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ट्रंप की बड़ी पेशकश: अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच युद्ध सुलझाने को तैयार, बोले – तुरंत रोक सकता हूं नुकसान

वाशिंगटन  दुनिया में जब भी कहीं बम फटता है, बंदूक चलती है या सीमा पर तनाव बढ़ता है तो एक शख्स सामने आ ही जाता है और वो है डोनाल्ड ट्रंप. जिनका बयान दुनिया भर में चर्चा का विषय बन जाता है. इस बार उन्होंने अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच चल रहे संघर्ष पर अपनी राय रखी और कहा कि अगर वो चाहें तो इसे “आसानी से सुलझा सकते हैं.” अब भले ये बयान आत्मविश्वास से भरा हो या अति-आत्मविश्वास से, लेकिन ट्रंप का अंदाज हमेशा की तरह इस बार भी सुर्खियों में आ गया है.  ट्रंप का बयान जिसने हलचल मचा दी  पत्रकारों से बातचीत में ट्रंप ने कहा कि यह लगभग आखिरी मामला है, हालांकि मैं समझता हूं कि पाकिस्तान ने हमला किया है या अफगानिस्तान पर हमला हो रहा है. अगर मुझे इसे सुलझाना है तो यह मेरे लिए आसान है. इस बीच, मुझे अमेरिका चलाना है, लेकिन मुझे युद्ध सुलझाना पसंद है. यानि ट्रंप के अनुसार, अफगानिस्तान-पाकिस्तान जैसे दशकों पुराने विवाद को सुलझाना उनके लिए कोई मुश्किल काम नहीं. उन्होंने आगे कहा कि उन्हें जान-माल की हानि रोकने में गर्व महसूस होता है. उन्होंने कहा- जानते हो क्यों? मुझे लोगों को मारे जाने से रोकना पसंद है. मैंने लाखों लोगों की जान बचाई है, और मुझे लगता है कि हमें इस युद्ध में सफलता मिलेगी.” उनका यह बयान ऐसे समय आया जब पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच 48 घंटे के युद्धविराम (Ceasefire) को बढ़ाने पर सहमति बनी है. यह निर्णय दोहा में हुई बातचीत के बाद लिया गया, जहां सऊदी अरब और कतर ने मध्यस्थता का समर्थन किया. पाकिस्तानी हमले में मारे गए तीन अफगान खिलाड़ी लेकिन इसी बीच मामला फिर से गर्मा गया. खबर आई कि पाकिस्तान के फिर से हवाई हमलों में तीन अफगान क्रिकेटर मारे गए हैं. जिससे कि सीमा पर गोलियों की गूंज के बीच खेल जगत को झकझोर दिया. अफ़ग़ानिस्तान क्रिकेट बोर्ड (ACB) ने बताया कि तीन क्रिकेटर मारे गए हैं. यह हमला पूर्वी पक्तिका प्रांत में हुआ. बोर्ड ने कहा कि खिलाड़ी उरगुन से शाराना गए थे, जहां वे एक मित्रता-पूर्ण मैच में हिस्सा लेने वाले थे. उरगुन लौटते वक्त, एक सभा के दौरान उन्हें निशाना बनाया गया. जिसे बोर्ड ने “पाकिस्तानी शासन द्वारा किया गया कायराना हमला” बताया. मारे गए खिलाड़ियों की पहचान कबीर, सिबगतुल्लाह और हारून के रूप में हुई. इसी हमले में पांच अन्य लोग भी मारे गए. इसके बाद अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने पीड़ितों के सम्मान में अगले महीने होने वाली त्रिकोणीय श्रृंखला (Tri-series) जिसमें पाकिस्तान और श्रीलंका शामिल थे. इस हमला के बाद अफगानिस्तान ने नाम वापस ले लिया. रॉयटर्स का खुलासा- युद्धविराम के बावजूद हवाई हमले जारी दुनिया के कई हिस्सों में शांति सिर्फ कागज पर होती है जमीन पर नहीं. रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान ने युद्धविराम के बावजूद बरमल और उरगुन जिलों में हवाई हमले किए. इससे पहले अफ़ग़ान सीमा के पास एक आत्मघाती हमले में सात पाकिस्तानी सैनिक मारे गए और 13 घायल हुए. पाकिस्तानी सुरक्षा अधिकारियों ने बताया कि आतंकियों ने उत्तरी वजीरिस्तान जिले में एक सैन्य शिविर पर हमला किया. एक हमलावर ने विस्फोटकों से लदी गाड़ी को चारदीवारी से टकरा दिया और दो अन्य हमलावरों को गोली मार दी गई. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के कार्यालय से जारी बयान में कहा गया कि हमले में छह आतंकवादी मारे गए. तालिबान ने दी चेतावनी  अफगान तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने पश्तो भाषा के चैनल एरियाना न्यूज से कहा कि काबुल ने अपने बलों को आदेश दिया है कि जब तक पाकिस्तान किसी भी हमले से बचता है, तब तक अफगान बल युद्धविराम बनाए रखें. यानी यह एक शर्तिया शांति है अगर एक गोली चली, तो सबकुछ फिर से भड़क सकता है. कभी सहयोगी रहे इस्लामाबाद और काबुल अब कट्टर प्रतिद्वंद्वी बन चुके हैं. 2021 में अमेरिकी सेनाओं के अफगानिस्तान से निकलने के बाद तालिबान सत्ता में लौटा था, लेकिन पाकिस्तान के लिए वही ‘मित्र’ अब बोझ बन गया है. वर्तमान संकट की शुरुआत तब हुई जब पाकिस्तान ने काबुल से मांग की कि वो उन आतंकियों को रोके जो पाकिस्तान में हमले कर रहे हैं और जिनके ठिकाने अफगीनिस्तान में हैं. लेकिन तालिबान सरकार ने इस आरोप को नकार दिया. नतीजा यह हुआ कि सीमा पर गोलीबारी, हवाई हमले, आत्मघाती धमाके और अब निर्दोष खिलाड़ियों की मौत.

