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बिहार से सबक: चुनाव आयोग पश्चिम बंगाल में SIR पर कर सकता है ढील

नई दिल्ली बिहार में मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) को लेकर उठे विवादों और कानूनी चुनौतियों के बाद, चुनाव आयोग (EC) अब इस प्रक्रिया में बड़े बदलाव करने जा रहा है। इसका उद्देश्य मतदाताओं की परेशानियों को कम करना और प्रक्रिया को मतदाता अनुकूल बनाना है। बिहार में SIR के दौरान दस्तावेजों की जटिल मांग, फॉर्म न भरने पर नामों की बड़ी संख्या में हटाई गई प्रविष्टियां (डिलीशन) और बहुत कम समय सीमा जैसी समस्याओं को लेकर मतदाताओं में असंतोष था। अब आयोग इन तीनों बिंदुओं पर लचीलापन लाने की योजना बना रहा है। दस्तावेजों की अनिवार्यता में ढील बिहार में पहली बार हर मतदाता से नए दस्तावेजों की मांग की गई थी, जिससे लोगों में भ्रम और तनाव फैला। अब आयोग इस नीति में बदलाव पर विचार कर रहा है ताकि कम से कम मतदाताओं को दस्तावेज जमा करने पड़ें। राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO) पुराने रजिस्टरों और पारिवारिक लिंक के आधार पर ऐसे मतदाताओं की पहचान कर रहे हैं जिनसे नए सिरे से प्रमाण पत्र नहीं मांगे जाएंगे। फॉर्म न भरने पर नाम हटाने की नीति में बदलाव बिहार में इस साल SIR के दौरान करीब 65 लाख नाम ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से हटा दिए गए थे इनमें मृतक, स्थानांतरित व्यक्ति और वे लोग शामिल थे जिन्होंने एन्यूमरेशन फॉर्म या दस्तावेज जमा नहीं किए। यह प्रक्रिया पहले के रिवीजन की तुलना में असामान्य थी। अब आयोग विचार कर रहा है कि ड्राफ्ट सूची से नाम न हटाए जाएं, बल्कि हर मतदाता को अंतिम सूची प्रकाशित होने से पहले फिर से शामिल होने का अवसर दिया जाए। समय सीमा बढ़ाने पर विचार बिहार में SIR प्रक्रिया तीन महीने तक चली। 25 जून से एक महीने तक एन्यूमरेशन, फिर 30 दिन में वेरिफिकेशन, और 30 सितंबर को अंतिम सूची जारी की गई। यह कार्यक्रम विधानसभा चुनावों की घोषणा से सिर्फ छह दिन पहले पूरा हुआ। इस तंग समय सीमा ने मतदाताओं और सरकारी कर्मचारियों दोनों पर बेहद दबाव डाला। अब आयोग मानता है कि इतनी कठोर समय सीमा, वह भी चुनाव से ठीक पहले, व्यावहारिक नहीं है। इसलिए भविष्य के SIR में अवधि बढ़ाने का फैसला लिया जा सकता है। बंगाल, तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी में होंगे SIR चुनाव आयोग के पास अगले SIR के लिए ज्यादा समय नहीं है। पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी में मई 2026 तक नई विधानसभा बननी है। आयोग आम तौर पर फरवरी के अंत तक चुनाव कार्यक्रम घोषित करता है, इसलिए दीपावली के तुरंत बाद इन राज्यों में SIR की घोषणा की संभावना है। हाल ही में बाढ़ या मौसम की विपरीत परिस्थितियों से प्रभावित राज्य तथा वे राज्य जहां स्थानीय निकाय चुनाव होने हैं, उनमें SIR को अगले चरण में आयोजित किया जाएगा।

MP में भी लागू होगा ‘SIR’ अभियान: चुनाव आयोग की निगरानी में 5.75 लाख वोटर संदेह के घेरे में

