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MP में कांग्रेस का संगठन सृजन अभियान फेल? गुटों में बंटी पार्टी में नहीं दिखी एकजुटता

भोपाल  मध्य प्रदेश में कांग्रेस की गुटबाजी एक बार फिर सुर्खियों में है. 2020 में सरकार गिरने का जख्म अभी तक भरा नहीं है और 2025 में भी पार्टी के अंदर आपसी मतभेद फिर से सामने आ गए हैं. हाल ही में अनूपपुर में आयोजित कांग्रेस कार्यक्रम में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार के समर्थकों ने उन्हें आगामी मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया, लेकिन सिंघार ने मुस्कुराते हुए कहा, '2028 अभी दूर है', जिससे पार्टी की अंदरूनी खींचतान और उजागर हो गई. जबकि दूसरी ओर ओबीसी नेता कमलेश्वर पटेल ने संगठन सृजन अभियान पर सवाल उठाते हुए प्रदेश अध्यक्ष और संगठन प्रभारी पर समन्वय न बना पाने के आरोप लगाए हैं. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या कांग्रेस का ये अभियान गुटबाजी को खत्म करने में नाकाम रहा है? दरअसल, अनूपपुर में आयोजित कांग्रेस कार्यक्रम में उमंग सिंघार के समर्थकों ने उन्हें मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाने की कोशिश की. हालांकि, सिंघार ने साफ किया कि 2028 का चुनाव अभी दूर है, लेकिन ये बयान पार्टी के अंदर सत्ता की होड़ को दिखाता है. प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी और उमंग सिंघार के बीच पहले भी मतभेद की खबरें रही हैं, और ये नाराजगी अब खुलकर सामने आ रही है. ओबीसी वर्ग के प्रभावशाली नेता कमलेश्वर पटेल ने नई जिला अध्यक्षों की नियुक्ति को लेकर असंतोष जताया. उन्होंने आरोप लगाया कि संगठन में निर्णय कुछ चुनिंदा नेताओं के इशारे पर हो रहे हैं. पटेल ने कहा, 'प्रदेश अध्यक्ष और संगठन प्रभारी का काम पार्टी में समन्वय बनाना है, न कि खुद पार्टी बनना.' नई पीढ़ी में भी मतभेद गुटबाजी नई पीढ़ी तक सीमित नहीं है. पिछले महीने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के बीच सोशल मीडिया पर तीखी नोकझोंक देखने को मिली थी. दिग्विजय ने कमलनाथ पर 2020 में सरकार गिरने का आरोप लगाया, जिसमें उन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया की मांग पूरी न करने की बात कही. वहीं, कमलनाथ ने दिग्विजय को ही जिम्मेदार ठहराया. बाद में दोनों ने रिश्तों की गरिमा बनाए रखने के लिए मुलाकात की और तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर कीं, लेकिन यह कदम गुटबाजी की गहराई को छिपा नहीं पाया. BJP ने साधा निशाना कांग्रेस की अंदरूनी खींचतान पर भाजपा ने तीखा हमला बोला है. सरकार में मंत्री विश्वास कैलाश सारंग ने कहा, “कांग्रेस संगठन कमजोर हो चुका है. नेता आपस में झगड़ रहे हैं और मुख्यमंत्री बनने का दावा कर रहे हैं. सरकार बनना तो दूर, जनता ने उन्हें दो अंकों में भी जगह नहीं दी. कांग्रेस को मध्य प्रदेश की जनता पूरी तरह नकार चुकी है और उसकी हालत दिन-ब-दिन बद से बदतर होती जा रही है.” क्या है संगठन सृजन अभियान कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में पार्टी को फिर से सक्रिय करने और चुनाव तौर पर मजबूत बनाने, नए नेता को आगे लाने और बूथ स्तर पर संगठन को मजबूत करने लिए संगठन सृजन अभियान शुरू किया है. खासकर 2023 के विधानसभा चुनावों में हार के बाद मध्य प्रदेश में इस अभियान की शुरुआत की गई.

SC ने खत्म किया वनतारा केस, कांग्रेस बोली—‘क्यों न सारे मामले हों इतनी तेजी से निपटते’