ट्रंप ने किया ऐलान: दक्षिण कोरिया में होंगे जिनपिंग के साथ सीधे वार्ता

वाशिंगटन  दक्षिण कोरिया में एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (एपीईसी) शिखर सम्मेलन का आयोजन होने जा रहा है। इस मौके पर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात होने जा रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने खुद इस बात की पुष्टि की है कि वह अगले कुछ सप्ताह में दक्षिण कोरिया में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात करेंगे। योनहाप न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप ने व्हाइट हाउस में यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की के साथ एक बैठक के दौरान यह टिप्पणी की। चीन ने दुर्लभ मृदा धातुओं (जो विभिन्न सैन्य और वाणिज्यिक उत्पादों के उत्पादन के लिए आवश्यक घटक हैं) पर निर्यात नियंत्रण कड़ा करने का फैसला लिया। इसके बाद से दोनों महाशक्तियों के बीच व्यापार तनाव बढ़ गया है। उन्होंने कहा, "चीन बातचीत करना चाहता है और हमें चीन से बात करना पसंद है। इसलिए हमारे संबंध बहुत अच्छे हैं और हम कुछ हफ्तों में दक्षिण कोरिया में मिलने वाले हैं।" अपनी टैरिफ नीति को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति ने दावा किया कि कोरिया में होने वाली संभावित बैठक से पहले अमेरिका "बहुत मजबूत" स्थिति में है। इस दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति से पूछा गया कि क्या शी जिनपिंग के साथ उनकी बैठक से कोई व्यापार समझौता हो सकता है। इस पर ट्रंप ने कहा, "हो सकता है।" उन्होंने कहा, "वे बातचीत करना चाहते हैं और हम बातचीत कर रहे हैं और मुझे लगता है कि हम एक ऐसा समझौता करेंगे जो दोनों के लिए अच्छा होगा। मुझे लगता है कि हम कुछ करेंगे।" पिछले शुक्रवार को, ट्रंप ने चीन के निर्यात नियंत्रण कदम की निंदा की और शी जिनपिंग के साथ प्रस्तावित बैठक रद्द करने की धमकी दी। उन्होंने 1 नवंबर से चीनी वस्तुओं पर अतिरिक्त 100 प्रतिशत टैरिफ लगाने और उसी दिन सभी महत्वपूर्ण सॉफ्टवेयर पर निर्यात नियंत्रण लागू करने की योजना की भी घोषणा की। टैरिफ योजना पर बात करते हुए, ट्रंप ने कहा कि अगर वे चाहें तो इसे "बढ़ा" सकते हैं, और चीन नहीं चाहता कि यह टैरिफ लागू हो। राष्ट्रपति ट्रंप ने दक्षिण कोरिया, जापान और यूरोपीय संघ का भी ज़िक्र किया और जोर देकर कहा, "हम बस यही चाहते हैं कि हमारे साथ निष्पक्ष व्यवहार हो। लेकिन निष्पक्षता यह है कि सैकड़ों अरबों और यहां तक कि खरबों डॉलर अमेरिका में आ रहे हैं और टैरिफ के कारण हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा सुरक्षित है। अगर टैरिफ नहीं होते, तो हमारी कोई राष्ट्रीय सुरक्षा नहीं होती। इसलिए यह बहुत महत्वपूर्ण है।" उसी दिन पहले प्रसारित फॉक्स बिजनेस के एक इंटरव्यू में, राष्ट्रपति ट्रंप ने यह भी कहा कि उनकी और शी जिनपिंग की एक "अलग" बैठक "निर्धारित" है। उन्होंने कहा, "हम कुछ हफ्तों में मिलने वाले हैं। दरअसल, हम दक्षिण कोरिया में मिलने वाले हैं। राष्ट्रपति शी जिनपिंग और अन्य लोग भी। लेकिन हमारी एक अलग बैठक निर्धारित है।" चीन के खिलाफ टैरिफ योजना पर, राष्ट्रपति ट्रंप का रुख थोड़ा नरम दिखाई दिया। उन्होंने कहा, "यह टिकाऊ नहीं है, लेकिन संख्या यही है। शायद नहीं… यह टिक सकता है, लेकिन उन्होंने मुझे ऐसा करने के लिए मजबूर किया। मुझे लगता है कि चीन के साथ हमारा रिश्ता ठीक रहेगा।" ट्रंप ने शी की भी प्रशंसा की और कहा, "मैं उनके साथ बहुत अच्छा व्यवहार करता हूं; वह एक बहुत ही मजबूत नेता और अद्भुत इंसान हैं।" उन्होंने आगे कहा कि अमेरिका को चीन के साथ "निष्पक्ष समझौता" करना होगा और अपने इस आरोप को दोहराया कि चीन ने अमेरिका को "धोखा" दिया है।

‘कोई विकल्प नहीं’ — ट्रंप के हमास पर तेज रुख के बाद क्या बढ़ेगी आर्मी एक्शन की संभावना?

वाशिंगटन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हमास को चेतावनी दी है क‍ि अगर गाजा में लोगों की हत्या करना जारी रखा तो हमारे पास कोई चॉइस नहीं बचेगा. अमेरिका के पास विकल्प कम रह जाएंगे और हमें अंदर जाकर उन्हें मारना होगा. ट्रंप के इस मैसेज ने मिड‍िल ईस्‍ट में एक बार फ‍िर आग भड़का दी है. ऐसी संभावनाएं जताई जाने लगी हैं क‍ि अमेर‍िकी सेना कहीं हमास पर अटैक न कर दे. उधर इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्‍याहू ने चेतावनी दी क‍ि मारे गए बंधकों के शव नहीं मिले तो हम तबाही मचा देंगे. इजरायल पूरी ताकत के साथ हमास से बात करेगा. पिछले कुछ दिनों में हमास ने कुछ बंधकों के शव वापस किए हैं, जिनमें से दो की पुष्टि इनबार हैइमैन और सार्जेंट मेजर मुहम्मद अल-अतारश के तौर पर हुई. इन हालिया सौंपियों के बाद सोमवार से अब तक मृत बंधकों की वापसी की संख्या नौ बताई गई है, जबकि अभी भी कई शव गाजा में बने हुए हैं. इस बीच वह 20 जीवित बंधक जिन्हें सोमवार को रिहा किया गया था, उनके बदले इजराइल ने 250 फिलिस्तीनी कैदियों और 1,718 गाजा कैदियों को रिहा कर दिया था. हमास ने क्‍या कहा हमास की सैन्य शाखा ने आधिकारिक तौर पर कहा है कि शेष शवों की तलाश जारी है और इसके लिए बड़े प्रयास और विशेष तकनीकी उपकरणों की आवश्यकता होगी. वहीं इस देरी के चलते इजरायली जनता में हमास के प्रति गुस्सा तेज हुआ है और कुछ आवाजें यह कह रही हैं कि हमास ने पिछले सप्ताह के सीजफायर समझौते के तहत अपनी ज़िम्मेदारियों का पालन नहीं किया. हालांकि संयुक्त राज्य की प्रशासनिक वक़्तियों ने इस बात को बहुत अधिक तौर पर “समझौते का उल्लंघन” बताने से हतोत्साहित किया है. मिड‍िल ईस्‍ट में जंग को नया मोड़ ट्रंप के ट्वीट ने मिड‍िल ईस्‍ट में जंग को नया मोड़ दे द‍िया है. कूटनीत‍िक मामलों के जानकारों का मानना है क‍ि ट्रंप का यह मैसेज सिर्फ हमास के ल‍िए नहीं है बल्कि रूस, ईरान और अन्य क्षेत्रीय खिलाड़ियों के ल‍िए भी है. दूसरी ओर, नेतन्याहू का पूरी ताकत वाला संदेश इजरायल की सैन्य नीति और आक्रामकता के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दोहराता है. हालांकि, लोगों का अभी भी मानना है क‍ि अमेर‍िका आर्मी ऑपरेशन को आख‍िरी विकल्‍प मानेगा. उससे पहले मुद्दों को सुलझाने की कोश‍िश करेगा.  