रीवा निर्वाचन आयोग के निर्देश पर मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण कार्यक्रम  की शुरुआत हो गई है। इसमें 2003 की मतदाता सूची से वर्तमान मतदाताओं का मिलान किया जाएगा। जिन मतदाताओं के माता-पिता के नाम उस समय की वोटर लिस्ट में दर्ज नहीं थे, उनका सत्यापन किया जाएगा और उनसे जरूरी दस्तावेज मांगे जाएंगे। रीवा और मऊगंज जिले की प्रारंभिक रिपोर्ट आयोग को भेज दी गई है। कुल 5,72,250 मतदाता इस जांच के दायरे में आएंगे। घर-घर जाकर होगी जांच निर्वाचन आयोग के निर्देश पर 2014 बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) डोर-टू-डोर सर्वे करेंगे। रीवा जिले में 1463 और मऊगंज जिले में 518 पोलिंग बूथ शामिल हैं। 1200 से अधिक मतदाताओं वाले मतदान केन्द्रों को विभाजित किया जा रहा है, जिससे दोनों जिलों में करीब 350 नए बूथ बढ़ जाएंगे। कौन-कौन से दस्तावेज देने होंगे जिन परिवारों के नाम 2003 की वोटर लिस्ट में नहीं हैं, उन्हें अपना नाम लिस्ट में बनाए रखने के लिए 2–3 दस्तावेज देने होंगे। जिनका जन्म 1 जुलाई 1987 से पहले हुआ है, उन्हें पिता से संबंध प्रमाणपत्र के साथ कोई एक मान्य दस्तावेज देना होगा। इसके लिए आपको पासपोर्ट, शैक्षणिक प्रमाणपत्र, स्थायी निवास प्रमाणपत्र, वन अधिकार पत्र, जाति प्रमाणपत्र (OBC/SC/ST), आधार कार्ड, पारिवारिक रजिस्टर, जन्म प्रमाणपत्र, बैंक या सरकारी पहचान पत्र, भूमि या मकान आवंटन प्रमाणपत्र, पेंशन आदेश आदि देना होगा। ग्रामीण विधानसभा क्षेत्रों में बढ़े मतदाता? आयोग को भेजी रिपोर्ट के अनुसार शहरी रीवा विधानसभा में मतदाताओं की संख्या 11,239 कम हुई है। वहीं ग्रामीण विधानसभा क्षेत्रों में मतदाता तेजी से बढ़े हैं जैसे…     त्योंथर: +37,287     मनगवां: +93,659     गुढ़: +50,605     सिरमौर: +36,321     मऊगंज: +59,468     देवतालाब: +78,308     2008 में अस्तित्व में आई सेमरिया विधानसभा में अब 2,27,841 मतदाता हैं। BLO का काम हुआ और कठिन पुनरीक्षण कार्य से बूथ लेवल ऑफिसरों की जिम्मेदारी बढ़ गई है। वर्तमान में वे नगरीय निकायों की वोटर लिस्ट तैयार करने में भी लगे हैं, जिससे शिक्षक BLOs का शैक्षणिक कार्य प्रभावित हो रहा है। जल्द ही आयोग की ओर से डोर-टू-डोर सर्वे की विस्तृत कार्ययोजना जारी की जाएगी। जिला उप निर्वाचन अधिकारी सुधीर बेक का बयान निर्वाचक नामावली के गहन पुनरीक्षण में 2003 की सूची से संबंधित मतदाताओं एवं उनके माता-पिता के नामों का मिलान किया जाएगा। प्रारंभिक जानकारी आयोग को भेज दी गई है, आगे के निर्देशानुसार प्रक्रिया अपनाई जाएगी।  

वोटर लिस्ट मामले में EC की मांग: ‘अगर मुस्लिमों के नाम कटे हैं तो ठोस डेटा पेश करें’