नई दिल्ली  वनतारा वन्यजीव अभयारण्य के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर जनहित याचिका के निपटारे को लेकर कांग्रेस ने तंज कसा है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने उच्चतम न्यायालय की ओर से गठित एसआईटी द्वारा वनतारा प्राणी बचाव एवं पुनर्वास केंद्र को क्लीनचिट दिए जाने को लेकर कटाक्ष किया। उन्होंने कहा कि काश 'सीलबंद लिफाफा' वाली व्यवस्था के बिना इतनी तेजी से सभी मामलों का निस्तारण कर लिया जाता। वनतारा से जुड़े मामलों की जांच कर रहे उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित एसआईटी ने गुजरात के जामनगर स्थित इस प्राणी बचाव एवं पुनर्वास केंद्र को ‘क्लीन चिट’ दे दी है। इस रिपोर्ट को लेकर बेंच ने सोमवार को कहा था कि जानकारी मिली है कि वनतारा में जानवरों को रखने के लिए सभी नियमों का पालन किया गया। वहां लाए गए जानवरों के कानून के अनुसार ही खरीदा गया और उनका रखरखाव चल रहा है। ऐसे में किसी भी तरह का सवाल उठाना ठीक नहीं है। न्यायमूर्ति पंकज मिथल और न्यायमूर्ति पी बी वराले की पीठ ने रिपोर्ट को रिकॉर्ड में लिया और कहा कि अधिकारियों ने वनतारा में अनुपालन और नियामक उपायों को लेकर संतोष व्यक्त किया है। पूर्व पर्यावरण मंत्री रमेश ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, 'जब वह तय कर ले तो भारतीय न्यायिक प्रणाली सबसे तेज गति से चलती है, जबकि देरी उसकी पहचान बन गई है।' उन्होंने इस बात का उल्लेख किया, '25 अगस्त, 2025 को उच्चतम न्यायालय ने जामनगर में रिलायंस फाउंडेशन द्वारा स्थापित वन्यजीव बचाव और पुनर्वास केंद्र, वनतारा के मामलों की एक विशेष जांच दल (एसआईटी) से जांच कराए जाने का आदेश दिया। चार प्रतिष्ठित सदस्यों वाली एसआईटी को 12 सितंबर, 2025 तक अपनी रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया गया था।' उन्होंने कहा, 'एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट 'सीलबंद लिफाफे' में पेश की। 15 सितंबर, 2025 को उच्चतम न्यायालय ने इसकी सिफारिशों को स्वीकार कर लिया और 7 अगस्त, 2025 को दायर एक जनहित याचिका द्वारा शुरू किए गए मामले को बंद कर दिया।' रमेश ने कटाक्ष किया कि काश सभी मामलों को रहस्यमय 'सीलबंद लिफाफा' वाली व्यवस्था के बिना इतनी तेजी से और स्पष्ट रूप से निपटा दिया जाता।  

MP कांग्रेस में अंदरूनी असहमति: CWC सदस्य ने अध्यक्षों की नियुक्ति प्रक्रिया पर जताई नाराजगी

भोपाल  मध्य प्रदेश में दो दशक से सत्ता से बाहर कांग्रेस में गुटबाजी थमने का नाम नहीं ले रही। प्रदेश में हाल ही में हुई जिला अध्यक्षों की नियुक्ति अभी तक विवादों में घिरी हुई है। कई दिग्गजों को जिला अध्यक्ष बनाए जाने से नाराजगी है। वहीं कई सीनियर नेताओं के क्षेत्रों में उनकी राय के खिलाफ जिलाध्यक्ष बनाए जाने से वे नाराज हैं। अब CWC मेंबर और पूर्व मंत्री कमलेश्वर पटेल ने प्रदेश प्रभारी और पीसीसी चीफ पर सवाल खड़े पर किए हैं। कमलेश्वर पटेल ने एमपी में संगठन सृजन अभियान के तहत जिलाध्यक्षों की नियुक्ति प्रक्रिया में हुई गड़बड़ी पर अपना बयान जारी किया है। इतनी गुटबाजी नहीं होना चाहिए उन्होंने कहा है कि गुटबाजी और प्रतिस्पर्धा हमेशा रही है। लेकिन इतनी गुटबाजी नहीं होना चाहिए, जो जिम्मेदार लोग हैं। उनकी जिम्मेदारी है। प्रदेश प्रभारी का काम समन्वय बनाने का है, न कि पार्टी बनने का। उन्होंने कहा कि मेरा तो प्रदेश प्रभारी और प्रदेश अध्यक्ष से निवेदन है कि आपको खरगे जी, राहुल जी ने प्रदेश का महत्वपूर्ण पद दिया है, मुखिया बनाया है। आप सबको साथ लेकर चलिए। समाधान हो सकता है  पटेल ने एक दोहा बोलते हुए कहा कि मुखिया मुख सों चाहिए, खान पान को एक, पालै पोसै सकल अंग, तुलसी सहित विवेक। इस तरह की भावना के साथ जिस दिन काम करना शुरू कर देंगे तो हम समझते हैं कि थोड़ी बहुत प्रतिस्पर्धा को लेकर आपस में नाराजगी हो सकती है लेकिन कोई बहुत बड़ी नाराजगी नहीं हैं। इसका समाधान किया जा सकता है और हमारे नेता कर भी रहे हैं। पटेल ने जिलाध्यक्षों की नियुक्ति के लिए चलाए गए संगठन सृजन अभियान को लेकर कहा कि संगठन सृजन में राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, केसी वेणुगोपाल की भावनाओं को दरकिनार करने की कोशिश हुई है। जहां गड़बड़ियां हुई हैं, उनकी जांच कर रहे हैं जमीनी नेताओं को दरकिनार करना गलत उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश को लेकर हाईकमान ने जाहिर भी किया कि गड़बड़ी हुई है। जमीनी नेताओं को दरकिनार करना गलत है। यह विसंगतियां हाईकमान के संज्ञान में हैं। व्यापार करने वालों को नहीं, जमीनी लोगों को मिलना चाहिए मौका।  