ट्रंप का बड़ा दावा: 8 महीने में 8 युद्ध रोके, कहा – मेरी वजह से बचे लाखों लोग

वाशिंगटन  अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर दोहराया कि उन्होंने वैश्विक संघर्षों को सुलझाने में बड़ी भूमिका निभाई. साथ ही एक बार फिर भारत- पाकिस्तान के बीच युद्ध रुकवाने का श्रेय लिया. बॉलरूम डिनर कार्यक्रम में ट्रंप ने दावा किया कि उन्होंने आठ महीनों में आठ युद्धों को रुकवाया. अपने कार्यों के प्रभाव के बारे ट्रंप ने कहा कि वह पुरस्कार या मान्यता से ज्यादा संघर्ष के दौरान इंसानों की जान को महत्व देते हैं. उन्होंने आगे कहा, 'लेकिन आप जानते हैं कि मुझे किस चीज की परवाह है? मैंने शायद करोड़ों लोगों की जान बचाई है.' ट्रंप की यह टिप्पणी रविवार (स्थानीय समय) को उनके द्वारा पहले की गई टिप्पणियों से मिलती-जुलती थी, जब उन्होंने दोहराया था कि उन्होंने कई लंबे समय से चले आ रहे वैश्विक संघर्षों को सुलझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. 13 अक्टूबर को मिडिल ईस्ट की यात्रा के दौरान एयर फोर्स वन में पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने गाजा युद्धविराम को आठवाँ संघर्ष बताया, जिसे उन्होंने सफलतापूर्वक समाप्त करने में मदद की थी. ट्रंप ने कहा था, 'यह मेरा आठवाँ युद्ध होगा जिसे मैंने सुलझाया है. मैंने सुना है कि अब पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच एक युद्ध चल रहा है. मैंने कहा था, मुझे वापस आने तक इंतजार करना होगा. मैं एक और युद्ध समाप्त कर रहा हूँ क्योंकि मैं युद्ध सुलझाने में माहिर हूँ.' उन्होंने अपने पिछले राजनयिक हस्तक्षेपों पर विचार किया. इसमें भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव कम करने का उनका दावा भी शामिल था. उन्होंने कहा, 'भारत और पाकिस्तान के बारे में सोचिए. उन युद्धों के बारे में सोचिए जो वर्षों से चल रहे थे. एक युद्ध 31 वर्षों तक चला, एक 32 वर्षों तक चला, एक 37 वर्षों तक चला, जिसमें हर देश में लाखों लोग मारे गए और मैंने इनमें से अधिकांश युद्धों को एक दिन के भीतर ही निपटा दिया.' ट्रंप ने कहा कि शांति प्रयासों के जरिए लोगों की जान बचाने में भूमिका निभाना उनके लिए सम्मान की बात है. उन्होंने आगे कहा कि उनके प्रयास किसी पहचान या पुरस्कार से प्रेरित नहीं थे. उन्होंने कहा, 'ऐसा करना सम्मान की बात है. मैंने लाखों लोगों की जान बचाई. मैंने यह नोबेल पुरस्कार के लिए नहीं किया. मैंने यह जान बचाने के लिए किया.' उनकी यह टिप्पणी नोबेल शांति पुरस्कार पर नए सिरे से चर्चा के बीच आई है. यह टिप्पणी उन्होंने 11 अक्टूबर को वेनेजुएला की विपक्षी नेता मारिया कोरिना मचाडो को 2025 का नोबेल शांति पुरस्कार विजेता घोषित किए जाने के बाद की थी. ट्रंप ने दावा किया कि मचाडो ने व्यक्तिगत रूप से उनसे संपर्क किया और यह पुरस्कार उनके सम्मान में समर्पित किया. उन्होंने कहा, 'जिस व्यक्ति को नोबेल पुरस्कार मिला, उसने आज मुझे फोन किया और कहा, 'मैं इसे आपके सम्मान में स्वीकार कर रही हूँ क्योंकि आप वास्तव में इसके हकदार थे.' हालाँकि, मैंने यह नहीं कहा, 'इसे मुझे दे दो'. मुझे लगता है कि उन्होंने ऐसा किया होगा. मैं इस दौरान उनकी मदद करता रहा हूँ.' मचाडो को लोकतांत्रिक अधिकारों को बढ़ावा देने और वेनेजुएला में तानाशाही से लोकतंत्र की ओर शांतिपूर्ण संक्रमण का नेतृत्व करने के उनके प्रयासों के लिए सम्मानित किया गया. शांति प्रयासों पर अपनी टिप्पणियों के सिलसिले में ट्रंप ने अपने रिकॉर्ड को मौजूदा रूस-यूक्रेन संघर्ष से जोड़ते हुए दोहराया कि उन्होंने कूटनीति के जरिए कई युद्ध समाप्त किए हैं. उन्होंने कहा, 'मैंने सात युद्ध रोके. यह एक युद्ध है और यह बहुत बड़ा युद्ध है.' उन्होंने उन संघर्षों का जिक्र किया जिनके हल होने का उन्होंने दावा किया था, इनमें आर्मेनिया, अजरबैजान, कोसोवो और सर्बिया, इजराइल और ईरान, मिस्र और इथियोपिया, रवांडा और कांगो शामिल हैं. ट्रंप की शांति पहलों का समर्थन करते हुए, इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा,डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार दीजिए. वह इसके हकदार हैं!

