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पाकिस्तान पर बढ़ा दबाव: अफगानिस्तान भी रोकेगा पानी, कुनार नदी पर बांध का ऐलान

काबुल  भारत के बाद अब अफगानिस्तान भी पाकिस्तान की जल आपूर्ति को प्रतिबंधित कर सकता है. तालिबान के उप सूचना मंत्री मुजाहिद फाराही ने ऐलान किया है कि जल एवं ऊर्जा मंत्रालय को तालिबान के सर्वोच्च नेता शेख हिबतुल्लाह अखुंदजादा से कुनार नदी पर बिना किसी देरी के बांधों का निर्माण शुरू करने के निर्देश मिले हैं. यह नदी पाकिस्तान में बहती है और पाकिस्तान के लिए पानी का एक बड़ा सोर्स है.  मुजाहिद फाराही के मुताबिक, अमीर अल-मुमिनीन ने मंत्रालय को विदेशी फर्मों का इंतजार करने के बजाय घरेलू अफगान कंपनियों के साथ अनुबंध करने का आदेश दिया है. इस बीच, जल एवं ऊर्जा मंत्री मुल्ला अब्दुल लतीफ मंसूर ने जोर देते हुए कहा, "अफगानों को अपने जल संसाधनों के प्रबंधन का अधिकार है." घरेलू कंपनियों से जल्द अनुबंध करने का निर्देश उप सूचना मंत्री मुजाहिद फाराही ने सोशल मीडिया पर जानकारी दी है कि सर्वोच्च नेता शेख हिबतुल्लाह अखुंदजादा ने कुनार नदी पर बांधों का निर्माण तुरंत शुरू करने के लिए जल एवं ऊर्जा मंत्रालय को निर्देश दिए हैं. इन निर्देशों में यह भी शामिल है कि विदेशी कंपनियों के बजाय घरेलू अफगान कंपनियों के साथ अनुबंध किए जाएं, जिससे काम में देरी न हो. अफगानों को अपने जल पर अधिकार जल एवं ऊर्जा मंत्री मुल्ला अब्दुल लतीफ मंसूर ने इस कदम का सपोर्ट करते हुए बड़ा बयान दिया है. उन्होंने साफ किया है कि अफगानों को अपने जल संसाधनों के प्रबंधन का अधिकार है.  काबुल और कुनार नदी, जो पाकिस्तान में बहती है, पाकिस्तान में पानी का एक बड़ा स्रोत रही है. जब भारत ने रोका पानी… पिछले दिनों पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने भी पाकिस्तान के साथ हुई जल संधि रद्द कर दी और जल आपूर्ति पर प्रतिबंध लगाने की बातें की गई थीं. कश्मीर में 26 नागरिकों के मारे जाने के तुरंत बाद, सरकार ने 1960 की सिंधु जल संधि में अपनी भागीदारी सस्पेंड कर दी थी, जो सिंधु नदी सिस्टम के इस्तेमाल को कंट्रोल करती है. इनमें से एक मुख्य योजना चिनाब नदी पर रणबीर नहर की लंबाई को दोगुना करके 120 किमी करने की है, जो भारत से होकर पाकिस्तान के पंजाब के कृषि क्षेत्र तक जाती है. 

टूरिस्टों के लिए अब सफारी का नया अंदाज: इटावा पार्क में चलें आकर्षक मिनी बसों में

इटावा इटावा सफारी पार्क में आने वाले पर्यटकों को सफारी की सैर कराने के लिए दो नई आकर्षक मिनी बस पहुंच रहीं हैं। इन बसों में पर्यटकों की सुविधा के हिसाब से डिजाइन किया गया है। अभी राजगीर सफारी में इसी तरह की बसों से पर्यटकों को सैर कराई जाती है अब यह बसें इटावा सफारी में भी पर्यटकों को घुमाएंगी। इनमें बैठकर पर्यटक आसानी से वन्य जीवों के दीदार कर सकेंगे। सफारी में जो व्यवस्था की गई है उसमें लायन सफारी में शेर खुले में भ्रमण कर रहे हैं और पर्यटक बंद वाहनों से इनका दीदार करते हैं। इस कार्य में अब इन बसों की सेवाएं भी ली जाएंगी।   इसके साथ ही इन बसों में यह व्यवस्था भी की गई है कि सफारी के वन्यजीवों के बारे में भी पर्यटकों को बसों में बैठे बैठे पूरी जानकारी मिलेगी। सफारी के शेरों का इतिहास भी बताया जाएगा। सफारी पार्क के निदेशक डा. अनिल पटेल ने बताया कि दो नई बसों की खरीद की गई है। जल्द ही यह सफारी पार्क पहुंच जाएंगी। इससे पर्यटकों का आवागमन सुगम होगा।  

