदा ये है कि वन्यजीवों के बीच आपसी संघर्ष कम होता है. यदि हमारे संरक्षित वन क्षेत्र आपस में जुड़े रहेंगे तो जानवर इधर से उधर प्राकृतिक तरीके से आ जा सकेंगे. लेकिन किसी संरक्षित वन क्षेत्र को ज्यादा समय तक बंद रखा जाएगा तो एक समय के बाद डिप्रेशन मैनेजमेंट में दिक्कत आएगी." उन्होंने आगे कहा, "नौरादेही टाइगर रिजर्व के कारण संभावित कॉरिडोर अस्तित्व में आया है. नौरादेही के एक तरफ रातापानी, दूसरी तरफ पन्ना टाइगर रिजर्व हैं. इसके अलावा बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से भी कनेक्टिविटी है. वन विभाग इसको आईडेंटिफाई करने में लगा हुआ है. जब यह अस्तित्व में आ जाएगा तो वन्यजीव प्रबंधन आसान हो जाएगा."

कंडोम यूज़ में कौन है एशिया का नंबर वन – भारत या चीन? जानें दिलचस्प आंकड़े

नई दिल्ली मेडिकल स्टोर में आपने अक्सर देखा होगा कि कंडोम का पैकेट दुकान की ऐसी जगह पर रखा होता है, जहां वह आसानी से दिख जाए. वजह साफ है-'कंडोम'. ये शब्द बोलने में लोग आज भी हिचकिचाते हैं. समाज में अक्सर यह शब्द खुलकर नहीं लिया जाता. दुकानदार भी इस मनोविज्ञान को समझते हैं और इसलिए पैकेट को सामने रखते हैं ताकि लोगों को खरीदने में कम परेशानी हो. लेकिन यह वही कंडोम है, जिसका नाम लेने में लोग झिझकते हैं, और जिसका कारोबार आज दुनिया भर में अरबों का है. एशिया में तो इसका मार्केट लगातार बढ़ रहा है. आंकड़ों पर जाने से पहले ज़रूरी है कि कंडोम के इतिहास पर एक नजर डाली जाए. कंडोम का इतिहास कंडोम का जिक्र हजारों साल पुराना है. माना जाता है कि करीब 5000 साल पहले यहूदी पौराणिक कथाओं में राजा मिनोस की कहानी में बकरी के मूत्राशय का इस्तेमाल सुरक्षा के तौर पर किया गया था. प्राचीन मिस्र में भी लोग प्रोटेक्शन का इस्तेमाल करते थे, जबकि प्राचीन रोम में बकरियों और भेड़ों के मूत्राशय और आंतों से बने कंडोम काफी प्रचलित थे. 1920 में आई क्रांति हालांकि असली बदलाव 1920 में लेटेक्स की खोज के साथ आया. इसके बाद कंडोम आसानी से बनने लगे, ज़्यादा टिकाऊ और सुरक्षित हो गए. यही वजह है कि आज कंडोम दुनिया का सबसे सुलभ और भरोसेमंद गर्भनिरोधक साधन माना जाता है. यह न सिर्फ यौन संचारित रोगों से बचाता है, बल्कि जनसंख्या नियंत्रण में मदद करता है और महिलाओं को आजादी देता है. एशिया का कंडोम मार्केट इंडेक्स बॉक्स एक मार्केट रिसर्च और डेटा एनालिटिक्स कंपनी है.यह प्रोडक्ट्स और इंडस्ट्रीज पर बाजार विश्लेषण, ट्रेंड्स, खपत, उत्पादन, इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट डेटा और भविष्य के अनुमान जारी करती है. हाल ही में इंडेक्स बॉक्स ने एशिया के कंडोम मार्केट पर रिपोर्ट तैयार की है, जिसमें खपत, उत्पादन, कीमतों और 2035 तक के  एनालिसिस किया है. इंडेक्स बॉक्स की ताजा रिपोर्ट बताती है कि एशिया का कंडोम मार्केट 2035 तक 19 अरब यूनिट्स और 405 मिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है. साल 2024 इस उद्योग के लिए थोड़ा कमजोर रहा. खपत घटकर 14 अरब यूनिट्स और मार्केट वैल्यू घटकर 292 मिलियन डॉलर रह गई. यह लगातार दूसरा साल था जब गिरावट दर्ज की गई. हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि यह सुस्ती अस्थायी है और आने वाले सालों में बाजार फिर से रफ्तार पकड़ेगा. कौन है सबसे बड़ा उपभोक्ता? रिपोर्ट के अनुसार, चीन 5.8 अरब यूनिट्स के साथ एशिया का सबसे बड़ा उपभोक्ता है, जो कुल खपत का लगभग 42% है. भारत 2.4 अरब यूनिट्स के साथ दूसरे और तुर्की 701 मिलियन यूनिट्स के साथ तीसरे स्थान पर है. प्रति व्यक्ति खपत में UAE आगे कुल खपत में चीन भले ही सबसे बड़ा हो, लेकिन प्रति व्यक्ति खपत के मामले में UAE सबसे आगे है. यहां हर शख्स औसतन 31 यूनिट्स सालाना इस्तेमाल करता है. इसके बाद तुर्की, वियतनाम और थाईलैंड का नंबर आता है. कीमतों और उत्पादन का हाल कीमतों में भी बड़ा अंतर देखने को मिलता है. औसतन इम्पोर्ट कीमत 31 डॉलर प्रति हजार यूनिट्स रही, लेकिन वियतनाम में यह 48 डॉलर और मलेशिया में सिर्फ 9.6 डॉलर रही.उत्पादन की बात करें तो 2022 में 32 अरब यूनिट्स बनने के बाद, 2024 में यह घटकर 26अरब यूनिट्स रह गया. वैल्यू के लिहाज से भी उत्पादन घटकर 522 मिलियन डॉलर रह गया.निर्यात के मामले में थाईलैंड, मलेशिया और चीन सबसे आगे हैं और मिलकर एशिया के 95% एक्सपोर्ट को नियंत्रित करते हैं. आने वाले सालों की तस्वीर रिपोर्ट का अनुमान है कि 2024 से 2035 के बीच एशियाई कंडोम मार्केट औसतन 3% सालाना ग्रोथ रेट दर्ज करेगा. यानी आने वाले दशक में यह बाजार न सिर्फ पहले जैसी रफ्तार पकड़ेगा, बल्कि और बड़ी छलांग लगाएगा.