चुनाव से पहले BJP-RSS का तालमेल मजबूत, यूपी में तीन प्रमुख चेहरों पर फोकस

लखनऊ  उत्तर प्रदेश में 2027 विधानसभा चुनाव भले ही अभी दूर हो, लेकिन बीजेपी ने अभी से चुनावी तैयारियां तेज कर दी है। पार्टी का लक्ष्य प्रदेश में लगातार तीसरी बार सत्ता हासिल करना है। इस लक्ष्य को पाने के लिए सत्ताधारी पार्टी हर संभव प्रयास कर रही है। यही वजह है कि विधानसभा चुनाव से पहले होने वाले पंचायत चुनाव को लेकर बीजेपी ऐक्शन मोड में आ गई है। बीजेपी पंचायत चुनाव को सेमी फाइनल मानकर चल रही है। इसी के तहत सरकार, संगठन और संघ के बीच बेहतर तालमेल बनाने की रणनीति को लेकर बैठक हुई है। इस बैठक में बेहद महत्वपूर्ण चर्चा हुई है। राजधानी लखनऊ के निरालानगर स्थित संघ भवन में पूर्वी क्षेत्र की तीन दिवसीय समन्वय बैठक की हुई है। इस बैठक में सरकार, संगठन और संघ के बीच बेहतर तालमेल बनाने की रणनीति पर चर्चा हुई है। बताया जा रहा है कि बैठक में सामाजिक समूह और शिक्षा से जुड़े मुद्दों पर विस्तार से विचार हुआ है। बैठक में बीजेपी के तीन पदाधिकारियों को विशेष जिम्मेदारी सौंपी गई है। जिम्मेदारियों के क्रम में मुख्यमंत्री स्तर के मामलों का समन्वय प्रदेश महामंत्री (संगठन) धर्मपाल सिंह को सौंपी गई है। इसी तरह मंत्रियों से जुड़े मामलों का दायित्व प्रदेश महामंत्री अमरपाल मौर्य को मिला है, जबकि संगठन संबंधी प्रकरणों का जिम्मा किसान मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष कामेश्वर सिंह को दिया गया है। ये तीनों नेता संघ से जुड़े मामलों को संगठन और सरकार तक पहुंचाकर समाधान कराने का काम करेंगे। इसके अलावा बैठक में समाज, छात्र और शिक्षकों के बीच बीजेपी और संघ की पैठ मजबूत करने पर विशेष जोर दिया गया है। बैठक में तय हुआ है कि शिक्षण संस्थानों में माहौल बेहतर बनाने के लिए संघ और बीजेपी मिलकर काम करेंगे। वहीं बाराबंकी के एक शिक्षण संस्थान में छात्रों और एबीवीपी कार्यकर्ताओं के बीच हुए विवाद का जिक्र करते हुए यह सहमति बनी कि ऐसे मामलों से निपटने के लिए समय रहते समन्वय और हस्तक्षेप आवश्यक है। इसके साथ ही बैठक में सेवा पखवाड़ा कार्यक्रम को लेकर भी चर्चा हुई है। पीएम मोदी के जन्मदिन 17 सितंबर से लेकर 2 अक्टूबर तक चलने वाले इस अभियान के दौरान विभिन्न सामाजिक गतिविधियां आयोजित की जाएंगी। इसका उद्देश्य समाज के हर वर्ग तक पहुंच बनाना, विचारधारा का विस्तार करना और नए लोगों को संगठन से जोड़ना है। बैठक को पंचायत चुनाव से पहले बीजेपी और संघ की तैयारी का अहम पड़ाव माना जा रहा है।