अभिनव बिंद्रा रचेंगे नई इतिहास—2026 विंटर ओलंपिक में उठाएंगे मशाल

नई दिल्ली ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता अभिनव बिंद्रा को अगले वर्ष होने वाले शीतकालीन ओलंपिक 2026 के लिए मशालवाहक के रूप में चुना गया है। यह खेल आयोजन 6 से 22 फरवरी, 2026 तक मिलान और कोर्टिना डी'अमपेत्जो (इटली) में आयोजित किया जाएगा। अभिनव बिंद्रा ने इस अवसर पर अपनी खुशी सोशल मीडिया पर व्यक्त करते हुए लिखा, “मिलानो कोर्टिना 2026 ओलंपिक टॉर्च रिले के लिए मशालवाहक के रूप में चुना जाना मेरे लिए वास्तव में सम्मान की बात है। ओलंपिक मशाल हमेशा मेरे दिल के करीब रही है — यह सपनों, दृढ़ता और खेलों के जरिए विश्व एकता का प्रतीक है। इसे फिर से लेकर चलना मेरे लिए सम्मान और प्रेरणा दोनों है। इस अद्भुत सम्मान के लिए मिलानो कोर्टिना 2026 का धन्यवाद।” बिंद्रा ने 2008 बीजिंग ओलंपिक में 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीता था। यह चौथा अवसर होगा जब इटली शीतकालीन ओलंपिक की मेज़बानी करेगा। इस बार के संस्करण में 16 विधाओं में कुल 116 पदक स्पर्धाएं होंगी, जो बीजिंग 2022 की तुलना में 7 इवेंट और 1 नई विधा अधिक हैं।  

पेंशन स्कीम में EPFO के 5 अहम अपडेट, जानें कैसे होगा फायदा

नई दिल्ली अगर आप नौकरीपेशा व्यक्ति हैं और हर महीने आपकी सैलरी से PF  कटता है, तो यह खबर आपके लिए बेहद अहम है। Employees’ Provident Fund Organisation (EPFO) ने Employee Pension Scheme (EPS) में कुछ बड़े बदलाव किए हैं, जो सीधे तौर पर आपकी पेंशन की राशि और प्रोसेस को प्रभावित करेंगे। आइए जानते हैं कौन से हैं ये 5 अहम बदलाव… अब औसत वेतन पर तय होगी पेंशन पहले पेंशन की गणना आखिरी वेतन के आधार पर की जाती थी। अब EPFO ने इसे बदलते हुए पिछले 60 महीनों (5 साल) के औसत वेतन को आधार बनाया है। इससे उन कर्मचारियों को फायदा होगा जिनकी सैलरी धीरे-धीरे बढ़ी है। यह नियम पहले से लागू है, लेकिन अब प्रोसेस को और आसान बना दिया गया है ताकि किसी को पेंशन कैलकुलेशन में नुकसान न हो। पेंशन की लिमिट बढ़कर ₹15,000 प्रति माह EPFO ने पेंशन लिमिट को बढ़ा दिया है। अब अधिकतम पेंशन ₹7,500 से बढ़ाकर ₹15,000 प्रति माह कर दी गई है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद लिया गया यह फैसला उन लोगों के लिए राहत लेकर आया है जिनकी सैलरी तो अधिक थी, लेकिन पेंशन लिमिट की वजह से उन्हें कम रकम मिलती थी। अब 50 साल की उम्र में भी मिलेगी पेंशन अब कर्मचारियों को 50 वर्ष की आयु पूरी होते ही पेंशन निकालने का विकल्प मिल गया है। पहले न्यूनतम उम्र 58 साल थी, लेकिन अब इसे घटा दिया गया है। हालांकि, जल्दी पेंशन लेने पर राशि थोड़ी कम हो सकती है। अब पेंशन क्लेम होगा ऑनलाइन EPFO ने डिजिटल क्लेम प्रोसेस को पूरी तरह से ऑनलाइन कर दिया है। अब फॉर्म भरने से लेकर दस्तावेज अपलोड करने तक की प्रक्रिया आप EPFO की वेबसाइट या मोबाइल ऐप से पूरी कर सकते हैं। इससे पहले जो काम महीनों में होता था, अब कुछ हफ्तों में पूरा हो जाएगा। नौकरी बदलने पर नहीं होगा नुकसान EPFO ने Pension Portability System को बेहतर बना दिया है। अब अगर आप नौकरी बदलते हैं, तो आपकी पुरानी सर्विस अपने आप नई कंपनी के रिकॉर्ड में जुड़ जाएगी। यानी पेंशन कंटिन्यूटी बनी रहेगी और पुरानी सर्विस का फायदा भी मिलेगा। EPFO के इन बदलावों से न सिर्फ कर्मचारियों को आर्थिक सुरक्षा मिलेगी बल्कि रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली पेंशन भी ज्यादा पारदर्शी और आसान तरीके से प्राप्त होगी।  

भारत की डिफेंस क्षमता का प्रदर्शन जबलपुर में, व्हीकल फैक्ट्री में होगा बड़ा कॉन्क्लेव, कॉरिडोर बनेगा गेमचेंजर