मध्यप्रदेश को मिलेगा सड़क विकास का बड़ा तोहफा, 2 लाख करोड़ में सुधरेंगी 35,000 KM सड़कें

भोपाल   प्रदेश में करीब ढाई करोड़ की आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है। राज्य में लगभग 35 हजार किलोमीटर सड़कें हैं। शहर की सड़कें हाइवेज से अलग हैं। उन पर यातायात का काफी दबाव होता है। इसलिए जरूरी है कि नगरीय सड़कों को बेहतर गुणवत्ता के साथ बनाया जाए। नगरीय विकास विभाग अगले 5 वर्षों में 2 लाख करोड़ से सड़क विकास के काम कराएगा। यह जानकारी आयुक्त नगरीय प्रशासन संकेत भोंडवे ने  सस्टेनेबल रोड इंफ्रास्ट्रक्चर पर आयोजित कार्यशाला में कही। उन्होंने कहा, इंजीनियर्स सड़क निर्माण तकनीकों को समझें, इसलिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है। 600 इंजीनियर्स जुड़े सड़क निर्माण तकनीक पर आधारित कार्यशाला में प्रदेशभर की निकायों के 600 इंजीनियर्स जुड़े। इसमें आइआइटी इंदौर और रुड़की के अलावा अन्य रिसर्च इंस्टीट्यूट के विशेषज्ञों ने सड़क की गुणवत्ता को लेकर नई तकनीकों और सुधार पर जानकारी दी। शहर में बिछेगा नया सीवेज नेटवर्क वहीं बारिश में पूरा भोपाल शहर जल प्लावन ग्रस्त होने के बाद नगर निगम ने शहर में नया सीवेज नेटवर्क बिछाने के लिए 545 करोड रुपए का फंड मंजूर किया है। इससे नए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट भी बनाए जाएंगे ताकि बड़ा तालाब, छोटा तालाब, शाहपुरा झील जैसे जल स्रोत में गंदा पानी मिलने से बचाया जा सके। गुरुवार को महापौर परिषद की बैठक में यह प्रस्ताव मंजूर किया गया है।