प्रियांक खरगे का बयान कांग्रेस के लिए बना सेल्फगोल? विपक्ष ने उठाए तीखे सवाल

बेंगलुरु  कांग्रेस के नेता चुनाव से ऐन पहले सेल्‍फगोल करने के ल‍िए जाने जाते हैं. इस कड़ी में अब नया नाम कांग्रेस अध्‍यक्ष मल्‍ल‍िकार्जुन खरगे के बेटे प्र‍ियांका खरगे का जुड़ गया है. कर्नाटक के कलबुर्गी में प्र‍ियांक खरगे ने कहा, ‘सिख धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म और लिंगायत धर्म सभी भारत में एक अलग धर्म के रूप में पैदा हुए, क्योंकि हिंदू धर्म ने समाज के कुछ वर्गों को ‘गरिमापूर्ण स्‍थान’ नहीं दिया.’ बीजेपी नेता इसे मुद्दा बना रहे हैं और कांग्रेस की नीयत पर ही सवाल उठा रहे हैं. इसे बिहार चुनाव से भी जोड़ा जा रहा है. तो क्‍या बिहार चुनाव से पहले कांग्रेस के एक और नेता ने सेल्‍फ गोल कर द‍िया. बात सिर्फ प्र‍ियांक खरगे की नहीं है, एक द‍िन पहले कर्नाटक के मुख्‍यमंत्री सिद्धारमैया ने हिंदू समाज में असमानता और जातिवाद पर टिप्‍पणी की थी, जिसे बीजेपी ने ह‍िन्‍दू धर्म को अपमान‍ित करने का मुद्दा बना ल‍िया था. राज्य बीजेपी अध्यक्ष बी. वाई. विजयेंद्र और एमएलसी सी. टी. रवि ने कहा था क‍ि ऐसे बयान देकर राज्‍य सरकार धर्मांतरण को बढ़ावा दे रही है. उसी का जवाब देते हुए प्र‍ियांक खरगे ने ह‍िन्‍दू धर्म को ही कठघरे में खड़ा कर द‍िया. भाजपा नेताओं पर पलटवार करते हुए खरगे ने कहा, मुझे नहीं लगता कि विजयेंद्र और रवि भारत में धर्मों के इतिहास के बारे में जानते हैं. सिख धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म और लिंगायत धर्म सभी भारत में अलग धर्म के रूप में पैदा हुए. ये सभी धर्म इसलिए पैदा हुए क्योंकि हिंदू धर्म ने इनके लिए जगह नहीं बनाई, इन्हें गरिमा नहीं दी. बाबा साहेब अंबेडकर का उदाहरण पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने सवाल किया, चातुर्वर्ण व्यवस्था क्या है? क्या यह किसी और धर्म में है? यह केवल हिंदू धर्म में है. बाबा साहेब अंबेडकर ने नारा दिया था कि हिंदू के रूप में जन्म लेना मेरे हाथ में नहीं है, लेकिन मैं हिंदू के रूप में मरूंगा नहीं. क्यों? क्योंकि वर्ण व्यवस्था की वजह से. उन्होंने कहा, लोगों के पास गरिमा नहीं थी, विभिन्न जातियां इस व्यवस्था से बाहर महसूस करती थीं. भारत में जितने भी धर्म पैदा हुए हैं, वे इसी असमानता के खिलाफ पैदा हुए हैं. मुझे नहीं लगता कि ये (भाजपा) नेता जानते भी हैं कि यह असल में है क्या. सिद्धारमैया ने क्‍या कहा था शनिवार को मैसूरु में एक सवाल पर जवाब देते हुए सिद्धारमैया ने कहा था, कुछ लोग इस व्यवस्था की वजह से धर्मांतरण कर रहे हैं. अगर हिंदू समाज में समानता और बराबरी के अवसर होते, तो धर्मांतरण क्यों होता? छुआछूत क्यों आया? जब उनसे मुसलमानों और ईसाइयों में असमानता के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा, जहां भी असमानता है-चाहे मुसलमानों में हो या ईसाइयों में, न हमने और न ही भाजपा ने लोगों से कहा कि धर्म बदल लो. लोग बदले हैं. यह उनका अधिकार है.