नई दिल्ली बिहार एसआईआर पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. याच‍िकाकर्ताओं की ओर से दावे क‍िए गए क‍ि एसआईआर में बहुत सारे मुस्‍ल‍िमों के नाम वोटर ल‍िस्‍ट से हटा द‍िए गए. इस पर चुनाव आयोग की ओर से जवाब द‍िया गया है. आयोग ने कहा क‍ि वे कह रहे हैं कि बहुत सारे मुस्लिमों के नाम हटाए गए हैं लेकिन जब आपके पास डेटा ही नहीं है, तो आपको कैसे पता? आप डेटा तो दीजिए. ज‍िस मह‍िला का नाम हटाने की बात आप कह रहे हैं, वो तो वोटर ल‍िस्‍ट में दर्ज है. एसआईआर पर सुप्रीम कोर्ट में इस वक्‍त जोरदार बहस .  या‍च‍िकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी, प्रशांत भूषण और वृंदा ग्रोवर समेत कई वकील पेश हुए. जबक‍ि चुनाव आयोग की ओर से सीनियर एडवोकेट राकेश द्विवेदी ने दलील रखी. द्व‍िवेदी ने कहा, एडीआर समेत अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से हलफनामे में किए गए वोट काटे जाने के आरोप पूरी तरह से गलत हैं. गलत कहानी गढ़ी जा रही है. जिस महिला का नाम काटने का दावा किया जा रहा है. उसका मसौदा सूची और अंतिम सूची में भी नाम है. ECI के तरफ से कोर्ट को बताया गया कि गलत कहानी गढ़ी गई है कि यह व्यक्ति ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में था और बाद में उसका नाम हटा दिया गया. ECI के वकील ने कहा कि अदालत में एक व्यक्ति द्वारा दायर किया गया हलफनामा, जिसमें दावा किया गया है कि उसका नाम ड्राफ्ट रोल के बाद हटाया गया, ये गलत है. ECI ने कहा कि उस व्यक्ति द्वारा दिया गया बूथ नंबर ही गलत है, जिससे साबित होता है कि उसका दावा झूठा है. वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि एक तर्क यह था कि ड्राफ्ट मतदाता सूची में बड़ी संख्या में लोगों के नाम थे, लेकिन अचानक उनके नाम सूची से गायब हो गए. मुझे अब तक तीन हलफनामे मिले हैं. हमने इसकी जांच की है. यह हलफनामा पूरी तरह से झूठा है. कृपया पैरा एक देखें कि उन्होंने कहा है कि मैं बिहार का निवासी हूं और ड्राफ्ट मतदाता सूची में था. वह वहां नहीं थे. हकीकत ये है उन्होंने मतदाता गणना फॉर्म जमा नहीं किया था. यह झूठ है. फिर उन्होंने मतदाता पहचान पत्र संख्या दी, दिया गया मतदान केंद्र 52 है, लेकिन वास्तविक संख्या 653 है. लेकिन वह नाम भी एक महिला का है, उनका नहीं. वह ड्राफ्ट मतदाता सूची में नहीं थे. उन्‍होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं का यह दावा कि ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से नाम गायब हो गए थे, गलत है, क्योंकि संबंधित व्यक्ति ने नामांकन फॉर्म नहीं भरा था. द्विवेदी ने स्पष्ट किया कि वह व्यक्ति वोटर लिस्ट के पार्ट 63 में था, न कि पार्ट 52 में, और यह सुझाव दिया कि याचिकाकर्ता ने पुरानी जनवरी की लिस्ट का उल्लेख किया है. राकेश द्विवेदी ने दो मिनट का समय मांगा और फिर याचिकाकर्ताओं के आरोपों को चुनौती देते हुए आगे अपनी बात रखी. ECI का पक्ष:— “वे कह रहे हैं कि बहुत सारे मुस्लिमों के नाम हटाए गए हैं — लेकिन जब आपके पास डेटा ही नहीं है, तो आपको कैसे पता?” “मैं इस अदालत से आदेश चाहता हूं कि जिन लोगों को अपना नाम जोड़वाना है, वे अगले 5 दिनों में आवेदन करें, क्योंकि उसके बाद दरवाजे बंद हो जाएंगे.” “यह हलफनामा 6 तारीख का है — अगर उसे अपना नाम शामिल करवाना था, तो उसे आवेदन करना चाहिए था.” अदालत ने कहा:— “पहले सही जानकारी दी जानी चाहिए — गलत जानकारी हमें भी स्वीकार्य नहीं है.” ECI ने आगे कहा:— “यह किसी व्यक्ति का मुद्दा नहीं है, ADR ने यह दस्तावेज अदालत में रखे हैं. संगठन को अदालत में कुछ भी पेश करने से पहले उसकी सच्चाई सुनिश्चित करनी चाहिए.” अदालत ने याचिकाकर्ता से कहा:—“आपको ज़िम्मेदारी लेनी होगी.” वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा:– “अदालत लीगल सर्विस अथॉरिटी को निर्देश दे सकती है कि जाकर जांच करे कि क्या उस व्यक्ति ने वास्तव में हलफनामा दाखिल किया है.” अदालत ने कहा: “लेकिन दी गई जानकारी गलत है.” प्रशांत भूषण ने जवाब दिया:—“वे ऐसा कह रहे हैं, अदालत लीगल सर्विस अथॉरिटी से जांच करवा सकती है.” अदालत ने टिप्पणी की:— “हम इस दस्तावेज़ की प्रामाणिकता अभी कैसे जानें? हम जांच एजेंसी नहीं हैं! वे दिखा रहे हैं कि तथ्य गलत हैं.” वकील प्रशांत भूषण ने कहा: “वे केवल एक दावा कर रहे हैं, ये तथ्य नहीं हैं.” अदालत ने कहा: “देखना यह है कि क्या उस व्यक्ति का नाम ड्राफ्ट रोल में था या नहीं — अगर नहीं था तो आप ऐसा हलफनामा कैसे दे सकते हैं?” जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि —आपसे संपर्क करने वाले सभी लोग लीगल सर्विस अथॉरिटी से संपर्क क्यों नहीं कर सकते? मुफ़्त कानूनी सलाह भी दी जा सकती है. वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि— वे कहते हैं कि या तो हमारा नाम ड्राफ्ट रोल से हटा दिया गया था, फिर फॉर्म 6 भरा और फिर भी नाम फाइनल रोल में नहीं था और दूसरे कहते हैं कि उनके नाम हटा दिए गए हैं और उन्हें कभी नोटिस ही नहीं मिला. अदालत की बड़ी महत्वपूर्ण टिप्पणी:– “अगर आप (याचिकाकर्ता) अदालत के सामने यह कहते कि आपकी अपील पर अब तक फैसला नहीं हुआ है, तो हम आपके साथ होते — लेकिन मामला ऐसा नहीं है.” प्रशांत भूषण ने कहा कि— आइए हम चुनाव आयोग द्वारा अपनाए गए दिशानिर्देशों को देखें. इसमें बिल्कुल भी पारदर्शिता नहीं है. उनके पास सब कुछ कंप्यूटराइज्ड रूप में है. लेकिन अभी भी इस बारे में कोई डेटा नहीं है कि ड्राफ्ट सूची से किसे बाहर रखा गया है और इसलिए हम हर चीज़ की जाँच और पता लगाने में सैकड़ों घंटे लगा रहे हैं. चुनाव आयोग ने कहा कि पहले भूषण हलफनामा दाखिल करें फिर अदालत हमारा पक्ष सुने. एडवोकेट वृंदा ग्रोवर ने कहा कि— धारा 23(3) के अनुसार, 17 अक्टूबर को, यानी आज से 9 दिन बाद रोल फ्रीज हो जाएँगे. मुझे यह क्यों बताना चाहिए कि मैं कब तक अपील दायर कर सकती हूँ. जस्टिस बागची ने कहा कि— अपील सिर्फ़ यह कहकर की जा सकती है कि मेरा नाम हटा दिया गया है और कोई आधार नहीं … Read more