जबलपुर  7 से 9 नवंबर तक जबलपुर में एक डिफेंस कॉन्क्लेव का आयोजन किया जा रहा है. यह आयोजन जबलपुर के व्हीकल फैक्ट्री में होगा. इसमें भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अलावा निजी क्षेत्र की कंपनियां भी अपने उत्पादों की जानकारी देगी. जबलपुर के जनप्रतिनिधियों का मानना है कि इस आयोजन से जबलपुर के आसपास डिफेंस कॉरिडोर पर भी चर्चा शुरू हो जाएगी. रक्षा मंत्रालय की कंपनियों के उत्पादों का प्रदर्शन व्हीकल फैक्ट्री जबलपुर के जनसंपर्क अधिकारी गौरव दीक्षित ने बताया कि, ''7 नवंबर से 9 नवंबर तक जबलपुर के व्हीकल फैक्ट्री के परिसर में एक डिफेंस कॉन्क्लेव का आयोजन किया जा रहा है. इसमें देशभर की रक्षा मंत्रालय की कंपनियों के उत्पादों का प्रदर्शन किया जाएगा. यह आयोजन देश में बड़े शहरों में होता था, लेकिन इस बार यह मौका जबलपुर की व्हीकल फैक्ट्री को मिला है.'' जबलपुर में रक्षा मंत्रालय की कई बड़ी फैक्ट्रियां हैं जिनमें भारतीय सेना की जरूरत के लिए उत्पाद तैयार किए जाते हैं.'' व्हीकल फैक्ट्री खमरिया व्हीकल फैक्ट्री खमरिया भारत की कुछ बड़ी फैक्ट्री में से एक है. इसमें सेना के उपयोग में आने वाले वाहन बनाए जाते हैं. जैसे सामान्य स्टाफ वाहन, लॉजिस्टिक्स वाहन, बुलेटप्रूफ वाहन, हल्के बख्तरबंद वाहन, माइन प्रोटेक्टेड वाहन और विशेषज्ञ भूमिका वाले वाहन जैसे रॉकेट लॉन्चर, स्व-चालित हॉवित्जर, वाटर बॉवर्स, ईंधन टैंकर, फील्ड एम्बुलेंस, टिपर, बैटरी कमांड पोस्ट, जनरेटर सेट, लाइट रिकवरी वाहन, फील्ड आर्टिलरी ट्रैक्टर, किचन कंटेनर आदि का निर्माण और संयोजन करता है. इनके अलावा कुछ विशेष वहां भी तैयार किए जाते हैं जिनमें शहर की ही दूसरी फैक्ट्री का सहयोग भी लिया जाता है. गन कैरिज फैक्ट्री जबलपुर जबलपुर की फैक्ट्रियां एक दूसरे के सहयोग से चलती है, क्योंकि कुछ सामान एक फैक्ट्री में बनता है तो कुछ दूसरी फैक्ट्री में बनता है. गन कैरिज फैक्ट्री सेना के उपयोग में आने वाले 8/8 ट्रक बना रही है. इन ट्रक्स की खासियत यह होती है कि उनके आठों चकों में ताकत होती है और यह किसी भी विपरीत परिस्थिति में चल सकते हैं. 1. वीएफजे-जीसीएफ 105 मिमी ट्रक-माउंटेड सेल्फ-प्रोपेल्ड गन सिस्टम, 6X6 और 4X4 कॉन्फ़िगरेशन में 2. वीएफजे-जीसीएफ शारंग टोड गन 3. धनुष हॉवित्जर का निर्माण जीसीएफ में और ट्रैक्टर का निर्माण वीएफजे में किया गया 4. वीएफजे-जीसीएफ 8X8 155 मिमी ट्रक-माउंटेड सेल्फ-प्रोपेल्ड गन सिस्टम    ऑर्डिनेंस फैक्ट्री खमरिया ऑर्डिनेंस फैक्ट्री खमरिया भारत में गोला बारूद बनाने वाली सबसे बड़ी फैक्ट्री है. इसमें हजारों की तादाद में अभी भी कर्मचारी काम करते हैं. भारत की तीनों सेनाओं के लिए यहां पर गोला बारूद तैयार किया जाता है. ऑपरेशन सिंदूर में जी L-70 बम ने सबसे ज्यादा तबाही मचाई थी. वह जबलपुर का ही बना हुआ था. रूस की मदद से भी पिकोरा बम बनाया जा रहा है. ग्रे आयरन फाउंड्री ग्रे आयरन फाउंड्री यह रक्षा मंत्रालय की एक छोटी फैक्ट्री है, लेकिन इसका काम बहुत महत्वपूर्ण है. रक्षा मंत्रालय में कई ऐसे लोहे के सामानों की जरूरत पड़ती है जो बाजार में नहीं मिलते, इसलिए इन्हें ढालकर बनाया जाता है. इसलिए इस यूनिट को अलग ही तैयार किया गया था. इनके अलावा जबलपुर में कुछ दूसरी छोटी फैक्ट्रियां भी हैं, जिनमें सेना के उपयोग के सामान बनाए जाते हैं. इस कॉन्क्लेव में इन सभी का प्रदर्शन किया जाएगा. जबलपुर केंट विधानसभा के विधायक अशोक रोहाणी का कहना है कि, ''इस कॉन्क्लेव के जरिए इस बात पर भी चर्चा होगी कि जबलपुर में एक डिफेंस कॉरिडोर बनाया जाए. जहां रक्षा मंत्रालय के उपयोग में आने वाले कल पुर्जे और हथियार तैयार किया जा सके और इसमें निजी निवेश भी आ सके. जबलपुर की बड़ी फैक्ट्रियां इन छोटे निवेशों के लिए एक अच्छा माहौल बनाती हैं. जबलपुर में उत्पादित होने वाले रक्षा उत्पादों का बाजार केवल भारत में ही है. इन कंपनियों में बनने वाले सामानों को भारत निर्यात भी करता है और दुनिया के कई देश भारत से यह सामान खरीदते हैं. रक्षा से जुड़ा हुआ सामान बनाना रोजगार का एक बड़ा अवसर बन सकता है. अब देखना है कि इस कॉन्क्लेव के जरिए मध्य प्रदेश क्या फायदा उठा पाता है.