क्या बिहार में गेमचेंजर साबित होंगे MP के CM मोहन यादव? जानिए BJP का सियासी दांव

भोपाल  बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए एनडीए और इंडिया गठबंधन के बीच सियासी जंग जारी है. इसी कड़ी में बीजेपी ने नई रणनीति अपनाते हुए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को बिहार में उतारा है. जानकारों का मानना है कि इस कदम का मुख्य लक्ष्य यादव वोट बैंक पर सीधी पकड़ बनाना, लालू यादव की विरासत को चुनौती देना और एनडीए की पकड़ मजबूत करना है.  14 सितंबर को मोहन यादव पटना पहुंचे और यादव महासभा के बड़े आयोजन में शामिल हुए, जहां कई बड़े नेता भी मौजूद रहे. यह कदम BJP के “एमवाई समीकरण” (मुस्लिम-यादव) को तोड़ने और यादव समुदाय को साधने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. यादव समाज को साधने की कोशिश! डॉ. मोहन यादव के पटना दौरे के दौरान BJP ने यादव समाज को जोड़ने के लिए बड़े पैमाने पर कार्यक्रम किया. इस आयोजन में ओबीसी आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष हंसराज अहीर, बिहार विधानसभा अध्यक्ष नंदकिशोर यादव, छत्तीसगढ़ के मंत्री गजेंद्र यादव, पूर्व केंद्रीय मंत्री रामकृपाल यादव और विधायक संजीव चौरेसिया जैसे नेताओं ने मंच साझा किया. एनडीटीवी के रिपोर्ट के अनुसार, इस सांस्कृतिक कार्यक्रम में भगवान कृष्ण पर केंद्रित प्रस्तुतियां हुईं, जिससे राजनीतिक संदेश भी दिया गया. बिहार की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत पर जोर अपने संबोधन में मोहन यादव ने बिहार की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को बीजेपी के चुनावी एजेंडे से जोड़ा. उन्होंने सम्राट अशोक, पाटलिपुत्र, अवंतिका (उज्जैन) और भोजपुर भाषा के साझा रिश्ते का जिक्र कर बिहार- मध्यप्रदेश की कड़ी बताई. उन्होंने कहा कि बिहार भगवान कृष्ण से जुड़ा राज्य है और यहां भगवान कृष्ण के पुत्र ने सूर्य मंदिर बनवाया था. साथ ही उन्होंने बुद्ध, जैन धर्म के तीर्थंकरों और चाणक्य-नालंदा-तक्षशिला की परंपरा का हवाला दिया. यह बयान स्पष्ट रूप से यादव समुदाय और बिहार की धार्मिक-सांस्कृतिक चेतना से जुड़ाव दिखाने के लिए था. एमवाई वोट बैंक पर बीजेपी की नजर! भाजपा का यह कदम सीधे तौर पर यादव वोट बैंक को साधने के लिए है, जो अब तक लालू यादव के आरजेडी के प्रभाव में माना जाता रहा है. डॉ. मोहन यादव ने राम मंदिर के मुद्दे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नेतृत्व क्षमता और खुद को “साधारण कार्यकर्ता” बताकर यादव परिवार की वंशवादी राजनीति पर हमला किया. इससे पहले भी उन्होंने निसादराज सम्मेलन कर मछुआरा समुदाय को जोड़ने की कोशिश की थी, जो बिहार की करीब 45 सीटों पर असर डालता है.

MP में कांग्रेस का जनाधार परीक्षण, जानचे जाएंगे विधायकों और नेताओं के रिपोर्ट कार्ड

 भोपाल  विधानसभा और लोकसभा चुनाव में भाजपा के हाथों मिली करारी हार से सबक लेते हुए कांग्रेस पहली बार मध्य प्रदेश में अपने निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की लोकप्रियता का आकलन कराएगी। इसकी शुरुआत नगरीय निकायों से होगी और दूसरे चरण में विधायकों की लोकप्रियता का आकलन करवाया जाएगा। पहले चरण में नगरीय निकायों को इसलिए लिया गया है क्योंकि इसके चुनाव सबसे पहले वर्ष 2027 में प्रस्तावित हैं। इनके परिणाम के बाद प्रदेश में चुनावी वातावरण बनने लगेगा। पार्टी ने तय किया है कि कार्यकर्ताओं के माध्यम से जनप्रतिनिधियों का मतदाताओं से संपर्क, संवाद और कामकाज के आधार पर पता लगाया जाएगा कि क्षेत्र में उनकी छवि कैसी है। यह भी आकलन किया जाएगा कि यदि वे लोकप्रिय या अलोकप्रिय हैं तो इसकी वजह क्या है। इसके आधार पर कांग्रेस संगठन निकायवार जनप्रतिनिधियों को बुलाएगा और उन्हें आगामी तैयारी के लिए सचेत करने के साथ मार्गदर्शन भी दिया जाएगा। कांग्रेस के पांच महापौर जीतकर आए थे प्रदेश में नगरीय निकायों के चुनाव वर्ष 2022 में हुए थे। पहली बार कांग्रेस के पांच महापौर (छिंदवाड़ा, ग्वालियर, मुरैना, रीवा और जबलपुर) जीतकर आए थे। हालांकि, नगर पालिका और नगर परिषद में अप्रत्यक्ष प्रणाली से होने के कारण अधिकतर स्थानों पर भाजपा के अध्यक्ष चुने गए। पार्टी की उम्मीद थी कि इन परिणामों का लाभ विधानसभा चुनाव में मिलेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस केवल 66 सीटों पर सिमटकर रह गई। लोकसभा चुनाव में तो पार्टी का खाता भी नहीं खुला। अब फिर 2027 से नगरीय निकायों के साथ चुनावों का क्रम प्रारंभ होना है। इसे देखते हुए पार्टी ने तय किया है कि वह अपने निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की स्थिति का आकलन कराएगी। यही आगामी चुनाव में टिकट का आधार भी बनेगा। कार्यकर्ताओं के फीडबैक पर तैयार होगी रिपोर्ट प्रदेश संगठन महामंत्री संजय कामले का कहना है कि पहले चरण में नगरीय निकायों के प्रतिनिधियों की जनता के बीच छवि, उनके कामकाज, मतदाताओं से संपर्क और संवाद, पार्टी की गतिविधियों में भागीदारी के आधार पर आकलन किया जाएगा। इसके लिए फीडबैक स्थानीय कार्यकर्ताओं से लिया जाएगा। इसके आधार पर बनी रिपोर्ट को सामने रखकर जनप्रतिनिधियों से बात होगी। ठीक इसी तरह विधायकों के कामकाज का आकलन होगा। जो प्रत्याशी चुनाव हार गए थे, उनसे भी फीडबैक लिया जाएगा। इसमें वर्तमान स्थिति के साथ-साथ सुधार के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर फोकस रहेगा।