SIR विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का रुख साफ, वोटर लिस्ट से नाम कटने पर क्या है चुनाव आयोग की भूमिका

पटना   एसआईआर को लेकर सुप्रीम कोर्ट चल रही सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि मैं चाहता हूं कि कोर्ट योगेंद्र यादव को 10 मिनट का समय दें, ताकि वे SIR के कारण महिलाओं, मुसलमानों आदि के अनुपातहीन बहिष्कार की वास्तविक पृष्ठभूमि बता सकें. इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन आप आगे कैसे बढ़ना चाहते हैं? SIR की वैधता पर या…? इसके बाद वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने अदालत में कहा कि जिन लोगों के नाम सूची से हटाए गए हैं, उन्हें न तो कोई नोटिस मिला, न ही कोई कारण बताया गया. उन्होंने कहा कि तीसरी बात, अपील का प्रावधान तो है, लेकिन जानकारी ही नहीं दी गई तो अपील कैसे करेंगे? वहीं, चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने दलील दी कि जिन भी लोगों के नाम सूची से हटाए गए हैं, उन्हें आदेश की जानकारी दी गई है. इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “अगर कोई हमें सूची दे सके कि 3.66 लाख मतदाताओं में से किन लोगों को आदेश की जानकारी नहीं दी गई, तो हम चुनाव आयोग को निर्देश देंगे कि उन्हें जानकारी दी जाए. हर व्यक्ति को अपील का अधिकार है.” क्या है संविधान का अनुच्छेद 329? संविधान का अनुच्छेद 329 चुनाव आयोग को यह अधिकार देता है कि वह चुनाव प्रक्रिया को बिना बाधा के पूरा कराए. संविधान का यह अनुच्छेद एक तरह से न्यायपालिका को चुनावी प्रक्रिया में बाधा डालने से रोकता है और उससे यह उम्मीद करता है कि वह चुनाव आयोग को चुनावी प्रक्रिया पूरी करने में बाधित नहीं करेगा. अनुच्छेद के खंड (क) में कहा गया है कि सीटों के परिसीमन या आवंटन से संबंधित किसी भी कानून की वैधता पर अदालत में सवाल नहीं उठाया जा सकता है, जबकि खंड (ख) में प्रावधान है कि किसी चुनाव को केवल विधानमंडल द्वारा पारित कानून द्वारा निर्धारित तरीके से दायर चुनाव याचिका के माध्यम से ही चुनौती दी जा सकती है. विधायी मामलों के जानकार अयोध्यानाथ मिश्र बताते हैं कि भारत में हर संवैधानिक संस्था का अपना महत्व है. किसी भी संवैधानिक संस्था को संविधान ने सुप्रीम नहीं बताया है, बल्कि सबको अलग-अलग काम दिए हैं और सभी अपने कार्यों को करने के लिए स्वतंत्र हैं. हर संवैधानिक संस्था से यह उम्मीद की जाती है कि वो दूसरे के कार्यों में दखल नहीं देगा. संविधान के अनुच्छेद 329 में इसी बात की व्यवस्था की गई है कि चुनाव आयोग निष्पक्ष और बिना बाधा के चुनावी प्रक्रिया को पूरा कराए. जहां तक बात एसआईआर मामले में सुनवाई की है, तो अब चूंकि चुनाव की तिथि घोषित हो गई है, इसलिए इस बात की संभावना बहुत कम है कि सुप्रीम कोर्ट इस विषय पर कोई चौंकाने वाला फैसला सुनाएगा, क्योंकि परंपरा ऐसी नहीं रही है. योगेंद्र यादव दे सकते हैं जानकारी प्रशांत भूषण ने दलील दी कि चुनाव आयोग को अपने ही नियमों के तहत प्रतिदिन प्राप्त आपत्तियों का विवरण अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक करना चाहिए था. उन्होंने कहा, “इसीलिए हम कह रहे हैं कि ये सारी जानकारियां वेबसाइट पर डालनी चाहिए थीं. उनके नियमों में स्पष्ट है कि हर दिन के अंत में प्रत्येक मतदाता से जुड़ी प्राप्त आपत्तियों की जानकारी प्रकाशित की जानी चाहिए. वे कह रहे हैं कि 3.66 लाख नाम आपत्तियों के आधार पर हटाए गए हैं. योगेन्द्र यादव इस पर तथ्यात्मक जानकारी दे सकते हैं इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर हम अंधेरे में रहेंगे तो कोई समाधान नहीं निकल सकता. वहीं जस्टिस जॉयमाल्या बागची ने कहा कि योगेन्द्र यादव व्यक्तिगत रूप से एक हलफनामा देकर स्थिति स्पष्ट कर सकते हैं. वरिष्ठ अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने भी कहा कि आज भी विस्तृत (disaggregated) डेटा उपलब्ध है, लेकिन हम अंधेरे में रखे गए हैं. चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि सब लोग हवा में कह रहे हैं कि उन्हें जानकारी नहीं है. किसी को हलफनामा दाखिल करना चाहिए. इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि किसी को तो हलफनामा दाखिल करना होगा कि वह प्रभावित व्यक्ति है. वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि ऐसा करने के लिए और जानकारी की आवश्यकता है. उन्होंने बताया कि कुल 65 लाख नाम डिलीट किए गए थे, जिनमें से 42 लाख को वापस जोड़ा गया है. शेष नाम अभी भी हटे हुए हैं. जस्टिस कांत ने स्पष्ट किया कि फिलहाल अदालत संख्या पर नहीं, बल्कि कुछ संभावित उदाहरणों की पहचान पर ध्यान दे रही है. उन्होंने कहा, “अगर मुझे पता है कि संशोधित वोटर लिस्ट में मेरा नाम नहीं है, तो मैं हलफनामा दाखिल कर सकता हूं.” अगर सुप्रीम कोर्ट ने कोई बाधा डाली तो क्या होगा? संविधान का अनुच्छेद 329 चुनाव आयोग को यह विशेषाधिकार देता है कि वह निष्पक्ष ढंग से बिना बाधा के चुनाव कराए. उसकी यह जिम्मेदारी है कि चुनाव कराते वक्त वह संविधान की मूल भावना का पूरा सम्मान करे और किसी भी नागरिक को लिंग, जाति और धर्म के आधार पर मतदान से ना रोके. इसके लिए चुनाव आयोग अपने दायित्वों का निर्वहन कर रहा है. मतदाता सूची के पुनरीक्षण का कार्य भी उसी में शामिल है, अगर चुनाव की घोषणा के बाद सुप्रीम कोर्ट कोई ऐसा निर्णय देता है, जिससे चुनाव पर असर हो, तो क्या हो सकता है? इसपर जानकारी देते हुए अयोध्यानाथ मिश्र कहते हैं कि पहली बात तो यह कि सुप्रीम कोर्ट ऐसा कोई निर्णय नहीं करेगा, जिससे एक संवैधानिक संस्था के क्षेत्राधिकार का उल्लंघन हो, फिर भी अगर यह मान लिया जाए कि इस तरह का कोई फैसला सुप्रीम कोर्ट सुनाता है, तो अब जबकि चुनाव की घोषणा हो चुकी है, क्या हो सकता है? क्या चुनाव को रोका जाएगा? वहां किसी भी हाल में 22 नवंबर से पहले चुनाव संपन्न होने हैं, क्योंकि वर्तमान सरकार का कार्यकाल 22 नवंबर को समाप्त हो रहा है. अगर चुनाव संपन्न नहीं हुए तो लोकतांत्रिक व्यवस्था का क्या होगा? इस लिहाज से इस बात की संभावना काफी कम है कि सुप्रीम कोर्ट कोई भी ऐसा निर्णय सुनाएगा, जिससे चुनाव प्रभावित हो. हां, यह जरूर संभव है कि वह वह कोई सकारात्मक सुझाव दे. क्या हैं … Read more