शहबाज शरीफ के सामने ट्रंप ने की पीएम मोदी की खुलकर तारीफ

मिस्र अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जमकर तारीफ की है। उन्होंने कहा कि भारत एक महान देश है और मेरे एक बहुत अच्छे दोस्त वहीं शीर्ष पर हैं। उन्होंने शानदार काम किया है। ट्रंप ने यह बयान मिस्र के शहर शर्म अल-शेख में हुए विश्व नेताओं के शिखर सम्मेलन के दौरान दिया, जो गाजा में युद्धविराम समझौते के बाद आयोजित किया गया था। गाजा समझौते के बीच ट्रंप ने की पीएम मोदी की तारीफ  गाजा में युद्धविराम समझौते के बाद मिस्त्र में आयोजित  वैश्विक नेताओं के शिखर सम्मेलन में ट्रंप ने पीएम मोदी को अपना बहुत अच्छा मित्र करार दिया और भारत की तारीफ की। ट्रंप ने कहा कि भारत एक महान देश है और उसके शीर्ष पर मेरा एक बहुत अच्छा मित्र है, जिसने शानदार काम किया है। मुझे लगता है कि भारत और पाकिस्तान अब बहुत अच्छे से साथ रहेंगे। बता दें कि इस दौरान खास बात यह रही कि जब ट्रंप पीएम मोदी की तारीफ कर रहे थे तब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ उनके पीछे ही खड़े थे। मोदी की तारीफ करते समय ट्रंप ने शहबाज की ओर भी देखा। इस पर शरीफ ने मुस्कुराते हुए ट्रंप की बात का स्वागत किया।  बंधकों का पुनर्मिलन हो रहा है… अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि वर्षों की पीड़ा और रक्तपात के बाद, गाजा में युद्ध समाप्त हो गया है। अब मानवीय सहायता पहुंच रही है, जिसमें सैकड़ों ट्रक भरकर भोजन, चिकित्सा उपकरण और अन्य सामग्री शामिल है, जिसका अधिकांश भुगतान इस कमरे में बैठे लोगों द्वारा किया जा रहा है। नागरिक अपने घरों को लौट रहे हैं। बंधकों का पुनर्मिलन हो रहा है… एक नए और खूबसूरत दिन को उगते देखना बहुत ही सुंदर है और अब पुनर्निर्माण शुरू हो रहा है। मध्य पूर्व से परे दुनिया के इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण इस दौरान ट्रंप ने गाजा शांति शिखर सम्मेलन में कहा कि यह मध्य पूर्व से परे दुनिया के इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण है। हम सभी इस बात पर सहमत हैं कि गाजा का समर्थन लोगों के उत्थान के लिए ही किया जाना चाहिए। लेकिन हम अतीत में हुए रक्तपात, घृणा या आतंक से जुड़ी किसी भी चीज को वित्तपोषित नहीं करना चाहते। हम इस बात पर भी सहमत हैं कि गाजा के पुनर्निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि इसे विसैन्यीकृत किया जाए और गाजा में लोगों के लिए सुरक्षित वातावरण बनाने के लिए एक नए ईमानदार नागरिक पुलिस बल की स्थापना की जाए। मैं एक बेहतर भविष्य सुनिश्चित करने में भागीदार बनने का इरादा रखता हूं। उम्मीद है कि तीसरा विश्व युद्ध नहीं होगा, लेकिन यह मध्य पूर्व में शुरू नहीं होने वाला है। हम तीसरा विश्व युद्ध नहीं लड़ेंगे। विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने की ट्रंप से मुलाकात इससे पहले विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने मध्य पूर्व शांति समारोह में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड जे. ट्रम्प से मुलाकात की। इस शिखर सम्मेलन की संयुक्त रूप से मेजबानी संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी ने की और इसमें कई विश्व नेताओं ने भाग लिया।  भारत ने गाजा शांति समझौते का स्वागत किया, स्थायी शांति की उम्मीद जताई  भारत ने इस्राइल और हमास के बीच युद्ध विराम और गाजा में शांति के लिए समझौते का स्वागत किया है। भारत ने उम्मीद जताई कि इससे पश्चिम एशिया में स्थायी शांति स्थापित होगी।   विदेश मंत्रालय ने देर रात जारी बयान में बातचीत द्वारा दो राष्ट्र समाधान के प्रति भारत के दीर्घकालिक समर्थन को दोहराया तथा कहा कि वह क्षेत्र में स्थायी शांति के लिए सभी प्रयासों का समर्थन करेगा। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि भारत ऐतिहासिक शांति समझौते पर हस्ताक्षर का स्वागत करता है और आशा करता है कि इससे क्षेत्र में स्थायी शांति स्थापित होगी। मंत्रालय ने कहा कि हम राष्ट्रपति ट्रंप की गाजा शांति योजना का समर्थन करते हैं और इसे प्राप्त करने और शांति के मार्ग को आगे बढ़ाने में मिस्र और कतर की बहुमूल्य भूमिका की सराहना करते हैं। मंत्रालय ने कहा कि शांति शिखर सम्मेलन का उद्देश्य क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के प्रयासों को मजबूत करना था, जो क्षेत्र में स्थायी शांति के लिए राष्ट्रपति ट्रंप के दृष्टिकोण के अनुरूप है। यह बातचीत के जरिये द्विराष्ट्र समाधान के लिए भारत के दीर्घकालिक समर्थन के अनुरूप भी है। भारत क्षेत्र में स्थायी शांति के लिए सभी प्रयासों का समर्थन करेगा। शहबाज शरीफ ने ट्रंप को बताया ‘शांति दूत’ शिखर सम्मेलन में बोलते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कहा कि मध्य पूर्व में शांति स्थापित होने का श्रेय राष्ट्रपति ट्रंप और उनकी टीम को जाता है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ने पहले भी ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया था और अब वे उन्हें दोबारा नामित करना चाहते हैं।  