सुल्तानगंज विधानसभा: नीतीश कुमार की पकड़ आज भी मजबूत

सुल्तानगंज सुल्तानगंज विधानसभा सीट भागलपुर जिले में स्थित है…यह विधानसभा क्षेत्र बांका लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आता है। यह सीट साल 1951 से ही अस्तित्व में है। 2008 से पहले तक यह भागलपुर लोकसभा का हिस्सा हुआ करता था, लेकिन 2008 में हुए परिसीमन के बाद यह क्षेत्र बांका लोकसभा के अंतर्गत आ गया। साल 1951 में पहली बार इस सीट पर चुनाव हुए और 1967 तक कांग्रेस का ही कब्जा रहा। 1951 में कांग्रेस के राश बिहारी लाल, 1957 में सरस्वती देवी तो 1962 में देबी प्रसाद महतो चुनाव जीते थे। 1967 में इस सीट पर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के बी.पी.शर्मा विधायक चुने गए थे। 1969 और 1972 में इस सीट पर एक बार फिर से कांग्रेस ने कब्जा जमाया और राम रक्षा प्रसाद यादव लगातार दो बार विधायक चुने गए थे।   1977 में यह सीट जनता पार्टी के खाते में गई और जागेश्वर मंडल विधायक बने थे। 1980 और 1985 में भी कांग्रेस का ही कब्जा रहा। 1980 में नंद कुमार मांझी और 1985 में उमेश चंद्र दास विधायक चुने गए थे। 1990 और 1995 में यह सीट जनता दल के पास रही और फणींद्र चौधरी लगातार दो बार विधायक बने। साल 2000 में इस सीट पर समता पार्टी के गणेश पासवान विधायक चुने गए थे। 2005 में जेडीयू की टिकट पर सुधांशु शेखर भास्कर यहां से विधायक बने। वहीं 2010 और 2015 में लगातार दो बार यहां से जेडीयू उम्मीदवार सुबोध राय ने जीत हासिल की थी। 2020 में जेडीयू की तरफ से ललित नारायण मंडल ने फिर से सुल्तानगंज में तीर को निशाने पर ही मारा था।   वहीं 2020 के चुनाव में सुल्तानगंज सीट पर जेडीयू उम्मीदवार ललित नारायण मंडल ने जीत हासिल की थी। ललित नारायण मंडल को 72 हजार आठ सौ 23 वोट मिला था तो कांग्रेस उम्मीदवार ललन कुमार को 61 हजार दो सौ 58 वोट ही मिला था। इस तरह से ललित नारायण मंडल ने ललन कुमार को 11 हजार पांच सौ 65 वोट के अंतर से हरा दिया था। वहीं एलजेपी कैंडिडेट नीलम देवी 10 हजार दो सौ 22 वोट लाकर तीसरे स्थान पर रहीं थीं।   वहीं 2015 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर जेडीयू कैंडिडेट सुबोध राय ने जीत हासिल की थी। सुबोध राय ने बीएलएसपी के हिमांशु पटेल को 14 हजार 33 वोटों से हराया था। सुबोध राय को कुल 63 हजार तीन सौ 45 वोट मिले थे, जबकि दूसरे नंबर पर रहे हिमांशु पटेल को कुल 49 हजार तीन सौ 12 वोट मिले थे तो वहीं तीसरे स्थान पर रहे निर्दलीय कैंडिडेट ललन कुमार को कुल 14 हजार 73 वोट मिले थे।   वहीं 2010 में हुए विधानसभा चुनाव में सुल्तानगंज सीट पर जेडीयू उम्मीदवार सुबोध राय ने जीत हासिल की थी। सुबोध राय ने आरजेडी कैंडिडेट रामावतार मंडल को 4 हजार आठ सौ 45 वोट के अंतर से हराया था। सुबोध राय को कुल 34 हजार छह सौ 52 वोट मिले थे, जबकि दूसरे नंबर पर रहे रामावतार मंडल को कुल 29 हजार आठ सौ सात वोट मिले थे तो वहीं तीसरे स्थान पर रहे एलटीएसडी के ओमदत्त चौधरी को कुल 9 हजार 20 वोट ही मिले थे।   वहीं 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में सुल्तानगंज सीट पर जेडीयू कैंडिडेट सुधांशु शेखर भास्कर ने जीत हासिल की थी। सुधांशु शेखर भास्कर ने आरजेडी कैंडिडेट गणेश पासवान को 11 हजार छह सौ 87 वोटों से हराया था। सुधांशु शेखर भास्कर को कुल 48 हजार 63 वोट मिले थे, जबकि दूसरे नंबर पर रहे गणेश पासवान को कुल 36 हजार तीन सौ 76 वोट मिले थे तो वहीं तीसरे स्थान पर रहे सीपीआई कैंडिडेट विजय कुमार पासवान को कुल 6 हजार पांच सौ आठ वोट मिले थे।   सुल्तानगंज विधानसभा सीट के चुनावी नतीजों को तय करने में कुशवाहा, यादव, ब्राह्मण और मुस्लिम वोटरों की अहम भूमिका रही है। सुल्तानगंज सीट को जेडीयू का गढ़ माना जाता है…इसलिए इस बार तेजस्वी यादव को कुछ नया करना होगा। अगर तेजस्वी यादव ने सुल्तानगंज में कुछ नया दांव नहीं चला तो यहां फिर से ‘तीर’ निशाने पर लग सकता है।