मेडिकल क्षेत्र में बड़ी सफलता: यूनिवर्सल किडनी बनी, हर ब्लड ग्रुप के लिए काम आएगी

 नई दिल्ली किडनी की बीमारी से जूझ रहे लाखों लोग रोज नई उम्मीद की तलाश में रहते हैं. लेकिन अब एक अच्छी खबर है. कनाडा और चीन के वैज्ञानिकों ने 10 साल की मेहनत के बाद यूनिवर्सल किडनी बनाई है, जो किसी भी ब्लड टाइप वाले मरीज को दी जा सकती है. इससे वेटिंग लिस्ट छोटी होगी और जिंदगियां बचेंगी. मेडिकल की दुनिया में वैज्ञानिकों को बड़ी सफलता मिली है। उन्होेंने ऐसी यूनिवर्सल किडनी बना ली है जो हर ब्लड ग्रुप के मरीजों से मैच होगी। ऐसे में किडनी ट्रांसप्लांट करने समय डोनर खोजने का झंझट खत्म हो जाएगा। लाखों लोगों में जगी उम्मीद किडनी की बीमारी से जूझ रहे लाखों लोग रोज नई उम्मीद की तलाश में रहते हैं। अब ऐसे मरीजों के लिए अच्छी खबर आई है। कनाडा और चीन के वैज्ञानिकों ने 10 साल की मेहनत के बाद यूनिवर्सल किडनी बनाई है। यह किसी भी ब्लड ग्रुप वाले मरीज को दी जा सकती है। यह खोज मेडिकल की दुनिया में चमत्कार मानी जा रही है। इससे केवल वेटिंग लिस्ट छोटी होगी बल्कि रोगियों को नई जिंदगी मिलेगी। इस नई खोज से दुनिया भर के डॉक्टर उत्साहित हैं। डॉक्टरों के अनुसार किडनी ट्रांसप्लांट में अभी तक कई जटिलताएं हैं जिससे रोगी को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। ट्रांसप्लांट से पहले डोनर की किडनी रिसीवर के ब्लड ग्रुप से मैच करनी पड़ती है। उदाहरण के लिए ओ टाइप का ब्लड यूनिवर्सल डोनर है। यानी ये किसी भी ग्रुप ए, बी, एबी और ओ वाले को अपनी किडनी दे सकता है। समस्या यह है कि ओ टाइप की किडनियां कम हैं, क्योंकि इन्हें हर कोई इस्तेमाल कर सकता है।  वेटिंग लिस्ट हो जाएगी कम वेटिंग लिस्ट के अनुसार आधे से ज्यादा लोग ओ टाइप की किडनी का इंतजार करते हैं। अमेरिका में ही रोज 11 लोग किडनी न मिलने से मर जाते हैं। भारत में भी लाखों मरीज डायलिसिस पर जी रहे हैं। अगर अलग ब्लड ग्रुप की किडनी ट्रांसप्लांट करें तो बॉडी उसे विदेशी समझकर रिजेक्ट कर देती है। मौजूदा तरीके में मरीज को कई महीनों तक दवाओं पर ही निर्भर रहना पड़ता है। डॉक्टरों के अनुसार यह प्रोसेस काफी महंगा, लंबा और जोखिम भरा है। मरीजों की जान बचाने के लिए लिविंग डोनर चाहिए। ऐसे में किडनी ट्रांसप्लांट करने में कई महीने लग जाते हैं। ओ टाइप जैसी किडनी वैज्ञानिकों ने जिस नई किडनी को बनाया है वह ओ टाइप जैसी है। ये किसी भी ब्लड ग्रुप वाले मरीज के बॉडी में घुल-मिल जाएगी। वैज्ञानिकों ने ए टाइप की किडनी को ओ टाइप में बदल दिया। कनाडा की यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया के बायोकेमिस्ट स्टीफन विथर्स के अनुसार ये पहली बार इंसानी बॉडी में टेस्ट हुई है। इससे हमें लंबे समय तक काम करने के टिप्स मिले। ये किडनी ब्रेन-डेड यानी मस्तिष्क मृत व्यक्ति के बॉडी में कई दिनों तक काम करती रही। परिवार की सहमति से यह रिसर्च हुई है।  ब्लड टाइप ए,बी और  एबी में किडनी की सतह पर शुगर मॉलिक्यूल्स लगाए जाते हैं। इससे ये बॉडी को बताते हैं कि ये किडनी अपनी है विदेशी नहीं है।  