ट्रंप ने दिया बड़ा बयान, क्रिप्टो मार्केट में मचा तांडव, बिटकॉइन की कीमतें टूटीं

वाशिंगटन  अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने कहा कि अमेरिका आने वाले हफ्तों में चीन से आने वाले सभी ‘महत्वपूर्ण सॉफ्टवेयर’ पर 100% नया टैरिफ (कर) लगाएगा. ट्रंप के इस बयान के बाद क्रिप्टोकरेंसी और अमेरिकी शेयर बाजार में हाहाकार मच गया. बिटकॉइन (Bitcoin) और इथीरियम समेत अमेरिका में टेस्ला और अमेजन जैसी कंपनियों के शेयर गिर गए. ट्रंप ने यह फैसला तब लिया है जब चीन ने रेयर अर्थ मिनरल्स पर नए एक्सपोर्ट नियंत्रण लगाने का ऐलान किया. ये खनिज मोबाइल, कंप्यूटर चिप्स, बैटरी और सोलर पैनल जैसे टेक प्रोडक्ट्स बनाने में जरूरी होते हैं. ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर लिखा, ‘1 नवंबर 2025 से (या उससे पहले अगर चीन कोई और कदम उठाता है) अमेरिका चीन पर 100% टैरिफ लगाएगा, जो मौजूदा करों से ऊपर होगा. उसी दिन से सभी क्रिटिकल सॉफ्टवेयर पर एक्सपोर्ट कंट्रोल भी लगाए जाएंगे.’ ट्रंप ने कहा कि यह कदम इसलिए जरूरी है क्योंकि चीन ‘लगभग हर उत्पाद’ पर बड़े पैमाने पर एक्सपोर्ट कंट्रोल लागू करने की योजना बना रहा है. उन्होंने इसे ‘अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए एक खतरनाक मिसाल’ बताया. अभी अमेरिका चीन के उत्पादों पर 30% टैरिफ लगाता है. ट्रंप की नई घोषणा के बाद यह दर कुल मिलाकर 130% हो जाएगी. क्रिप्टो बाजार में झटका     ट्रंप के ऐलान के तुरंत बाद बिटकॉइन और इथेरियम जैसी प्रमुख क्रिप्टोकरेंसी के दाम गिर गए.     बिटकॉइन 10% से ज्यादा गिरकर $1,10,000 के नीचे चला गया, बाद में हल्का सुधार होकर $1,13,096 पर पहुंचा.     इथेरियम 11.2% टूटकर $3,878 पर आ गया.     BNB, Solana और XRP जैसी क्रिप्टोकरेंसी में भी 14% से 18% तक गिरावट दर्ज की गई.     विश्लेषकों का कहना है कि ट्रेड वार (Trade War) के डर से निवेशकों ने जोखिम भरे निवेश, जैसे क्रिप्टो और टेक स्टॉक्स, से पैसा निकालना शुरू कर दिया है. वॉल स्ट्रीट में भी गिरावट ट्रंप के बयानों का असर अमेरिकी शेयर बाजारों पर भी दिखा. S&P 500 इंडेक्स 2.71% गिर गया. यह अप्रैल के बाद का सबसे बड़ा नुकसान. वहीं Nasdaq 3.56% टूटा. डाउ जोन्स में भी करीब 1.9% की गिरावट आई. लंदन के FTSE 100 में भी 0.9% की गिरावट दर्ज की गई क्योंकि दुनिया भर के निवेशकों को वैश्विक मंदी की चिंता सता रही है. क्या फिर शुरू होगा ट्रेड वॉर? ट्रंप और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) के बीच पहले इस महीने दक्षिण कोरिया में मुलाकात तय थी, लेकिन ट्रंप ने कहा कि अब इसकी कोई जरूरत नहीं है. चीन ने भी जवाबी कदम उठाते हुए अमेरिकी झंडे वाले जहाजों पर अतिरिक्त पोर्ट शुल्क लगाने का ऐलान किया है. अब मंगलवार से चीन पहुंचने वाले अमेरिकी जहाजों से $56.13 प्रति टन और अमेरिका पहुंचने वाले चीनी जहाजों से $80 प्रति टन शुल्क लिया जाएगा.  

Quad को लेकर ट्रंप की बातों पर भारत का ऐक्शन! ऑस्ट्रेलिया संग हुई बड़ी डिफेंस डील

नई दिल्ली रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह इन दिनों ऑस्‍ट्रेलिया के दौरे पर हैं, जहां तीन बड़े रक्षा समझौते किए गए हैं. भारत ने क्‍वाड (Quad) पर कैनबरा से अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप को करारा जवाब दिया है. ट्रंप ने क्‍वाड में अमेरिकी भागीदारी पर उदासीनता को कई बार स्‍पष्‍ट रूप से जताया है. वहीं, भारत क्‍वाड के अन्‍य सदस्‍य देशों (ऑस्‍ट्रेलिया और जापान) के साथ ही इस जोन के अन्‍य महत्‍वपूर्ण देशों (जैसे दक्षिण कोरिया) के साथ अपने रक्षा और रणनीतिक संबंधों को नई ऊंचाई दे रहा है. बता दें कि हिन्‍द-प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामक गत‍िविधियों पर लगाम लगाने के लिए Quad का गठन किया गया था. इसमें भारत के साथ ही अमेरिका, ऑस्‍ट्रेलिया और जापान शामिल हैं. ट्रंड की नीतियों के चलते इसपर ग्रहण सा लगता दिख रहा था, जिसे भारत अब कूटनीतिक ईंधन देकर उसे एक सशक्‍त फोरम बनाने में जुटा है. अमेरिका के पूर्व राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप प्रशासन की Indo-Pacific नीति और Quad के प्रति घटती रुचि के बीच भारत और ऑस्‍ट्रेलिया ने गुरुवार को अपने द्विपक्षीय रक्षा सहयोग को नई मजबूती देने की दिशा में तीन महत्‍वपूर्ण समझौते किए. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और उनके ऑस्‍ट्रेलियाई समकक्ष रिचर्ड मार्ल्‍स के बीच कैनबरा में हुई प्रतिनिधिमंडल-स्तरीय वार्ता के बाद दोनों देशों ने गोपनीय सूचनाओं के आदान-प्रदान, पनडुब्‍बी खोज एवं बचाव सहयोग, और ज्‍वाइंट स्‍टाफ डायलॉग मेकेनिज्‍म की स्‍थापना से जुड़े तीन समझौतों पर हस्ताक्षर किए. इसके अलावा दोनों देशों ने एक संयुक्त समुद्री सुरक्षा सहयोग रोडमैप तैयार करने और दीर्घकालिक रक्षा एवं सुरक्षा ढांचा समझौता पर भी जल्‍द हस्ताक्षर करने पर सहमति जताई. यह नया ढांचा वर्ष 2009 में हुए साझा सुरक्षा घोषणा पत्र की जगह लेगा. भारत लगातार मजबूत कर रहा रिश्‍ते राजनाथ सिंह की यह यात्रा 2014 में NDA सरकार के सत्ता में आने के बाद किसी भारतीय रक्षा मंत्री की पहली ऑस्‍ट्रेलिया यात्रा है. यह ऐसे समय में हुई है, जब भारत अमेरिका के साथ व्यापारिक तनाव और नीति असंतुलन के बीच जापान, ऑस्‍ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और फिलीपींस जैसे क्षेत्रीय साझेदारों के साथ अपने रक्षा संबंधों को सशक्‍त कर रहा है. मार्ल्‍स ने पहले कहा था कि चीन भारत और ऑस्‍ट्रेलिया दोनों के लिए सबसे बड़ा सुरक्षा खतरा है. बैठक में दोनों मंत्रियों ने इस बात पर जोर दिया कि Indo-Pacific क्षेत्र में स्वतंत्र, खुले, स्थिर और समृद्ध माहौल को बनाए रखने के लिए क्षेत्रीय साझेदारों के साथ सहयोग बढ़ाना जरूरी है. दोनों देशों ने समुद्री मार्गों की स्वतंत्र आवाजाही, उड़ान और निर्बाध व्यापार के महत्व को भी दोहराया. रणनीतिक तौर पर अहम भारत-जापान के हालिया सुरक्षा सहयोग समझौते के बाद यह बैठक Quad देशों (भारत, ऑस्‍ट्रेलिया, अमेरिका और जापान) के बीच बढ़ते रक्षा तालमेल की दिशा में एक और अहम कदम मानी जा रही है. आने वाले महीने में होने वाले मालाबार नौसैनिक अभ्यास से पहले दोनों देशों ने समुद्री निगरानी और डोमेन अवेयरनेस पर सहयोग बढ़ाने की प्रतिबद्धता भी जताई. राजनाथ सिंह ने कहा, ‘हमने भारत-ऑस्‍ट्रेलिया के रक्षा उद्योग, साइबर सुरक्षा, समुद्री सुरक्षा और क्षेत्रीय चुनौतियों पर व्यापक चर्चा की. हमने अपने व्यापक रणनीतिक साझेदारी की महत्ता को दोहराया.’ उन्‍होंने आतंकवाद पर भारत की सख्‍त नीति दोहराते हुए कहा, ‘आतंक और वार्ता साथ नहीं चल सकते, आतंक और व्‍यापार साथ नहीं चल सकते, पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते.’ राजनाथ सिंह ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से सभी प्रकार के आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होने की अपील की.