भारत-पाक मैच पर उद्धव ठाकरे का बड़ा बयान, सड़क पर उतरने की चेतावनी

मुंबई  एशिया कप में भारत और पाकिस्तान के बीच 14 सितंबर को होने वाले क्रिकेट मैच को लेकर शिवसेना (UBT) चीफ उद्धव ठाकरे ने सड़क पर उतरने का ऐलान कर दिया है। उन्होंने कहा कि एक आतंकवादी देश के साथ मैच खेलने राष्ट्रीय भावना का अपमान है। उद्धव ठाकरे ने कहा कि शिवसेना के कार्यकर्ता पूरे महाराष्ट्र में सड़कों पर उतरेंगे और मैच का विरोध करेंगे। उद्धव ठाकरे ने कहा, हमारे सैनिक सीमा पर अपनी जान कुर्बान कर रहे हैं, इस स्थिति में क्या हमें पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलना चाहिए। उन्होंने आगे कहा, 'मेरे पिता (बालासाहेब ठाकरे) ने जावेद मियांदाद से कहा था कि जब तक पाकिस्तान से भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियां जारी रहेंगी, तब तक क्रिकेट नहीं खेला जाएगा।' एक दिन पहले ही आदित्य ठाकरे ने कहा था कि बीजेपी ने अपनी विचारधारा बदल दी है। उन्होंने कहा कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकता लेकिन क्रिकेट मैच कैसे हो सकता है। कांग्रेस की महाराष्ट्र इकाई ने इसे पहलगाम आतंकी हमले में मारे गए लोगों के परिजनों और कर्तव्य निभाते हुए शहीद हुए सैनिकों का अपमान बताया। वहीं, शरद पवार के नेतृत्व वाली राकांपा (एसपी) ने कहा कि मैच की अनुमति देने से सरकार का दोहरा चरित्र उजागर हो गया है। आलोचना का जवाब देते हुए, महाराष्ट्र के मंत्री आशीष शेलार ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों को द्विपक्षीय राजनीतिक गतिरोधों से प्रभावित नहीं किया जा सकता। महाराष्ट्र कांग्रेस प्रवक्ता सचिन सावंत ने कहा कि इस क्रिकेट मैच की अनुमति देना एक कूटनीतिक विफलता है और पहलगाम आतंकवादी हमले में मारे गए लोगों के परिजनों और कर्तव्य निभाते हुए शहीद हुए सैनिकों का अपमान है। एनसीपी प्रवक्ता जितेंद्र आव्हाड ने कहा, ‘‘इस क्रिकेट मैच ने सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी के दोहरे मानदंडों को उजागर कर दिया है, जिनकी राजनीति भारत-पाकिस्तान के इर्द-गिर्द घूमती है।’’ इस बीच, भाजपा मंत्री शेलार, जो एशिया क्रिकेट परिषद बोर्ड में बीसीसीआई के प्रतिनिधि भी हैं, ने शिवसेना (उबाठा) सांसद संजय राउत पर इस मुद्दे पर ‘‘भारत विरोधी’’ रुख अपनाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, ‘‘हमारा रुख हमेशा से स्पष्ट रहा है कि भारतीय क्रिकेट टीम पाकिस्तान का दौरा नहीं करेगी और पाकिस्तान की टीम भी भारत नहीं आएगी। हालांकि, हम अपनी टीम को किसी अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में खेलने या भाग लेने से नहीं रोक सकते। यह कैसा रुख है? यह उचित रुख नहीं है?’’ शेलार ने कहा, ‘‘जो लोग अब भारत के मैच खेलने का विरोध कर रहे हैं, उन्हें याद रखना चाहिए कि (दिवंगत शिवसेना संस्थापक) बालासाहेब ठाकरे ने अपने आवास पर मियांदाद की मेजबानी की थी।’’  

राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर बड़ा फैसला जल्द? BJP की सबसे बड़ी बाधा हुई दूर

नई दिल्ली भारतीय जनता पार्टी (BJP) कई महीनों से राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव को टालती आ रही है। इसका सबसे बड़ा कारण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के साथ शीर्ष भाजपा नेतृत्व के तल्ख रिश्ते को माना जा रहा है। हालांकि, बीते कुछ महीनों से दोनों ही तरफ से संबंधों को सामान्य करने और दिखाने की कोशिशें की जा रही हैं। आरएसएस और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने ही इसकी जिम्मेदारी संभाली है। इसके बाद अब इस बात की संभावना जताई जा रही है कि भाजपा के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम का ऐलान पार्टी कभी भी कर सकती है। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने आरएसएस की जरूरत को लेकर बयान दिया तो हर कोई अचरज में पड़ गया। सूत्रों का कहना है कि आरएसएस को भी यह बात नागवार गुजरी। इसका खामियाजा भगवा पार्टी को लोकसभा चुनाव में देखने को मिला, जब भाजपा 240 सीटों पर सिमट कर रह गई, जबकि उसने पूरे चुनाव प्रचार के दौरान 'अबकी बार 400 पार' का नारा दिया था। कहा जाता है कि संघ के कार्यकर्ताओं ने इस चुनाव में अनमने ढंग से भाजपा का साथ दिया था। आपको बता दें कि नड्डा ने कहा था कि भाजपा को अब संघ की जरूरत नहीं रह गई है। 15 अगस्त को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लाल किला से देश को संबोधित कर रहे थे, तब उन्होंने आरएसएस की तारीफ करते हुआ इसे दुनिया का सबसे बड़ा एनजीओ बताया। इसके बाद मोहन भागवत ने नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आरएसएस के एक कार्यक्रम में साफ शब्दों में कहा था कि राजनीति हो या समाज सेवा इसमें रिटायरमेंट की कोई उम्र नहीं होती है। इससे पहले संघ प्रमुख ने ही कहा था कि 75 साल की उम्र में लोगों को खुद से रिटायर हो जाना चाहिए। आपको बता दें कि इसी साल प्रधानमंत्री 75 साल के होने वाले हैं। आरएसएस की प्रशंसा करने वालों में प्रधानमंत्री मोदी ही अकेले नहीं हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमिता शाह ने भी हाल ही में कई मौकों पर आरएसएस की सराहना की है। उन्होंने साफ-साफ कहा है कि उन्हें स्वयंसेवक होने पर गर्व है। आरएसएस का कार्यकर्ता होना किसी भी कीमत पर निगेटिव पॉइंट नहीं हो सकता है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि किसी भी स्वयंसेवक को तब तक नहीं रुकना है जब तक कि भारत फिर से महान नहीं बन जाता है। भाजपा के दोनों दिग्गज नेताओं और आरएसएस चीफ के बयान से भाजपा और संघ के बीच रिश्ते सामान्य होने के संकेत मिल रहे हैं। अब इस बात की प्रबल संभावना है कि दोनों ही संगठन मिलकर जल्द ही भाजपा के अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम पर अंतिम मुहर लगा सकते हैं। हालांकि संघ न कई मौकों पर कहा है कि सरकार या भाजपा के कार्यों में आरएसएस का हस्तक्षेप नहीं होता है। आरएसएस और भाजपा के बीच सामान्य हुए रिश्तों में कई दावेदारों के नाम की चर्चा होने लगी है। उनमें सबसे पहला नाम शिवराज सिंह चौहान का आता है, जो कि वर्तमान केंद्र सरकार में मंत्री हैं। वहीं, नितिन गडकरी के नाम पर भी अंदरखाने चर्चा होने लगी है। इसके अलावा, केंद्रीय मंत्री और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और घर्मेंद्र प्रधान का नाम भी रेस में शामिल होने की चर्चा है। भाजपा अक्सर अपने फैसलों से सियासी पंडितों को चौंकाती रही है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा का अगला राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन बनता है।