पुरानी कार से रंग हटाने जैसा शोध विथर्स का कहना है कि यह पुरानी कार से रंग हटाने जैसा है। एंटीजेंस हटते ही इम्यून सिस्टम किडनी को अपना समझ लेता है। ये एंजाइम्स पहले से पहचाने गए थे, लेकिन अब इन्हें किडनी पर सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया गया है। यह रिसर्च नेचर बायोमेडिकल इंजीनियरिंग जर्नल में छपी है। वैज्ञानिकों के अनुसार दुनिया भर में किडनी फेलियर बढ़ रहा है। इसका बड़ा  कारण डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर है। ऐसे में दुनियाभर में किडनी के रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है। अब इस यूनिवर्सल किडनी के आ जाने से करोड़ों लोगों का जीवन बचाया जा सकेगा। यूनिवर्सल किडनी क्या है? एक नजर ये नई किडनी 'O टाइप जैसी' है, जो किसी भी ब्लड ग्रुप वाले मरीज के बॉडी में घुल-मिल जाएगी. वैज्ञानिकों ने A टाइप की किडनी को O टाइप में बदल दिया. कनाडा की यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया के बायोकेमिस्ट स्टीफन विथर्स कहते हैं कि ये पहली बार इंसानी बॉडी में टेस्ट हुई. इससे हमें लंबे समय तक काम करने के टिप्स मिले. ये किडनी ब्रेन-डेड (मस्तिष्क मृत) व्यक्ति के बॉडी में कई दिनों तक काम करती रही. परिवार की सहमति से ये रिसर्च हुई. कैसे बनाई गई ये किडनी? एंजाइम्स की जादुई कैंची ब्लड टाइप A, B या AB में किडनी की सतह पर शुगर मॉलिक्यूल्स (एंटीजेंस) लगे होते हैं, जो बॉडी को बताते हैं कि ये 'अपनी' है या 'विदेशी'. O टाइप में ये एंटीजेंस नहीं होते. वैज्ञानिकों ने स्पेशल एंजाइम्स (प्रोटीन) इस्तेमाल किए, जो A टाइप के एंटीजेंस को काट देते हैं. विथर्स इसे कार के रंग हटाने से तुलना करते हैं. कहते हैं कि जैसे लाल पेंट हटाकर न्यूट्रल प्राइमर दिखाना. एंटीजेंस हटते ही इम्यून सिस्टम किडनी को अपना समझ लेता है. ये एंजाइम्स पहले से पहचाने गए थे, लेकिन अब इन्हें किडनी पर सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया गया. रिसर्च नेचर बायोमेडिकल इंजीनियरिंग जर्नल में छपी है. टेस्ट कैसे हुआ? रिजल्ट्स क्या निकले? ब्रेन-डेड व्यक्ति के बॉडी में A टाइप किडनी ट्रांसप्लांट की गई. वो कई दिनों तक काम करती रही – ब्लड फिल्टर किया, वेस्ट हटाया. तीसरे दिन A टाइप के साइन थोड़े दिखे, जिससे हल्का इम्यून रिस्पॉन्स हुआ. लेकिन ये सामान्य से कम था. बॉडी किडनी को सहन करने की कोशिश कर रही थी. विथर्स कहते हैं कि ये बेसिक साइंस का मरीजों तक पहुंचना है. हमारी खोजें अब रियल वर्ल्ड में असर दिखा रही हैं. आगे की चुनौतियां: अभी लिविंग ह्यूमन्स में टेस्ट बाकी ये शुरुआत है. कई मुश्किलें बाकी हैं…     एंटीजेंस पूरी तरह न हटें, तो रिजेक्शन हो सकता है.     लंबे समय तक कैसे चलेगी? अभी सिर्फ कुछ दिन.     लिविंग पेशेंट्स पर ट्रायल कब? अभी दूर है. वैज्ञानिक दूसरे तरीके भी आजमा रहे हैं – जैसे पिग्स की किडनी इस्तेमाल करना या नई एंटीबॉडीज बनाना. लेकिन ये यूनिवर्सल किडनी वेटिंग टाइम कम करके लाखों जिंदगियां बचा सकती है. क्यों महत्वपूर्ण है ये ब्रेकथ्रू?  दुनिया भर में किडनी फेलियर बढ़ रहा है – डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर से. अमेरिका में 1 लाख से ज्यादा … Read more