राज्य चुनाव अधिकारियों को चुनाव आयोग ने दी SIR तैयारी की अंतिम तारीख

नई दिल्ली  चुनाव आयोग ने अपने राज्य चुनाव अधिकारियों को 30 सितंबर तक विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के लिए तैयार रहने को कहा है। चुनाव आयोग के इस निर्देश से साफ है कि अगले महीने से पूरे देश में मतदाताओं के सत्यापन और मतदाता सूची में सुधार की प्रक्रिया शुरू हो सकती है। चुनाव आयोग अक्टूबर-नवंबर की शुरुआत में मतदाता सूची की सफाई का काम शुरू कर सकता है। अधिकारियों के अनुसार, इस महीने की शुरुआत में राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारियों (सीईओ) के एक सम्मेलन में, चुनाव आयोग के शीर्ष अधिकारियों ने उन्हें अगले 10 से 15 दिनों में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के लिए तैयार रहने को कहा था। लेकिन अधिक स्पष्टता के लिए, 30 सितंबर की समय सीमा तय की गई थी। चुनाव आयोग की वेबसाइट पर दिख रही लिस्ट सीईओ को निर्देश दिया गया है कि वे अपने राज्यों की मतदाता सूचियां तैयार रखें। ये वोटर लिस्ट पिछली एसआईआर के बाद प्रकाशित हुई थीं। कई राज्य सीईओ ने अपनी पिछली एसआईआर के बाद प्रकाशित मतदाता सूचियां अपनी वेबसाइटों पर पहले ही डाल दी हैं। दिल्ली के सीईओ की वेबसाइट पर 2008 की मतदाता सूचियां हैं, जब राष्ट्रीय राजधानी में आखिरी बार गहन पुनरीक्षण हुआ था। उत्तराखंड में, पिछली एसआईआर 2006 में हुई थी और उस वर्ष की मतदाता सूची अब राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी की वेबसाइट पर उपलब्ध है। बिहार के बाद पूरे देश में SIR राज्यों में अंतिम एसआईआर ही कट-ऑफ तिथि होगी, ठीक उसी तरह जैसे बिहार की 2003 की मतदाता सूची का उपयोग चुनाव आयोग द्वारा गहन पुनरीक्षण के लिए किया जा रहा है। अधिकांश राज्यों में अंतिम एसआईआर 2002 और 2004 के बीच हुई थी और पिछले गहन पुनरीक्षण के अनुसार वर्तमान मतदाताओं का मिलान लगभग पूरा हो चुका है। चुनाव आयोग ने कहा है कि बिहार के बाद, पूरे देश में एसआईआर किया जाएगा। इन राज्यों में अगले साल चुनाव असम, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव 2026 में होने हैं। इस गहन पुनरीक्षण का मुख्य उद्देश्य जन्म स्थान की जांच करके विदेशी अवैध प्रवासियों को बाहर निकालना है। यह कदम बांग्लादेश और म्यांमार सहित विभिन्न राज्यों में अवैध विदेशी प्रवासियों पर कार्रवाई के मद्देनजर महत्वपूर्ण है। 