US की राहत: फार्मा सेक्टर पर टैरिफ नहीं, बाजार में चमक सकते हैं फार्मा शेयर

वाशिंगटन अमेरिका से गुरुवार को एक गुड न्यूज आई है. तमाम रिपोर्ट्स में ऐसा संकेत दिया जा रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप अपने फार्मा प्रोडक्ट्स पर 100% टैरिफ ऐलान से जेनेरिक दवाओं को दूर रख सकते हैं. US में बिकने वाली ज्यादातर दवाओं पर शुल्क लगाने के मुद्दे पर महीनों की बहस के बाद, ट्रंप प्रशासन ने कहा है कि वह विदेशी देशों से आने वाली जेनेरिक दवाओं पर शुल्क लगाने की योजना नहीं बना रहा है. बता दें ये भारत के लिए राहत भरी खबर है, क्योंकि देश से भारी मात्रा में ऐसे दवाओं का निर्यात अमेरिका को किया जाता है. इसके साथ ही इन रिपोर्ट्स के बाद फार्मा स्टॉक्स भी फोकस में हैं.  जेनेरिक दवाओं रह सकती हैं टैरिफ से दूर! वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक ताजा रिपोर्ट में ऐसे संकेत दिए हैं कि ट्रंप प्रशासन आने वाले हफ्तों में फार्मा टैरिफ को लेकर अपने रुख में बदलाव कर सकता है. इसमें कहा गया है कि ट्रंप प्रशासन जेनेरिक दवाओं पर टैरिफ से अलग रख सकता है. बता दें कि ट्रंप द्वारा ब्रांडेड और पेटेंटेड विदेशी फार्मा प्रोडक्ट्स 100% टैरिफ लगाए जाने के ऐलान के बाद से ही जेनेरिक दवाओं पर टैरिफ को लेकर काफी आशंकाएं और अटकलें चल रही हैं. रिपोर्ट के बाद शेयर बाजार में कारोबार के दौरान फार्मा स्टॉक्स में हरियाली भी देखने को मिल रही है.  भारत को कहा जाता है ‘दुनिया की फार्मेसी’ आईक्यूवीआईए (IQVIA) नामक वैश्विक चिकित्सा डेटा एनालिटिक्स कंपनी के अनुसार, अमेरिका में फार्मेसियों में बेची जाने वाली कुल जेनेरिक दवाओं में से 47 प्रतिशत दवाएं भारत से आती हैं। अमेरिका के घरेलू निर्माता करीब 30 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखते हैं, जबकि बाकी हिस्सा अन्य देशों से आता है। जिसमें भारत की सबसे ज्यादा हिस्सेदारी है। यही वजह है कि भारत को ‘दुनिया की फार्मेसी’ कहा जाता है। वाइट हाउस का यू-टर्न वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार, यह कदम अमेरिकी वाणिज्य विभाग द्वारा चल रही दवाओं पर टैरिफ जांच के दायरे को सीमित करता है। अप्रैल में शुरू हुई इस जांच में पहले कहा गया था कि “जेनेरिक और नॉन-जेनेरिक दोनों प्रकार की तैयार दवाओं” के साथ-साथ दवा निर्माण में उपयोग होने वाले कच्चे माल (ड्रग इंग्रेडिएंट्स) को भी जांच के दायरे में रखा जाएगा। लेकिन वाइट हाउस के भीतर इस पर भारी खींचतान देखने को मिली। ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ (MAGA) गुट के कठोरपंथी सदस्य चाहते थे कि दवा निर्माण को वापस अमेरिका में लाया जाए और इसके लिए विदेशी दवाओं पर भारी टैरिफ लगाया जाए। उनका तर्क था कि यह “राष्ट्रीय सुरक्षा” से जुड़ा मामला है। हालांकि, राष्ट्रपति ट्रंप की घरेलू नीति परिषद के कुछ सदस्य इस फैसले के खिलाफ थे। उन्होंने दलील दी कि यदि जेनेरिक दवाओं पर टैरिफ लगाया गया, तो अमेरिका में दवाओं की कीमतें बढ़ेंगी और दवाओं की कमी भी हो सकती है। साथ ही, जेनेरिक दवाओं का उत्पादन भारत जैसे देशों में इतना सस्ता है कि भारी टैरिफ लगाने के बाद भी अमेरिकी उत्पादन आर्थिक रूप से फायदेमंद नहीं होगा। ट्रंप की ‘टैरिफ पॉलिसी’ पर फिर सवाल ट्रंप प्रशासन पहले भी अपने टैरिफ युद्धों के कारण आलोचनाओं में रहा है। चीन पर लगाए गए टैरिफ के बाद चीन ने अमेरिकी कृषि उत्पादों, खासकर सोयाबीन की खरीद बंद कर दी, जिससे अमेरिकी किसान बुरी तरह प्रभावित हुए। अब अमेरिकी सरकार को किसानों की मदद के लिए 16 अरब डॉलर की सब्सिडी देनी पड़ रही है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इन सब्सिडियों का असली बोझ अंततः अमेरिकी उपभोक्ता पर ही पड़ेगा। एक किसान ने सोशल मीडिया पर नाराजगी जताते हुए लिखा, “सरकार हमसे पैसा वसूल रही है और वही पैसा हमें वापस दे रही है।” ऐसे में, ट्रंप प्रशासन ने शायद यह महसूस किया कि जेनेरिक दवाओं पर टैरिफ लगाकर जनता को एक और “कड़वी दवा” नहीं दी जा सकती। भारतीय दवाओं से अमेरिकी स्वास्थ्य प्रणाली को मिली भारी बचत अनुमानों के अनुसार, साल 2022 में भारतीय जेनेरिक दवाओं ने अमेरिकी स्वास्थ्य प्रणाली को करीब 219 अरब डॉलर की बचत कराई। पिछले एक दशक में यह बचत 1.3 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गई। भारतीय कंपनियों की अहम भूमिका टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, 2022 में सिप्ला, सन फार्मास्युटिकल्स और डॉ. रेड्डीज लैबोरेट्रीज जैसी भारतीय कंपनियों ने अमेरिका में कोलेस्ट्रॉल, हाई ब्लड प्रेशर, अवसाद, अल्सर और नर्वस सिस्टम डिसऑर्डर जैसी प्रमुख बीमारियों के इलाज के लिए दी जाने वाली दवाओं में आधे से अधिक प्रिस्क्रिप्शन सप्लाई किए। इनमें मेटफॉर्मिन (डायबिटीज), एटोरवास्टेटिन (कोलेस्ट्रॉल), लोसार्टन (ब्लड प्रेशर), और आम एंटीबायोटिक्स (एमॉक्सिसिलिन, सिप्रोफ्लोक्सासिन) जैसी दवाएं शामिल हैं, जो अमेरिकी मरीजों के इलाज में रोजाना उपयोग की जाती हैं।