FAO रिपोर्ट: भारत का वन क्षेत्र तेजी से बढ़ा, एक दशक में 1.91 हेक्टेयर का विस्तार, विश्व में 9वां स्थान हासिल

नई दिल्ली भारत ने वैश्विक स्तर पर कुल वन क्षेत्र के मामले में नौवां स्थान हासिल करके वैश्विक पर्यावरण संरक्षण में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है. केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने बुधवार को बाली में खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) द्वारा शुरू किए गए वैश्विक वन संसाधन आकलन (GFRA) का हवाला देते हुए यह घोषणा की. उन्होंने कहा कि यह उल्लेखनीय प्रगति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों की सफलता को रेखांकित करती है, जिनका उद्देश्य वन संरक्षण, वनीकरण और समुदाय के नेतृत्व में पर्यावरणीय कार्रवाई करना है. यादव ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, "भारत वैश्विक वन आकलन 2025 में शीर्ष 9 में है. हमने पिछले आकलन में 10वें स्थान की तुलना में वैश्विक स्तर पर वन क्षेत्र के मामले में 9वां स्थान हासिल किया है. हमने वार्षिक लाभ के मामले में भी वैश्विक स्तर पर अपना तीसरा स्थान बनाए रखा है.एफएओ ने बाली में वैश्विक वन संसाधन मूल्यांकन (जीएफआरए) 2025 शुरू किया है.” एक पेड़ मां के नाम पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल – 'एक पेड़ मां के नाम' से पूरे देश को पौधारोपण की प्रेरणा मिल रही है। उन्होंने कहा कि पौधारोपण अभियानों में बढ़ती जन भागीदारी, विशेष रूप से 'एक पेड़ मां के नाम' पहल के तहत, और राज्य सरकारों द्वारा बड़े पैमाने पर चलाए गए अभियानों ने इस प्रगति में योगदान दिया है। सभी भारतीयों के लिए खुशी उन्होंने एक्स पोस्ट में लिखा, ''यह सभी भारतीयों के लिए खुशी का कारण है। हमने पिछले मूल्यांकन में 10वें स्थान की तुलना में वैश्विक स्तर पर वन क्षेत्र के मामले में 9वां स्थान हासिल किया है। हमने वार्षिक लाभ के मामले में भी वैश्विक स्तर पर अपना तीसरा स्थान बनाए रखा है। वैश्विक वन संसाधन मूल्यांकन (जीएफआरए) 2025 को एफएओ द्वारा बाली में जारी किया गया है।'' दुनिया के शीर्ष 10 वन-समृद्ध देशों में शामिल है भारत एफएओ की रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया का कुल वन क्षेत्र 4.14 बिलियन हेक्टेयर है, जो पृथ्वी की 32 प्रतिशत भूमि को कवर करता है। इसका आधे से ज्यादा (54 प्रतिशत) हिस्सा सिर्फ पांच देशों – रूस, ब्राजील, कनाडा, अमेरिका और चीन में केंद्रित है। आस्ट्रेलिया, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य और इंडोनेशिया के बाद भारत दुनिया के शीर्ष 10 वन-समृद्ध देशों में शामिल है। चीन ने दर्ज की सबसे ज्यादा वृद्धि चीन ने 2015 और 2025 के बीच वन क्षेत्र में सबसे ज्यादा शुद्ध वार्षिक वृद्धि दर्ज की, जो 1.69 मिलियन हेक्टेयर प्रति वर्ष थी, उसके बाद रूस 9,42,000 हेक्टेयर और भारत 1,91,000 हेक्टेयर के साथ दूसरे स्थान पर है। महत्वपूर्ण वन विस्तार वाले अन्य देशों में तुर्किये (1,18,000 हेक्टेयर), आस्ट्रेलिया (1,05,000 हेक्टेयर), फ्रांस (95,900 हेक्टेयर), इंडोनेशिया (94,100 हेक्टेयर), दक्षिण अफ्रीका (87,600 हेक्टेयर), कनाडा (82,500 हेक्टेयर) और वियतनाम (72,800 हेक्टेयर) शामिल हैं। वन क्षेत्र में वृद्धि दर्ज करने वाला एकमात्र क्षेत्र है एशिया मूल्यांकन से पता चला है कि 1990 और 2025 के बीच वन क्षेत्र में वृद्धि दर्ज करने वाला एशिया एकमात्र क्षेत्र है, जिसमें चीन और भारत में वृद्धि सबसे ज्यादा है। वैश्विक स्तर पर शुद्ध वन हानि की वार्षिक दर में आधे से भी ज्यादा की कमी आई है, जो 1990 के दशक के 10.7 मिलियन हेक्टेयर से घटकर 2015-2025 के दौरान 4.12 मिलियन हेक्टेयर हो गई है। एफएओ ने कहा कि एशिया के वन विस्तार ने वैश्विक वनों की कटाई को धीमा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका में सबसे ज्यादा है। रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के 20 प्रतिशत वन अब कानूनी रूप से स्थापित संरक्षित क्षेत्रों में हैं, जबकि 55 प्रतिशत का प्रबंधन दीर्घकालिक योजनाओं के तहत किया जाता है। यादव ने कहा कि बढ़ती जन भागीदारी हरित और टिकाऊ भविष्य के प्रति सामूहिक जिम्मेदारी की मजबूत भावना को बढ़ावा दे रही है. एफएओ की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया का कुल वन क्षेत्र 4.14 अरब हेक्टेयर है, जो पृथ्वी की 32 फीसदी जमीन पर है. रिपोर्ट के अनुसार आधे से अधिक वनक्षेत्र (54 प्रतिशत) सिर्फ पांच देशों – रूस, ब्राजील, कनाडा, अमेरिका और चीन में है. वहीं ऑस्ट्रेलिया, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य और इंडोनेशिया के बाद भारत दुनिया के शीर्ष 10 वन-समृद्ध देशों में शामिल है. इतना ही नहीं चीन में 2015 से 2025 के बीच वन क्षेत्र में सबसे ज्यादा वार्षिक शुद्ध वृद्धि 1.69 मिलियन हेक्टेयर प्रति वर्ष दर्ज की गई, उसके बाद रूसी संघ 9,42,000 हेक्टेयर और भारत 1,91,000 हेक्टेयर के साथ दूसरे स्थान पर है. इसके अलावा अहम वन विस्तार वाले अन्य देशों में तुर्किये (1,18,000 हेक्टेयर), ऑस्ट्रेलिया (1,05,000 हेक्टेयर), फ्रांस (95,900 हेक्टेयर), इंडोनेशिया (94,100 हेक्टेयर), दक्षिण अफ्रीका (87,600 हेक्टेयर), कनाडा (82,500 हेक्टेयर) और वियतनाम (72,800 हेक्टेयर) शामिल हैं. गौरतलब है कि मूल्यांकन से पता चला है कि एशिया इकलौता ऐसा इलाका है जहां 1990 से 2025 के बीच वन क्षेत्र में इजाफा दर्ज किया गया. इसमें चीन और भारत का योगदान सबसे ज्यदा है. एफएओ ने कहा कि एशिया में वनक्षेत्र विस्तार ने वैश्विक वनों की कटाई को धीमा करने में अहम भूमिका निभाई है जबकि दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका में वनों की सबसे अधिक कटाई हुई है. विशेषज्ञ की राय नीतिगत फोकस का स्पष्ट प्रतिबिंब है : वोहरा इस घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, पर्यावरण कार्यकर्ता बीएस वोहरा ने ईटीवी भारत को बताया, "कुल वन क्षेत्र में भारत का विश्व स्तर पर 9वें स्थान पर पहुंचना और वार्षिक वन वृद्धि में तीसरे स्थान पर बने रहना, निरंतर वनीकरण कार्यक्रमों और नीतिगत फोकस का स्पष्ट प्रतिबिंब है. यह संकेत देता है कि समुदाय-आधारित वृक्षारोपण अभियान, नीति-स्तरीय वन प्रशासन और 'एक पेड़ के नाम' जैसी पहल जैसे बड़े पैमाने के प्रयास अपना प्रभाव दिखा रहे हैं." हालांकि, उन्होंने जोर देकर कहा कि अब ध्यान मात्रा से हटकर गुणवत्ता पर केंद्रित होना चाहिए, ताकि दीर्घकालिक पर्यावरणीय और जलवायु लचीलापन सुनिश्चित करने के लिए जैव विविधता, पारिस्थितिक स्वास्थ्य और स्थिरता सुनिश्चित की जा सके.  