देशभर में लागू होगा SIR, वोटिंग में दस्तावेजों की जरूरत होगी खत्म? जानिए पूरा मामला

नई दिल्ली पूरे देश में होने वाले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के बाद, 50 करोड़ से ज्यादा वोटर्स को किसी भी अतिरिक्त दस्तावेज़ की जरूरत नहीं पड़ेगी. इसका कारण यह है कि उनके नाम पहले से ही मतदाता सूची में दर्ज हैं. एक जुलाई, 1987 से पहले जन्म होने की अंडरटेकिंग देने वाले मतदाताओं को कोई अन्य दस्तावेज लगाने की जरूरत नहीं होगी. निर्वाचन आयोग के अधिकारियों के मुताबिक, भारत के आधे से ज्यादा वोटर्स इस नए प्रोसेस के दायरे में आएंगे. इन मतदाताओं को कोई भी दस्तावेज देने की जरूरत नहीं होगी, क्योंकि उनका नाम उनके राज्य में आयोजित पिछली विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की मतदाता सूची में शामिल होगा.  ज्यादातर राज्यों में मतदाता सूची का आखिरी एसआईआर 2002 से 2008 के बीच हुआ था, जिसे इस प्रक्रिया के लिए कट-ऑफ माना जाएगा. राज्यों की तैयारी… अधिकारियों ने बताया कि निर्वाचन आयोग जल्द ही अखिल भारतीय एसआईआर को लागू करने की तारीख तय करेगा. राज्यों में मतदाता सूचियों को सुधारने करने का काम इस साल के अंत से पहले शुरू हो सकता है. पिछले हफ्ते ही हुए एक सम्मेलन में, राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों (सीईओ) को अपने-अपने राज्यों में पिछली एसआईआर के बाद प्रकाशित मतदाता सूची तैयार रखने को कहा गया है. सुर्खियों में बिहार का SIR  बिहार में आखिरी एसआईआर 2003 में हुआ था. इसके मुताबिक, अभी इसमें सूचीबद्ध कुल मतदाताओं के 60%, यानी 4.96 करोड़ मतदाताओं को अपनी जन्मतिथि या जन्मस्थान स्थापित करने के लिए मतदाता सूची के प्रासंगिक भाग को छोड़कर कोई सहायक दस्तावेज देने की जरूरत नहीं है. बिहार में इस प्रक्रिया को लेकर राजनीतिक विवाद भी हो चुका है, जहां विपक्षी दलों ने दस्तावेजों की कमी के कारण लोगों के मताधिकार से वंचित होने की आशंका जताई थी. अन्य मतदाताओं के लिए नियम केवल 40% मतदाताओं को ही अपनी जन्मतिथि या स्थान की पुष्टि के लिए सूचीबद्ध 12 दस्तावेजों में से कोई एक प्रस्तुत करना होगा. इसके अलावा, वोटर बनने या राज्य के बाहर से आने वाले कुछ आवेदकों के लिए एक अतिरिक्त 'घोषणा पत्र' भी शुरू किया गया है. ऐसे लोगों को यह शपथपत्र देना होगा कि उनका जन्म 1 जुलाई, 1987 से पहले भारत में हुआ था.

झारखंड में SIR लागू करने की तैयारी, बिहार के मॉडल पर काम तेज

रांची  झारखंड में जल्द ही मतदाता सूची का स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) होने वाला है. राज्य में एसआइआर की तैयारियां शुरू कर दी गयी है. मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी(सीइओ) के रविकुमार ने कहा कि चुनाव आयोग पूरे देश में मतदाता सूची का एसआइआर कर रहा है. इसी क्रम में झारखंड में भी एसआइआर होगा. 17 सितंबर तक जमा करें रेशनलाइजेशन रिपोर्ट के रविकुमार ने कहा कि सभी जिले 17 सितंबर तक सभी विधानसभा क्षेत्रों के मतदान केंद्रों का रेशनलाइजेशन पूरा करते हुए रिपोर्ट जमा करें. 2003 की मतदाता सूची से वर्तमान मतदाता सूची के मिलान का कार्य भी जल्द पूरा करें. कंप्यूटर ऑपरेटर व बीएलओ का प्रशिक्षण भी संपन्न करें. मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी ने सभी जिलों के चुनाव से जुड़े पदाधिकारियों को पीपीटी के माध्यम से मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण के दौरान ध्यान में रखे जानेवाले बिंदुओं की जानकारी दी. स्वीप के माध्यम से लोगों को करें जागरूक सभी जिलों के इआरओ, एइआरओ व उप निर्वाचन पदाधिकारियों के साथ ऑनलाइन बैठक में के रविकुमार ने कहा कि पदाधिकारी एसआइआर के दौरान लोगों को पूरी जानकारी मिलना सुनिश्चित करते हुए स्वीप के माध्यम से उनको जागरूक भी करें. इस मौके पर उप मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी देवदास दत्ता, उप निर्वाचन पदाधिकारी धीरज ठाकुर, अवर निर्वाचन पदाधिकारी सुनील कुमार सहित सभी जिलों के उप निर्वाचन पदाधिकारी उपस्थित थे.