ट्रंप की योजना पर भारत-पाक की संयुक्त चुनौतियां, अमेरिका की चाल फेल करने का प्रयास

नई दिल्ली अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अफगानिस्तान को धमकी दे रहे थे. इस धमकी के खिलाफ अब भारत तालिबान के साथ खड़ा हो गया है. अफगानिस्तान को लेकर यह अंतरराष्ट्रीय राजनीति में बड़ा मोड़ दिखाता है. भारत ने तालिबान, पाकिस्तान, चीन और रूस के साथ मिलकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की उस मांग का विरोध किया है, जिसमें उन्होंने अफगानिस्तान के बगराम एयरबेस को अमेरिका को वापस सौंपने की बात कही थी. यह फैसला उस समय आया है जब तालिबान शासित अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी इस हफ्ते भारत की ऐतिहासिक यात्रा पर आने वाले हैं. मॉस्को में आयोजित ‘मॉस्को फॉर्मेट कंसल्टेशन ऑन अफगानिस्तान’ की सातवीं बैठक में भारत, ईरान, कजाकिस्तान, चीन, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान और किर्गिस्तान सहित 10 देशों ने हिस्सा लिया. बेलारूस के प्रतिनिधि भी अतिथि के रूप में मौजूद रहे. बैठक के बाद जारी संयुक्त बयान में किसी देश का नाम लिए बिना कहा गया, ‘प्रतिभागियों ने अफगानिस्तान या उसके पड़ोसी देशों में किसी भी देश की ओर से सैन्य ढांचे की तैनाती के प्रयासों को अस्वीकार्य बताया, क्योंकि यह क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के खिलाफ है.’ यह बयान सीधे तौर पर ट्रंप की योजना की आलोचना के रूप में देखा जा रहा है. ट्रंप और तालिबान भिड़े अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में मांग की थी कि तालिबान अमेरिका को बागराम एयरबेस वापस सौंप दे. यह वही बेस है, जहां से अमेरिका ने 2001 के बाद ‘वॉर ऑन टेरर’ यानी आतंकवाद के खिलाफ युद्ध अभियान चलाया था. 18 सितंबर को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में ट्रंप ने कहा, ‘हमने वह बेस उन्हें मुफ्त में दे दिया, अब हम उसे वापस चाहते हैं.’ उन्होंने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘ट्रुथ सोशल’ पर भी लिखा था- ‘अगर अफगानिस्तान ने बाग्राम एयरबेस वापस नहीं किया तो नतीजे बुरे होंगे.’ तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने ट्रंप की मांग को खारिज करते हुए कहा, ‘अफगान किसी भी हाल में अपनी जमीन किसी और को नहीं देंगे. हम अगले 20 साल युद्ध लड़ने को तैयार हैं.’ मॉस्को फॉर्मेट वार्ता के नए संस्करण में, देशों के समूह ने अफगानिस्तान में समृद्धि और विकास लाने के तौर-तरीकों पर व्यापक विचार-विमर्श किया। इन देशों ने अफगानिस्तान और पड़ोसी देशों में सैन्य बुनियादी ढांचे तैनात करने के कुछ देशों के प्रयासों को 'अस्वीकार्य' बताया, क्योंकि यह क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के हितों की पूर्ति नहीं करता है। तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी ने पहली बार मॉस्को फॉर्मेट वार्ता में भाग लिया। कुछ हफ्ते पहले, ट्रंप ने कहा था कि तालिबान को बगराम एयरबेस अमेरिका को सौंप देना चाहिए, क्योंकि इसे वॉशिंगटन ने स्थापित किया था।मॉस्को में हुई बातचीत में भाग लेने वाले देशों ने द्विपक्षीय और बहुपक्षीय दोनों स्तरों पर आतंकवाद-रोधी सहयोग को मजबूत करने का आह्वान किया। बयान में कहा गया, 'उन्होंने जोर देकर कहा कि अफगानिस्तान को आतंकवाद को खत्म करने और इसे जल्द से जल्द जड़ से मिटाने के लिए ठोस कदम उठाने में मदद दी जानी चाहिए, ताकि काबूल की धरती का इस्तेमाल पड़ोसी देशों और अन्य जगहों की सुरक्षा के लिए खतरे के रूप में न हो।' इसमें कहा गया कि इन देशों ने इस बात पर जोर दिया कि आतंकवाद अफगानिस्तान, क्षेत्र और व्यापक विश्व की सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा है। भारत, रूस और चीन के अलावा, इस बैठक में ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान ने भी भाग लिया। इन देशों ने इस क्षेत्र और इससे आगे के देशों के साथ अफगानिस्तान के आर्थिक संबंधों की आवश्यकता पर जोर दिया। मुत्ताकी की यात्रा क्यों है खास भारत का इस मुद्दे पर तालिबान के साथ खड़ा होना कई मायनों में ऐतिहासिक है. मुत्ताकी पहली बार भारत की यात्रा पर आ रहे हैं, जिसके लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने उन्हें 9 से 16 अक्टूबर तक यात्रा की अनुमति दी है. क्योंकि मुत्ताकी UNSC की प्रतिबंधित सूची (Resolution 1988) में शामिल हैं, इसलिए उन्हें विशेष मंजूरी मिली है. बगराम क्यों चाहता है अमेरिका? काबुल से लगभग 50 किलोमीटर दूर स्थित बाग्राम एयरबेस अफगानिस्तान का सबसे बड़ा हवाई अड्डा है. इसमें दो बड़े रनवे हैं, जिसमें से एक 3.6 किमी और दूसरा 3 किमी लंबा. पहाड़ी इलाके के कारण अफगानिस्तान में बड़े विमानों की लैंडिंग मुश्किल होती है, ऐसे में बगराम एक रणनीतिक केंद्र माना जाता है.  