पंजाब की फसल कटाई में धीमी रफ्तार, 67% प्रमुख एरिया में अभी बाकी है धान की कटाई

चंडीगढ़ पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की  जारी रिपोर्ट के अनुसार अभी फिलहाल सिर्फ 33 प्रतिशत एरिया में धान की फसल कटाई हुई इसलिए फसल के 67 प्रतिशत प्रमुख एरिया की कटाई बाकी है। फसल में नमी की समस्या भी अब पहले से कम हो गई है जिस कारण अगले दो सप्ताह के दौरान किसानों कटाई पर जोर रहेगा। बाढ़ व बारिश के कारण पहले ही धान की कटाई में देरी हुई है। इसका असर पराली जलाने के मामलों पर भी देखने को मिलेगा। पंजाब यूनिवर्सिटी (पीयू) और पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआई) चंडीगढ़ की संयुक्त टीम की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में दिवाली से पहले 17 अक्तूबर को पराली जलाने के 37 मामले सामने आए थे लेकिन 21 अक्तूबर को यह केस बढ़कर 109 तक पहुंच गए। इस तरह मामलों में पहले से ही बढ़ोतरी हुई है।  हरियाणा में पराली के 6 मामले पकड़ में आए थे जो 21 अक्तूबर को बढ़कर 18 एक हो गए। पीयू-पीजीआई की टीम सैटेलाइट से पराली जलाने के मामले पर नजर रख रही है। अगर कुल मामलों की बात की जाए तो 1 सितंबर से लेकर 21 अक्तूबर तक पंजाब में पराली के 583, हरियाणा में 301 और पंजाब पाकिस्तान में 3935 केस अब तक रिपोर्ट किए गए हैं। पंजाब के चार जिलों में अब तक सबसे अधिक कटाई प्रदेश के चार जिलों में ही धान की अब तक सबसे अधिक कटाई हुई है। अमृतसर में 1.80 लाख एरिया में धान की रोपाई हुई थी और अब तक 70 प्रतिशत एरिया में फसल की कटाई हो चुकी है। इसी तरह गुरदासपुर में 1.55 लाख हेक्टेयर एरिया में फसल की रोपाई हुई थी, जबकि 62.74 प्रतिशत एरिया में फसल की कटाई की जा चुकी है। इसी तरह रोपड़ में 72 प्रतिशत और तरनतारन में 67.95 प्रतिशत कटाई का काम पूरा हो चुका है। अब इन जिलों में कटाई पकड़ेगी जोर लुधियाना में सबसे अधिक 2.57 लाख हेक्टेयर एरिया में धान की फसल लगाई गई थी लेकिन अभी तक जिले में सिर्फ 26% एरिया में ही फसल कटाई हो पाई है। इसके अलावा बठिंडा में 2.14 लाख हेक्टेयर में धान की खेती हुई जबकि सिर्फ 13% एरिया में कटाई हो पाई है। श्री मुक्तसर साहिब 31%, संगरुर 17%, मोगा में 8%, फिरोजपुर 37% और जालंधर में 23% फसल की कटाई हो सकी है। आने वाले दिनों में इन जिलों में कटाई रफ्तार पकड़ेगी जिससे पराली जलाने के मामले भी बढ़ सकते हैं। 175 लाख मीट्रिक टन खरीद का लक्ष्य सरकार ने इस बार 175 लाख मीट्रिक टन खरीद धान की खरीद का लक्ष्य तय किया है। बाढ़ के कारण प्रदेश में फसल का काफी नुकसान हुआ है। अब तक 5 लाख एकड़ एरिया में फसल खराब हो चुकी है जिस कारण इस लक्ष्य को भी कम किया गया है। पहले सरकार ने 180 लाख मीट्रिक टन निर्धारित किया था। धान की खरीद के लिए इस बार 1822 नियमित केंद्र स्थापित किए गए हैं।