देशभर में वोटर लिस्ट SIR की प्रक्रिया अक्टूबर से शुरू, बिहार मॉडल को बनाया उदाहरण

नई दिल्ली देशभर में अक्टूबर से मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) शुरू होने की संभावना है. निर्वाचन आयोग (ECI) की ओर से सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों के साथ हो रही बैठक में इस पर सहमति बनी है. सूत्रों के मुताबिक, चुनाव आयोग ने सभी राज्यों के CEO से कहा है कि 30 सितंबर तक कागज़ी कार्यवाही और जरूरी तैयारियां पूरी कर ली जाएं. अधिकांश राज्यों ने भरोसा जताया है कि वे सितंबर के अंत तक पूरी तरह तैयार हो जाएंगे. जल्द हो सकता है ऐलान बिहार विधानसभा चुनाव खत्म होने से पहले ही देशव्यापी SIR की औपचारिक घोषणा की जा सकती है. हालांकि, अंतिम तारीखें तभी तय होंगी जब सभी राज्यों के सीईओ अपनी प्रगति रिपोर्ट आयोग को सौंप देंगे. चुनाव आयोग अपडेट करेगा मतदाता सूची निर्वाचन आयोग का मानना है कि SIR के ज़रिए न सिर्फ नई मतदाता सूची अपडेट होगी, बल्कि पारदर्शिता और चुनावी प्रक्रियाओं पर भरोसा भी और मज़बूत होगा. चुनाव आयोग के इस विशिष्ट आयोजन में राज्यों के सीईओ के समक्ष विभिन्न सत्रों में SIR की तैयारियों सहित साढ़े तीन घंटे से अधिक के प्रेजेंटेशन दिए गए. आयोग ने अलग अलग राज्यों के मुख्य निर्वाचन आधिकारियों को वहां होने वाले विशेष गहन पुनरीक्षण के लिए मतदाताओं की तस्दीक के लिए जमा कराए जाने वाले सनदी प्रमाणपत्रों की सूची बनाने को भी कहा गया है. राज्यों के हिसाब से मांगे जाएंगे दस्तावेज ये सूची राज्य में स्थानीय स्तर पर मान्य सहज उपलब्ध दस्तावेजों पर आधारित होगी. अलग-अलग राज्यों में दस्तावेजों के नाम और प्रकार होंगे. जैसे आदिवासी बहुल राज्यों में, उत्तर पूर्वी समीवर्ती राज्यों में, समुद्र तटीय राज्यों में कई जगह पहचान और आवास के विशिष्ट प्रमाणपत्र भी होते हैं. कई जगह क्षेत्रीय स्वायत्त बोर्ड और निकाय भी ऐसे प्रमाण पत्र जारी करते हैं. चुनाव आयोग द्वारा 25 जून से शुरू हुई SIR प्रक्रिया के तहत मतदाता सूची को अपडेट करने का कार्य किया. इस प्रक्रिया के पहले चरण में एक अगस्त को मसौदा मतदाता सूची जारी की गई थी, जिसमें 7.24 करोड़ नाम दर्ज थे जो पहले की तुलना में 65 लाख कम थे. एक अगस्त से एक सितंबर तक दावों और आपत्तियों की अवधि के दौरान कुल 16 लाख 56 हजार 886 लोगों ने नए नाम जोड़ने के लिए आवेदन किया. इसके अलावा 2 लाख 17 हजार 49 लोगों ने नाम हटाने और 36 हजार 475 लोगों ने मतदाता सूची में सुधार के लिए आवेदन जमा किए. बिना नोटिस के नहीं कटेगा किसी का नाम: EC बिहार में SIR प्रकिया चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया था कि जिन मतदाताओं को नोटिस जारी किया गया, उनका पक्ष सुने बिना उनकी मतदाता पात्रता पर ERO कोई अंतिम फैसला नहीं लेंगे. आयोग ने ये भी भरोसा दिलाया था कि किसी भी वैध मतदाता का नाम सूची से नहीं हटाया जाएगा और बिना नोटिस के किसी का नाम नहीं काटा जाएगा. बिहार में कैसे हुआ SIR SIR प्रक्रिया के तहत 24 जून से 25 जुलाई तक पहले चरण (गणना चरण) में बूथ लेवल अधिकारियों (BLO) ने घर-घर जाकर मतदाताओं के विवरण सत्यापित किए गए. एक अगस्त को प्रकाशित मसौदा सूची के बाद एक सितंबर तक लोगों को दावे और आपत्तियां दर्ज करने का मौका दिया गया. फिलहाल 2 सितंबर से नए आवेदनों की प्रक्रिया चल रही है, जिसमें नए मतदाताओं के नाम जोड़ने, सुधार करने और नाम हटाने के आवेदन शामिल होंगे.