ट्रंप के शांति प्रस्ताव पर हमास ने दी हामी, सभी इजरायली बंधकों की रिहाई सुनिश्चित

 गाजा  हमास ने ट्रंप के गाजा पीस प्लान को लेकर सकारात्मक रुख दिखाया है और लगभग सभी बड़ी शर्तों को मानने के लिए हामी भरी है. ​इस फिलिस्तीनी मिलिशिया संगठन ने शुक्रवार को घोषणा की कि वह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा आगे बढ़ाए गए शांति योजना के तहत सभी इजरायली बंधकों (चाहे जीवित हों या मृत) को रिहा करने के लिए तैयार है. हमास का यह फैसला गाजा में संघर्ष समाप्त करने में काफी महत्वपूर्ण साबित होगा. हमास ने एक बयान में कहा कि वह इस मामले (ट्रंप के गाजा प्लान) की विस्तृत चर्चा के लिए मध्यस्थों के माध्यम से तत्काल वार्ता में शामिल होने के लिए तैयार है. यदि यह कदम साकार होता है, तो यह अक्टूबर 2023 में इजरायल पर हमले के दौरान अपहृत बंधकों की वापसी के लिए महीनों की कोशिशों में सबसे महत्वपूर्ण सफलता होगी. हमास ने यह भी दोहराया कि वह गाजा का प्रशासन 'स्वतंत्र तकनीकी विशेषज्ञों की फिलिस्तीनी संस्था' को सौंपने के लिए तैयार है. हमास ने डोनाल्ड ट्रंप का जताया आभार बता दें कि हमास ही अब तक गाजा का प्रशासन चलाता था. इस समूह ने गाजा संघर्ष समाप्त कराने के प्रयासों में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भूमिका के लिए उनका सार्वजनिक रूप से धन्यवाद दिया. साथ ही अरब, इस्लामी और अंतरराष्ट्रीय साझेदारों का आभार जताया. इससे पहले, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हमास से रविवार शाम 6 बजे तक इजरायल के साथ शांति समझौते पर पहुंचने का अल्टीमेटम था, वरना गाजा में कहर टूटने की चेतावनी दी थी. अमेरिकी राष्ट्रपति ने दिया था अल्टीमेटम ट्रंप ने कहा था कि हमास को हमारे गाजा प्लान को स्वीकार करने, इजरायली बंधकों को रिहा करने और शत्रुताओं समाप्त करने का एक आखिरी मौका दिया जा रहा है. अगर वह इस पर सहमति नहीं जताता है तो इसका अंजाम बहुत बुरा होगा. उन्होंने कहा था कि गाजा में किसी न किसी तरह शांति जरूर स्थापित होगी. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दो वर्ष से चल रहे गाजा युद्ध को समाप्त करने के लिए इजरायल और हमास दोनों को शांति समझौते पर सहमत करने के लिए प्रयासरत हैं. ट्रंप के 20 सूत्री गाजा प्लान में क्या-क्या है? उन्होंने इसके लिए एक 20 सूत्री प्रस्ताव का खाका तैयार किया है, जो न केवल युद्ध को तत्काल रोकने का आह्वान करता है बल्कि गाजा में शासन के लिए एक समाधान भी प्रस्तुत करता है. व्हाइट हाउस ने संघर्ष समाप्त करने और क्षेत्र के भविष्य के प्रशासन को आकार देने के लिए ट्रंप के गाजा प्लान को एक रोडमैप बताया. ट्रंप के गाजा पीस प्लान (गाजा शांति योजना) के अनुसार, हमास और इजरायल के बीच शांति समझौते के 72 घंटों के भीतर हमास को सभी जीवित और मृत इजरायली बंधकों को रिहा करना होगा, बदले में इजरायल सैकड़ों फिलिस्तीनी कैदियों को अपनी जेलों से रिहा करेगा. अब गाजा पर नहीं होगा हमास का नियंत्रण इस प्लान के मुताबिक गाजा पर हमास का नियंत्रण खत्म होगा और अंतरराष्ट्रीय निगरानी में एक स्वतंत्र सरकार यहां का प्रशासन चलाएगी. हमास की ओर से इस पीस प्लान पर सहमति जताने के तुरंत बाद गाजा में पूर्ण सहायता भेजी जाएगी. ट्रंप ने चेतावनी दी थी कि यदि हमास गाजा प्लान को अस्वीकार करता है, तो उसे पूरी तरह खत्म करने का काम पूरा करने के लिए इजरायल को अमेरिका का पूर्ण समर्थन मिलेगा. हमास का ट्रंप के गाजा प्लान पर सहमति जताना, मध्य पूर्व में शांति की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित होगा.