मध्य प्रदेश के 9 जिलों में गधों का सफाया, चीन के प्रभाव पर सवाल

भोपाल  क्या मध्य प्रदेश में अब गधे दुर्लभ हो जाएंगे? ये सवाल इसलिए भी खास हो जाता है क्योंकि तीन दशक से भी कम समय में इनकी संख्या में 94% की कमी आई है। एमपी में गधों की जमसंख्या में तेजी से गिरावट देखी गई है। नई रिपोर्ट बताती है कि हिंदुस्तान का दिल कहे जाने वाले इस प्रदेश में अब सिर्फ 3,052 गधे बचे हैं, जो कि 1997 में 49,289 की संख्या से एक बड़ी गिरावट है। राज्य के 55 में से नौ जिलों में एक भी गधा नहीं पाया गया है,जो इस बात का संकेत है कि यह जानवर,जो कभी ग्रामीण भारत में परिवहन और व्यापार का मुख्य आधार था,लगभग पूरी तरह से गायब हो चुका है। गधों के गायब होने का कारण टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार,गधों के गायब होने के पीछे अभी तक कोई खास अध्ययन नहीं हुआ है,लेकिन गुड़गांव के एक पशु अधिकार कार्यकर्ता नरेश कादियान ने केंद्र सरकार से गधों को लुप्तप्राय प्रजाति घोषित करने का आग्रह किया है। वह चेतावनी देते हैं कि चीन की गधों की खाल की मांग ही इस गिरावट का कारण बन रही है। वह चीन के एजियाओ उद्योग को इसके लिए दोषी मानते हैं। इस उद्योग में गधों की खाल को उबालकर एक जिलेटिन निकाला जाता है जिसका इस्तेमाल पारंपरिक टॉनिक,कामोत्तेजक और एंटी एजिंग क्रीम बनाने में किया जाता है। इसी वजह से यह प्रजाति विलुप्त होने की कगार पर पहुंच रही है। आधिकारिक आंकड़े आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार नर्मदापुरम में सबसे ज्यादा (332) गधे हैं। इसके बाद छतरपुर (232),रीवा (226) और मुरैना (228) का नंबर आता है। दूसरी ओर विदिशा में जहां कभी 6,400 से ज्यादा गधे थे,अब वहां सिर्फ 171 बचे हैं और भोपाल में केवल 56 । डिंडोरी, निवाड़ी, सिवनी, हरदा और उमरिया जैसे जिलों में एक भी गधा दर्ज नहीं हुआ है,जो स्थानीय रूप से उनके विलुप्त होने की पुष्टि करता है। अन्य पशुओं की स्थिति जनगणना से पशुधन की अन्य श्रेणियों में भी बड़े रुझान सामने आते हैं। मध्य प्रदेश में कुल 3.75 करोड़ जानवर हैं, जिनमें शामिल हैं:

अग्निवीरों की नौकरी सुरक्षित, 75 फीसदी बने रहेंगे फोर्स का हिस्सा

नई दिल्ली सेना में भर्ती के लिए आई अग्निवीर स्कीम पर सवाल उठाए जाते रहे हैं। इस स्कीम के तहत अब तक 25 फीसदी जवानों को ही 4 साल के कार्यकाल के बाद भी नौकरी में बनाए रखने का प्रावधान है। अब इस लिमिट में बड़ा इजाफा हो सकता है और इसे 75 फीसदी तक किया जा सकता है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। इस संबंध में जैसलमेर में आज आयोजित होने वाली आर्मी कमांडर्स की प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी इसके बारे में कोई निर्णय हो सकता है। अहम बात यह है कि अगले साल ही अग्निवीरों के पहले बैच के 4 साल की अवधि पूरी हो रही है। ऐसे में इन लोगों को फायदा मिल सकता है और 75 फीसदी लोगों की सेना में सेवा बरकरार रहेगी। मई में भारत ने पहलगाम आतंकी हमले के खिलाफ ऐक्शन लेते हुए पाक में सक्रिय आतंकी ठिकानों पर ऑपरेशन सिंदूर किया था। उसके बाद आज पहली बार आर्मी कमांडर्स की कॉन्फ्रेंस होने वाली है। इस कॉन्फ्रेंस में सेना की टॉप लीडरशिप तमाम मसलों पर बात करती है और प्रमुख मुद्दा सुरक्षा की समीक्षा होता है। एक और विषय पर विचार हो सकता है कि सेना के पास रिटायर सैनिकों का एक बड़ा पूल है। इनकी सेवाओं का कैसे प्रयोग किया जा सकता है। इस पर भी विचार होगा। फिलहाल इन लोगों को आर्मी वेलफेयर एजुकेशन सोसायटी, एक्स सर्विसमेन कॉन्ट्रिब्यूटरी हेल्थ स्कीम में ही लगाया गया है। अब इन लोगों की भागीदारी को बढ़ाने पर भी विचार होगा। मौजूदा सैनिकों के कल्याण के लिए भी कुछ फैसले लिए जा सकते हैं। सबसे अहम मसला यह होगा कि कैसे तीनों सेनाओं के बीच समन्वय बने और जॉइंट कमांड में काम हो सके। कोलकाता में बीते महीने कंबाइंड कमांडर्स कॉन्फ्रेंस का आयोजन हुआ था। इसमें पीएम नरेंद्र मोदी भी पहुंचे थे। उस मीटिंग में सरकार की ओर से ऐलान हुआ था कि तीन जॉइंट मिलिट्री स्टेशन बनेंगे। इसके अलावा आर्मी, नेवी और एयरफोर्स की शैक्षणिक शाखाओं का विलय किया जाएगा। यदि कोई हमला होता है या कोई ऑपरेशन करना है तो भारतीय बल कितनी देर में तैयार हो सकते हैं। हथियारों या विमानों की रिपेयर में कितना टाइम लग सकता है। इन मसलों पर भी आज बात होगी।