चुनाव आयोग को सुप्रीम कोर्ट की हिदायत, SIR डॉक्यूमेंट्स में आधार को किया शामिल

पटना  बिहार में चुनाव आयोग की ओर से चल रहे SIR यानी विशेष गहन पुनरीक्षण में अब आधार को भी मान्यता रहेगी। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में आदेश दिया और चुनाव आयोग से कहा कि 11 अन्य दस्तावेजों की तरह आधार को भी मान्यता दी जाए। जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने कहा कि चुनाव आयोग किसी की ओर से दिए गए आधार की वैधता की जांच कर सकता है। इस तरह अब वोटर लिस्ट में शामिल करने के लिए आधार को भी मान्यता मिल गई है, जिसकी डिमांड लंबे समय से की जा रही थी। बेंच ने स्पष्ट किया कि आधार कार्ड को SIR के लिए वैध दस्तावेज के तौर पर स्वीकार किया जाए। अदालत ने स्पष्ट किया कि SIR के लिए आधार कार्ड को पहचान और पते के प्रमाण के तौर पर स्वीकार किया जाए। अदालत ने कहा कि चुनाव आयोग के पास यह अधिकार रहेगा कि वह आधार कार्ड की प्रमाणिकता के बारे में जांच कर ले। इस तरह आधार कार्ड को जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, राशन कार्ड समेत अन्य 11 दस्तावेजों की तरह ही मान्यता मिलेगी। बेंच ने चुनाव आयोग से कहा है कि वह आज ही आधार कार्ड को लेकर नोटिफिकेशन जारी कर दे ताकि स्पष्ट संदेश दिया जा सके। बेंच ने यह भी कहा कि आधार कार्ड सिर्फ पहचान का ही प्रमाण है। सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग का पक्ष रख रहे वकील ने यह भी कहा कि SIR के दौरान ऐसे लोग भी पाए गए हैं, जो यहां के वोटर बने हुए थे। लेकिन वास्तव में वे घुसपैठिए हैं और अवैध तौर पर भारत में प्रवेश कर के आए हैं। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि यह एक समस्या है। इसी को लेकर उन्होंने कहा कि आधार कार्ड का वेरिफिकेशन चुनाव आयोग की ओर से किया जा सकता है। बता दें कि यही वजह है कि चुनाव आयोग कहता रहा है कि आधार कार्ड को पता या फिर नागरिकता का आधार नहीं माना जा सकता। गौरतलब है कि चुनाव आयोग का कहना है कि SIR की प्रक्रिया में वोटर्स को पूरा वक्त दिया जाएगा और नामांकन से एक दिन पहले तक यह जारी रहेगा।

चुनाव आयोग का ऐतिहासिक फैसला: पूरे देश में एक साथ लागू होगा ‘SIR’

पटना  बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले SIR को लेकर विवाद के बीच Election Commission ने एक बड़ा फैसला लिया है। इसके अनुसार यह प्रोसेस देशभर में एक साथ लागू किया जाएगा। आयोग ने इसे अंतिम रुप देने के लिए 10 सितंबर को दिल्ली में सभी राज्यों के मुख्य चुनाव अधिकारियों की एक महत्वपूर्ण बैठक बुलाई है।   क्या है SIR? SIR यानी 'मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण'। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें चुनाव आयोग मतदाता सूचियों को अपडेट और सही करता है। इसका मकसद है कि देश में मतदाता सूची पूरी तरह से ठीक और विश्वसनीय हो। चुनाव आयोग ने कहा है कि यह कदम जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के तहत लिया जा रहा है, ताकि मतदाता सूचियों की अखंडता बनी रहे। बैठक में इन मुद्दों पर होगी चर्चा 10 सितंबर की बैठक में चुनाव आयोग मुख्य चुनाव अधिकारियों से 10 बिंदुओं पर जानकारी मांगेगा। इनमें मतदाताओं की मौजूदा संख्या, पिछली SIR की तारीख और डेटा और डिजिटलीकरण की स्थिति शामिल है। इसके अलावा मतदान केंद्रों की संख्या और उनकी व्यवस्था तथा अधिकारियों और BLO की नियुक्ति और प्रशिक्षण पर भी चर्चा होगी। आयोग ने भारतीय नागरिकों को इसमें शामिल करने के लिए अतिरिक्त दस्तावेजों के बारे में भी सुझाव मांगे हैं।    बिहार में जारी है प्रक्रिया बिहार में SIR की प्रक्रिया पहले से ही चल रही है और यह 30 सितंबर तक पूरी हो जाएगी। चुनाव आयोग ने अपने 24 जून के आदेश में ही यह संकेत दे दिया था कि यह प्रक्रिया पूरे देश में लागू की जाएगी, लेकिन बिहार में चुनाव होने की वजह से इसे वहां पहले शुरू किया गया।